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Politics intensifies in rising corona epidemic
जनता कर्फ्यू के 60 दिन (60 days of Janata curfew) बीत चुके हैं। जनता कर्फ्यू को प्रधानमंत्री ने लम्बी लड़ाई की शुरूआत बताया। 22 मार्च को देश भर में 365 कोरोना संक्रमित मरीज थे जिनमें से 7 लोगों की मृत्यु हो चुकी थी। प्रधानमंत्री ने लम्बी लड़ाई की शुरूआत करते हुए 24 मार्च को रात 8 बजे पूरे देश में रात 12 बजे से लॉकडाउन की घोषणा (Lockdown announcement) कर दी, इसका परिणाम यह हुआ कि जो लोग अपने रिश्तेदारी, इलाज कराने, ऑफिस काम से या कोई अन्य काम से बाहर गये थे वह वहीं फंस गये।
लॉकडाउन से मन में कुछ सवाल पैदा होते हैं
- 1) देश की ऐसी हालत बन गई थी कि 4 घंटे का समय देकर पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया गया?
2) अगर ऐसे हालात थे तो 20 मार्च को ही क्यों नहीं घोषणा कर दी गई कि 24 मार्च से देश को लॉकडाउन कर दिया जायेगा? इससे देश में लाखों-करोडो़ लोग फंसने से बच सकते थे।
3) लॉकडाउन का निर्णय केवल प्रधानमंत्री का था या राज्य से भी इस विषय में विचार विमर्श किया गया था?
4) तीन दौर के लॉकडाउन के बाद राज्यों पर निर्णय क्यों छोड़ा दिया गया?
पहले लॉकडाउन के बाद प्रधानमंत्री ने अपने संसदीय क्षेत्र को विडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से सम्बोधित करते हुए कहा था कि-
‘‘महाभारत के युद्ध को जीतने में 18 दिन का समय लगा था और भारत को कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध जीतने में 21 दिन लगेंगे।’’
24 मार्च से 14 अप्रैल तक पहले लॉकडाउन के दौरान कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 536 से बढ़कर 11487 हो गई यानी 21 दिनों में 10,951 मरीजों की संख्या बढ़ गई। इस दौरान प्रधानमंत्री ने देश को एकजुट करने के लिए और आशा का संचार जगाने के लिए दीए और मोमबत्तियां भी जलवा दिया।
दूसरे लॉकडाउन के अंतिम दिन 14 अप्रैल को ‘जान भी जहान भी’ का नारा देते हुए लॉक डाउन को तीन मई तक के लिए बढ़ा दिया।
3 मई तक देश में 42,505 कोरोना संक्रमित मरीज हो चुके थे यानी दूसरे लॉकडाउन में 31,018 मरीज बढ़ गये। तीसरे लॉकडाउन की घोषणा प्रधानमंत्री ने स्वयं नहीं किया एक सर्कुलर के माध्यम से तीसरे लॉकडाउन को 17 मई तक के लिए बढ़ा दिया।
17 मई तक भारत में चीन को पछाड़ते हुए 95,698 कोरोना संक्रमित मरीज हो चुके थे। 17 मई से पहले ही कोरोना महामारी को छोड़कर ‘आत्मनिर्भर’ भारत बनाने की चर्चा होने लगी थी जिसका जिक्र 12 मई को प्रधानमंत्री कर चुके हैं।
दूसरे लॉकडाउन में 3 मई तक बढ़कर 42,505 और तीसरे लॉकडाउन में 17 मई तक 95,698 हो गये यानी हम तीसरे लॉकडाउन में चीन को पीछे छोड़ दिये। 54 दिनों के पूर्ण लॉकडाउन के बाद भी कोरोना को हराना तो भूल जाइये भारत सरकार काबू भी नहीं कर पाई यानी कोरोना के खिलाफ युद्ध हारने लगे तो कोरोना महामारी का ही राजनीतिकरण कर दिया।
15 मई को (भारत में 85,784 मरीज हो गये थे जबकि चीन में 82,919) भारत के रेलमंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट कर कहा कि ‘‘रेलवे रोजाना 300 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को चलाकर मजदूरों को उनके घर पहुंचाने को तैयार है। मुझे दुख है कि कुछ राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ व झारखंड की सरकारों द्वारा इन ट्रेनों की अनुमति नहीं दी जा रही है। इससे श्रमिकों को घर से दूर कष्ट सहना पड़ रहा है।’’
गोयल के ट्वीट के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया।
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने प्रेस वार्ता कर ममता बनर्जी पर आरोप लगाते हुए इस को सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की और उत्तर प्रदेश सरकार के तारीफ के पुल बांधे गए। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने 30 ट्रेनों की अनुमति मांगी थी लेकिन अभी तक हमें 14 ट्रेनें ही मिली हैं, इसी तरह की प्रतिक्रिया और राज्यों के मुख्यमंत्रियों की आई।
झारखंड के मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने ही सबसे पहले श्रमिक ट्रेन की मांग की थी। 1 मई को सुबह 5 बजे लिंगमपल्ली (हैदराबाद) से हटिया के लिए श्रमिक ट्रेन चलाई गई। इसके बाद खबरें आने लगी कि फंसे हुए मजदूरों से किराया वसूला जा रहा है।
विपक्षी पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जब कहा कि फंसे हुए मजदूरों का किराया उनकी पार्टी देगी, तो राजनीतिक माहौल और भी गरमा गया। इस बयान के बाद केन्द्र सरकार कठघरे में घिरती नजर आई तो केन्द्र सरकार की तरफ से कहा गया कि हम 85 प्रतिशत किराये में छूट पहले से ही दे रहे हैं और राज्य सरकार छूट दे।
जिस उत्तर प्रदेश सरकार की पीठ थपथपाई जा रही थी और रेल मंत्री मजदूरों को घर तक पहुंचाने का सपना दिखा रहे थे उसकी तैयारी का पता इसी से चलता है कि 19 मई को रात को सिकन्दराबाद रेलवे स्टेशन से चली हुई ट्रेन 51 घंटे से अधिक समय में देवरिया पहुंचा रही है। यात्रियों को कानपुर में दिया हुआ खाना भी खराब था। 21 मई को मुम्बई से यूपी की दो ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है।
ट्रेन के बाद बस को लेकर राजनीति चलती रही। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी 1000 बसों के द्वारा राजस्थान से मजदूरों को यूपी, बिहार भेजना चाहती थीं लेकिन यूपी सरकार द्वारा बसों को लेकर सवाल उठाये गये जिसके बाद यूपी में उनकी प्रवेश की अनुमति नहीं मिल पाई और मजदूर राजनीति के शिकार होकर सड़क पर पड़े रहे।
गुजरात राज्य में सबसे अधिक बार मजदूरों ने सड़क पर विरोध प्रदर्शन किया जिसको पुलिसिया दमन से दबाया गया, कुछ मजदूरों को पकड़कर पुलिस ले गई। 12 मई को भावनगर के निरमा लिमिटेड कम्पनी के मजदूरों ने यूपी के श्रमिक ट्रेन रद्द होने पर कम्पनी पर गुस्सा निकाला तो उन पर केस दर्ज कर गिरफ्तारी की गई। सूरत में 4 मई की रात मजदूरों ने घर जाने के लिए प्रदर्शन किया इससे पहले भी कई बार सूरत में मजदूर प्रदर्शन कर चुके हैं जिसको पुलिस लाठीचार्ज और मजदूरों की गिरफ्तारी कर मजदूरों के आक्रोश को दबाया। इसी तरह से अहमदाबाद, पुणे, राजस्थान, मुम्बई और दिल्ली से भी प्रदर्शनों की खबरें आ रही हैं। जिस तरह से दिन बीतते जा रहे हैं मजदूरों का आक्रोश और चितांए भी बढ़ती जा रही हैं।
More than 500 workers have died after the lockdown.
हर रोज मजदूरों के मरने की खबरें आ रही हैं हालत यह है कि लॉकडाउन के बाद 500 से अधिक मजदूरों की मृत्यु हो चुकी है। कई दर्दनाक तस्वीरें मीडिया में आ रही हैं, गर्भवती महिलाएं सड़क पर बच्चे को जन्म दे रही हैं तो कोई मां अपने बच्चों को कंधे और गोद में उठाये हुए जा रही हैं तो कोई महिला अपने बच्चे को सुटकेस पर ही सुला कर ले जा रही हैं। इस तरह की दर्दनाक तस्वीरें नहीं आये उसके लिए सरकार उनको सड़क पर आने से ही रोक देना चाहती है। यह ऐसी तस्वीरें हैं जो विश्व गुरू का सपना देखने वाले भारत की दर्दनाक कहानी कहती है, ऐसी तस्वीरें दुनिया के किसी और देश से नहीं आई है जबकि विश्व के 215 देशों में कोरोना बीमारी है।
भारत 18 मई को एक लाख मरीजों की संख्या भी पार कर चुका है। कई शोध बताते हैं कि भारत में अभी कोरोना संक्रमण की चरम स्थिति आने वाली है। इसी तरह की आशंका अमरीकी वायरोलॉजिस्ट (वायरस विज्ञानी) पीटर होटेज ने कहा है कि भारत में गर्म मौसम के कारण वायरस का प्रसार कम हो सकता है लेकिन जुलाई-अगस्त में हालात बेकाबू हो सकती है।
पीटर होटेज का वक्तव्य इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह अमरीका में कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं में खड़े हैं।
भारत सरकार इन सब चेतावनियों को अनसुना करते हुए राजनीतिक फायदे उठाने का अवसर देख रही है जैसे कि कोरोना दुनिया के लिए महामारी, और मोदीजी भारत के लिए इसे एक अवसर के रूप में देख रहे हैं। प्रधानमंत्री अपनी ही कही बातों ‘जान भी जहान भी’ से पीछे हटते हुए आर्थिक पहलुओं पर जोर दे रहे हैं।
चौथे लॉकडाउन में केन्द्र सरकार, राज्य सरकार के ऊपर निर्णय लेने के लिए छोड़ दिया है। लॉकडाउन का स्वतः निर्णय लेने वाले और कोरोना वॉरियर्स का खिताब लेने की चाहत रखने वाले प्रधानमंत्री जब मरीजों की संख्या बढ़ रही है और मजदूर जगह-जगह विरोध प्रदर्शन करने लगे हैं तो उनको राज्यों की स्वायत्तता याद आ गई।
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लॉकडाउन से पहले 25 जिले संक्रमित थी और आज इनकी संख्या 500 से अधिक हो गई है यानी देशव्यापा महामारी बन गई है। देशव्यापी समस्या होने पर केन्द्र की जिम्मेदारी बढ जाती है लेकिन केन्द्र अभी अपना कदम पीछे खींचते हुए यह जिम्मेदारी राज्यों को सौंप रही है। क्या केन्द्र सरकार ऐसा करके भविष्य में अपनी नाकामियों को छिपाने और दूसरे पर दोषारोपण करने का मौका ढूंढ रही हैं।
केन्द्र सरकार अगर मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने का निर्णय लेती तो उसमें राज्य का निर्णय बाधा नहीं बनती जैसा कि अभी बसों को लेकर उत्तर प्रदेश में हुआ। अगर केन्द्र सरकार कोरोना को लेकर राजनीति करती रही तो उसकी हालत अमेरिका से भी बदतर हो सकती है। अमेरिका चीन को दोषारोपण करता रहा लेकिन आज अमेरिका में 16 लाख संक्रमित मरीजों की संख्या पहुंच गई है जिसमें 95 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अगर केन्द्र सरकार इसी तरह राजनीति करती रही और दोष विपक्ष को देती रही तो आज हम चीन से आगे बढ़े हैं और हो सकता है कल भारत अमेरिका को भी पीछे छोड़ कर कोरोना महामारी के ‘विश्व गुरू’ बन जायेंगे।
सुनील कुमार