एक वतन परस्त का अहद देश के किसान के लिये
ये जुनून-ए-इश्क-ए-वतन है तो डरना कैसा,
सर्द रातों मे डटे है मुजाहिद देखो,
गर जो सैय्याद से डर जायें तो मरना कैसा,
मेरी पुश्तें भी यहीं पैदा हुईं यहीं जज्ब हुईं,
आज हाकिम ये कौन आया है,
बनके सैय्याद जो गुलशन पर काली आंधी की तरह छाया है,
खौफ के पांव से जो दहशत को मचाता है,
मां बहनों बेटियों को जो खून सा रुलाता है,
ऐसा दहशत का मुहाफिज भी देखो रहनुमा कहलाता है,
मैं भी गांधी की विरासत हूं, तो सहमना कैसा,
ये जुनून-ए-इश्क वतन है तो फिर डरना कैसा,
कौन है वो जो मुझसे मांगेगा गवाही मेरी,
मेरी मिट्टी में मेरे ही लहू की स्याही का सुबूत?
कौन होता है कि मैं उसको दिखाऊं ये सुबूत,
कौन है वो जिसको मैं साबित भी करुं,
ये चमन मेरा है इसकी गवाही दूं
मेरे जज्बात वतन की खातिर क्या है वो इन हवाओं में है,
इस चमन शादाब की रंगीन फिजाओं में है,
जाओ की जरा महक तो देखो यहां मजारात की और समाधि की,
हर जगह तुझको मिलूंगा मैं ही मिलूंगा मैं ही… मिलूंगा मैं ही,
मौहम्मद रफी अता

डैलीगेट
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी
व टीवी पैनलिस्ट
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