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दोस्त मेरे, मज़हबी जज़्बात को मत छेड़िए
नफरत की राजनीति Politics of hate
CAA-NRC के विरोध और समर्थन में जुटे लोगों के बीच हिंसा और अब तक 27 लोगों का मारा जाना, दुकानों, शोरूमों, स्क्रैप मार्किट और चार पहिए व दो पहिए वाहनों को आग के हवाले करना, आगजनी और इतनी हत्याओं का होना संयोग मात्र नहीं है. सत्ताईस लोगों की जान जाना और करोड़ों रुपयों की संपत्ति का नुक्सान, उन्हें जलाकर राख करना, सामानों को लूटना यह सब अनायास नहीं हो सकता. चांदबाग़, जाफराबाद, मुस्तफाबाद, भजनपुरा, ब्रह्मपुरी, घोंडा चौक, नूर-ए-इलाही चौक, यमुना विहार, करावल नगर आदि अनेक स्थानों पर हिंसा का भडकना यह कोई संयोग नहीं हो सकता. इसके पीछे भाजपा नेता कपिल मिश्र, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा के भड़काऊ बयान बड़ी भूमिका निभाते हैं. शाहीन बाग़ को और उन जैसे देश के अन्य स्थानों को भाजपा नेता कपिल मिश्रा द्वारा ‘छोटे छोटे पाकिस्तान’ बताना, पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के सामने ही ऐसे भड़काऊ बयान देना, भाजपा के ही अनुराग ठाकुर व प्रवेश वर्मा द्वारा ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो.....को’ सार्वजानिक रूप से नारे लगाना और लगवाना और मुस्लिम नेता वारिस पठान का ‘15 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ पर भारी पड़ेंगे’ जैसे बयान लोगों को हिंसा के लिए उकसाते हैं. ऊपर से गृहमंत्री अमित शाह की पहले तो मौन स्वीकृति रहती है पर जब हिंसा हो चुकी होती है तब में एक्शन में आते हैं. इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी पहले तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की आवभगत के बहाने चुप्पी साधे रहते हैं और जब हिंसा में 27 लोग मारे जाते हैं तब शांति और भाईचारे की अपील करते हैं. इससे निश्चय ही दाल में कला नजर आता है.
पुलिस की पैरवी - The police remained mute spectators while rioting.
दंगाई जुल्म ढाते रहे पुलिस मूक दर्शक बनी रही. कई जगह तो पुलिस की अल्पसंख्यक वर्ग के प्रति नफरत देखने को मिली. मुसलमान घायलों को एम्बुलेंस तक मुहैया नहीं कराई गयी. पुलिस वालों ने एम्बुलेंस की अनुमति नहीं दी. इतना ही नहीं CAA , NRC से आज़ादी मांगने वालों को बेरहमी से पीटा गया. उपद्रवी पुलिस के सामने ही हिंसा और तोड़-फोड़ करते रहे और क़ानून के रखवालों के सामने ही होता रहा कानून तार-तार.
पुलिस की भूमिका इसी से संदिग्ध हो जाती है कि FIR दर्ज होने पर भी कपिल मिश्रा और अन्य विवादास्पद बयान व नारे देने वालों को गिरफ्तार नहीं कर रही पुलिस. सुप्रीम कोर्ट ने भी इसके लिए पुलिस को फटकार लगाई.
हाईकोर्ट ने भी पहल करते हुए कहा कि ‘दिल्ली को 1984 नहीं बनने देंगे’. इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि पुलिस ने अंत में जो सख्ती दिखाई और प्रशासन ने ‘दंगाइयों को देखते ही गोली मारने’ के आदेश दिए यह सख्ती यदि पहले दिखाई होती तो इतनी जाने जाने से बच जातीं.
ये क्या जगह है दोस्तो !
देश की राजधानी दिल्ली जहां से पूरे देश का शासन चलता है वहां इस तरह की वारदातें होना पूरे देश के लिए चिंता का सबब बन जाता है. शर्मनाक तो ये है कि वहां पर गर्भवती महिला को भी नहीं छोड़ा पुलिस ने.
शांति, सेवा, न्याय का दावा करने वाली पुलिस की बर्बरता तब देखने को मिलती है जब वह गर्भवती महिला की बर्बरता से डंडो से पिटाई करती है. इसी परक उसके हैवानियत वहां भी दिखती है जब वह CAA-NRC का विरोध करने वालों की डंडों से पिटाई करते हुए उन्हें गालियाँ देते हुए राष्ट्रगान गाने को कहती है.
एक सिरफिरा दंगाई पुलिस के सामने ही बेगुनाह लोगों पर अपनी पिस्तौल से ताबड़तोड़ गोलियां चलता है और पुलिस उसे पकड़ती नहीं. हाँ ऐसे में रतनलाल जैसे कर्तव्य परायण पुलिस वाले भी थे जो दंगाइयों की गोलियों का निशाना बने और शहीद हो गए.
दिल्ली के ये 27 लोग जो बेगुनाह थे. नफरत की राजनीति ने उनकी जान ले ली. ये किसी के पिता थे, पुत्र थे, पति थे, किसी परिवार की आजीविका चलाने वाले एकमात्र सदस्य थे. उनके जाने से कितने बच्चे अनाथ हो गए. कितनी औरतें विधवा हो गईं कितनी माओं ने अपने लाल खो दिए. बेगुनाहों के खून से रंग गयी दिल्ली. दिल्ली को सबको सहारा देने वाली कहा जाता है. इस दिल्ली में पूरा भारत बस्ता है. इसे ‘मिनी इंडिया’ कहा जाता है. आज दिल्ली अपने कुछ हिंसक निवासियों के कारण बहुत शर्मिंदा है. कितने घरों में मातम है. लोगों के आंसू थम नहीं रहे हैं.
हावी हो रही एक विशेष मानसिकता
लोकतंत्र पर एक विशेष हिंदूवादी मानसकिता हावी हो रही है इससे लोकतंत्र खतरे में है
संविधान जो अपने हर नागरिक को बराबरी का दर्जा देता है किसी से जाति, धर्म, नस्ल आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करता उसकी अवहेलना हो रही है. बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर ने भी लोकतंत्र के बारे में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा था –“अगर हम लोकतंत्र में भरोसा रखते हैं तो हमें इसके प्रति सच्चा, ईमानदार और वफादार रहना होगा. हमें सिर्फ लोकतंत्र पर मजबूती से विश्वास ही नहीं करना होगा बल्कि हमें यह प्रण करना होगा कि हमें लोकतंत्र बचाने के लिए चाहे जो भी करना पड़े करेंगे.
आज़ादी समता और बंधुत्व को ख़त्म करने में हम लोकतंत्र के दुश्मनों की कोई मदद नहीं करेंगे...अगर लोकतंत्र जिन्दा रहेगा, बचेगा तो यक़ीनन हमें इसके फल मिलेंगे. अगर लोकतंत्र ख़त्म होता है तो यह हमारा अंत होगा...”
जनतंत्र में जहां आम इंसान गर्व से कहता है कि ‘ये देश हमारा आपका नहीं किसी के बाप का’, ‘ये सरकार हमारी आपकी नहीं किसी के बाप की’ वहां एक वर्ग विशेष अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है. भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की साज़िश करता है वह नारे लगता है – ‘जो हिन्दू हित की बात करेगा वही देश पर राज करेगा’ -ये निश्चय ही बेहद चिंताजनक है. यह मानसिकता है कि जो हिन्दू राष्ट्र का समर्थक नहीं वह देशद्रोही है. पर सच्चाई यह है कि यह देश सिर्फ हिन्दुओं का नहीं है यह आदिवासियों, दलितों, ईसाईयों, सिखों, मुसलमानों, जैनियों, बुद्धिस्टो आदि अनेक धर्मों, वर्गों और जातियों के लोगों का है. हम धर्म जाति के बाद में हैं – सबसे पहले भारतीय हैं. पर दुखद है कि देश में विलगाववादी मानसिकता पनप रही है – जो निश्चय ही देश की एकता, सौहार्द और परस्पर भाईचारे की भावना के लिए घातक है. कवि की ये पंक्तियाँ आज प्रासंगिक हैं –
मेरे खून से तेरा खून कैसे जुदा है
इश्क को तूने अदावत कर दिया है
गंगा-जमुनी है यहां तहजीब अपनी
हमने नफरत को मुहब्बत कर दिया है
बुनियादी समस्याओं के समाधान की जरूरत Need to solve basic problems
आज आवश्यकता इस बात की है कि दिल्ली के नेता लोगों की बुनियादी समस्याओं को सुलझाने में मदद करें न कि अपने राजनीतिक हित के लिए आम इंसानों की भावनाओं को भड़काए. यहाँ बड़ी-बड़ी समस्याएं हैं –बेरोजगारी है, गरीबी है, भुखमरी है और कुपोषण जैसी समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है. मंहगाई पर नियन्त्रण की जरूरत है. उत्तम व गुणवक्ता युक्त शिक्षा पर जोर देने की जरूरत है. शिक्षा को रोजगारपरक बनाने की जरूरत है. इंसानियत को बढ़ाने की जरूरत है. किसी भी व्यक्ति को उसके धर्मं-सम्प्रदाय के चश्मे से न देखकर उसे एक इंसान के रुप में देखने की जरूरत है. साम्प्रदायिक सदभाव को बढाने की जरूरत है. जाति व जातिगत भेदभाव मिटाने की जरूरत है. स्थानीय स्तर पर छोटी-छोटी अमन कमेटियां हिंसा को काबू करने में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं. भाईचारे को बढ़ावा दे सकती हैं. और इस तरह वे चारों ओर अमन और शांति का माहौल बना सकती हैं. और इस तरह लोकतंत्र को बचाने में अपनी अहम भूमिका निभा सकती हैं.
India is a secular country
हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है यानी इस देश का कोई धर्म नहीं है. मतलब सबको अपना-अपना धर्म अपनाने की आज़ादी है. पर इसका मतलब यह नहीं है कि हम दूसरों के धर्म में या दूसरे धर्म के लोगों के जीवन में दखलंदाजी करें. अदम गोंडवी जी ने भी अपने एक शेर में कहा है –
छेड़िए एक जंग मिलकर के गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त मेरे, मज़हबी नग्मात को मत छेड़िए
राज वाल्मीकि
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
आप हस्तक्षेप के पुराने पाठक हैं। हम जानते हैं आप जैसे लोगों की वजह से दूसरी दुनिया संभव है। बहुत सी लड़ाइयाँ जीती जानी हैं, लेकिन हम उन्हें एक साथ लड़ेंगे — हम सब। Hastakshep.com आपका सामान्य समाचार आउटलेट नहीं है। हम क्लिक पर जीवित नहीं रहते हैं। हम विज्ञापन में डॉलर नहीं चाहते हैं। हम चाहते हैं कि दुनिया एक बेहतर जगह बने। लेकिन हम इसे अकेले नहीं कर सकते। हमें आपकी आवश्यकता है। यदि आप आज मदद कर सकते हैं – क्योंकि हर आकार का हर उपहार मायने रखता है – कृपया। आपके समर्थन के बिना हम अस्तित्व में नहीं होंगे।
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