............बुझा दो .........
इन रेप की मोमबत्तियों से कुर्सियाँ नहीं जलतीं,
मोम के आंसुओं से सरकारें नहीं पिघलतीं,
ख़बर फिर से वहीं
उठाईगीरों ने
सर उठाकर चलने वाली को
दुनिया से उठा दिया
लोग कोसने लगे सत्ता को
किसे कुर्सी पर बिठा दिया
दुख किसको कितना हुआ है,
सब दिखाने में लग गये।
तमाम सोये हुए लोग,
इक दूजे को जगाने में लग गये।
भरोसा किसपे करें ??
अब कोर्ट कचहरीं में ही
जिंदा इंसाफ़ जले हैं
क्या करें सबका ही ज़मीर
कुर्सी के पाँव तले है।
साँस कैसे लेते हो ?
ऐसी फजां में दम नहीं घुटता ??
प्रश्न पूछता है भारत
मगर वो है
कि कुर्सी से नहीं उठता
एय जनता सुनो
इक और गयी
जाने दो
तुम अपना ख़ून ना उबालो
भांडे बजाओ
कच्ची पक्की मुँडेरों पे चराग ही बालो
टिमटिमाती लौ पे तो जारी है,
रहेगा ...
यूं हीं हवाओं का तमाशा
इस देस ने ही हाय कमजोर गढ़ी
लड़कियों की परिभाषा।
ढोओ थोथी संस्कृतियाँ,
थोथी मर्यादाओं की दीक्षा,
जहाँ सीताओं के ही भाग्य बिंधीं है
अग्नि परीक्षा।
रामायण का है ज्ञान बड़ा
कहाँ मेरे कने हैं
मगर सीता पे अन्याय से ही राम राम बने हैं
प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या
.......अब भी राम,
राम राज्य, राम मंदिर की फ़िकर में हैं डूबे
सीता की आँख से देखो
तो साफ़ दिखेंगें मंसूबे
ग़ौर से सुनो
जब तलक सत्ता की
छली नीतियाँ छलेंगी
बदल-बदल के भेस
बच जायेंगें पाण्डव
लाक्षागृह में निर्दोष
भीलनियाँ हीं जलेंगी.....
डॉ. कविता अरोरा
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डॉ. कविता अरोरा (Dr. Kavita Arora) कवयित्री हैं, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली समाजसेविका हैं और लोकगायिका हैं। समाजशास्त्र से परास्नातक और पीएचडी डॉ. कविता अरोरा शिक्षा प्राप्ति के समय से ही छात्र राजनीति से जुड़ी रही हैं।
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