उत्तर प्रदेश की राजनीति(Uttar Pradesh politics) में इस समय सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि अति पिछड़ों और गैर-जाटव दलितों पर भाजपा ने जो एकतरफा कब्जा किया है, उसे कमजोर कैसे किया जाए? इसी सवाल का जवाब फिलहाल 2024 में भाजपा को रोक पाने का बुनियादी जवाब है.
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सपा और बसपा इस कब्जे को रोकने में न केवल अक्षम सिद्ध हुई हैं, बल्कि अब इन्हें वापस अपने पाले में फिर से लेने मे भी अक्षम हैं. इसीलिए इनका खेल खत्म हो गया है.
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यह दोनों दल अपने जातीय आधार द्वारा आर्थिक और सामाजिक संसाधनों की लूट के भाजपा के दुष्प्रचार को भी नकार नहीं पाए. जबकि अति पिछड़ी जातियों और गैर-जाटव जातियों का भाजपा की तरफ शिफ्ट होने में इस अफवाह का बहुत बड़ा योगदान रहा है. इनका जातीय आधार इनके कमज़ोर होते ही भाजपा मे शिफ्ट करेगा. उसे रोका ही नहीं जा सकता.
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तोफिर अब विकल्प क्या है?
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मेरी समझ में इस समय केवल दो विकल्प हैं. पहला विकल्प यह है कि इन जातियों के बीच मास स्तर पर अभियान चलाकर यह बताया जाए कि भाजपा ने कैसे आपके हक अधिकार को तबाह कर दिया है. इसके लिए संवाद, पर्चा वितरण, गोष्ठी, बहस, चौपाल आदि लगाया जाए. यह लंबी चलने वाली प्रक्रिया होगी. चमत्कार की उम्मीद व्यर्थ है.
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दूसरा है आरक्षण का पुनर्गठन (restructuring the reservation) और प्रत्येक जातियों का कोटा तय करना. यही नहीं, कुछ OBC और SC जातियों को उनके वर्तमान आरक्षण क्रम से बाहर करना या फिर उनमे बदलाव करना. सपा, बसपा के जातीय बेस को वर्तमान आरक्षण दायरे से हटा कर बदल दिया जाना चाहिए.
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इसके अलावा फिलहाल और कोई तरीका नहीं है, जो भाजपा द्वारा अति पिछड़ी जातियों और गैर जाटव जातियों पर किये गए उसके कब्जे को कमजोर कर पाये.
थोड़ा मुश्किल है पर और कोई विकल्प नहीं है. इसका रिस्कलेना पड़ेगा.
सपा और बसपा के जातिगत आधार का कुछ नहीं हो सकता. वहां मेहनत बेकार है. यह दोनों ही जातियां सिर्फ और सिर्फ भाजपा की सेवा कर सकती हैं क्योंकि वैचारिक तौर पर ये सबसे कमजोर हैं. इन्हें किसी भी कीमत पर सिर्फ सत्ता में हिस्सेदारी चाहिए और ऐसा भाजपा ही फिलहाल दे सकती है.
हरे राम मिश्र
(लेखक उप्र कांग्रेस के पदाधिकारी हैं।)
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Politics of Uttar Pradesh: Is the SP-BSP game over?