प्रेमचंद का मानना था, "लड़कियों को अच्छी शिक्षा दी जाय और उन्हें संसार में अपना रास्ता आप बनाने के लिए छोड़ दिया जाय, उसी तरह जैसे हम अपने लड़कों को छोड़ देते हैं। उनको विवाहित देखने का मोह हमें छोड़ देना चाहिए और जैसे युवकों के विषय में उनके पथभ्रष्ट होने की परवाह नहीं करते, उसी प्रकार हमें लड़कियों पर भी विश्वास करना चाहिए। तब यदि वह गृहिणी -जीवन बसर करना चाहेंगी, तो अपनी इच्छानुसार अपना विवाह कर लेंगी, अन्यथा अविवाहित रहेंगी। और सच पूछो तो यही मुनासिब भी है।
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हमें कोई अधिकार नहीं है, कि लड़कियों की इच्छा के विरूद्ध केवल रूढ़ियों के गुलाम बनकर, केवल भय से कि खानदान की नाक न कट जाये, लड़कियों को किसी न किसी के गले मढ़ दें। हमें विश्वास रखना चाहिए, कि लड़के अपनी रक्षा कर सकते हैं, तो लड़कियाँ भी अपनी रक्षा कर लेंगी।"