सामाजिक कार्यकर्ता जैनब के परिवारजनों का उत्पीड़न बंद करे पुलिस
Police should stop harassment of family members of social worker Zainab
एआईपीएफ ने योगी सरकार से विधि के अनुसार काम करने को कहा
AIPF asks Yogi government to act as per law
लखनऊ, 7 नवम्बर 2020, सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन में सक्रिय रही सामाजिक कार्यकर्ता जैनब सिद्दकी (Social activist Zainab Siddiqui was active in anti-CAA-NRC movement) के परिजनों के पुलिस द्वारा किए बर्बर उत्पीड़न और उनके गिरफ्तार 52 वर्षीय पिता के बारे दो दिन से सूचना नहीं दिए जाने की आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी ने कड़ी निंदा की है।
आज जैनब सिद्दकी ने फोन पर अपने परिवारजनों के साथ हुई पुलिस बर्बरता की सूचना देते हुए एआईपीएफ के नेताओं को बताया कि 5 नवम्बर की दोपहर में दो पुलिसवाले मेरी फोटो लेकर मेरे घर पहुंचे थे। जिन्होंने मेरे पिता से मेरे सीएए-एनआरसी आंदोलन में शामिल होने के बारे में पूछा। तो मेरे पिता ने कहा कि मैं एक एनजीओ में नौकरी करती हूं और आंदोलन में शामिल रहती थी पर मेरे खिलाफ कोई मुकदमा नहीं है। इस पूछताछ के बाद पुलिस वाले लौट गए। शाम को नमाज से लौटते वक्त मेरे 52 वर्षीय पिता नईम सिद्दकी को सादी कपड़ेधारी 10 से 15 लोगों ने घेर लिया और उन्हें पकड़ कर ले जाने लगे। इसका विरोध करने और उनका परिचय पूछने पर मेरी दो नाबालिक बहनों और मां को बुरी तरह मारा पीटा गया और मेरे पिता समेत मेरे 16 वर्षीय नाबालिक भाई मोहम्मद शाद को वह लोग पकड़ कर ले गए। कल काफी दबाब के बाद मार-पीट कर मेरे भाई को छोड़ा गया। उसे पुलिस ने इस कदर आतंकित किया है कि वह अपना इलाज तक कराने को तैयार नहीं है। मेरे पिता के बारे में आज तक पुलिस प्रशासन ने जानकारी नहीं दी कि वह कहां है और उन्हें किस अपराध में गिरफ्तार किया गया है।
एआईपीएफ ने जैनब द्वारा बताए तथ्यों के आधार पर जारी बयान में कहा कि योगी सरकार में सीएए-एनआरसी आंदोलन में शामिल रहे लोगों पर लगातार द्वेषवश विधि विरूद्ध कार्यवाहियां हो रही हैं। हाईकोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर पोस्टर हटाने के आदेश के बावजूद सरकार आंदोलन में शामिल लोगों के पोस्टर फिर से शहर में लगवा रही है। उनके घरों पर अवैधानिक वसूली नोटिसें दी जा रही हैं, गैंगस्टर एक्ट कायम कर उनकी सम्पत्ति कुर्क करने की कार्यवाहियां हो रही हैं। हद यह है कि जैनब जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं और उनके परिवारजनों पर जिनके विरूद्ध कोई मुकदमा तक नहीं है राजनीतिक बदले की भावना से पुलिस की उत्पीड़नात्मक कार्यवाही हो रही है। किसी भी गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के सम्बंध में उसके परिजनों को बताना और 24 घंटे में उसे मजिस्ट्रेट के सम्मुख प्रस्तुत करना पुलिस का विधिक दायित्व है जिसे भी पूरा नहीं किया जा रहा है। योगी राज में पुलिस प्रशासन द्वारा की गई यह उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियां लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है।
एआईपीएफ ने मांग की है कि सरकार को इस पर तत्काल रोक लगानी चाहिए और विधि के अनुसार व्यवहार करना चाहिए।
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