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हाल में राष्ट्रपति पदनाम को लेकर मचे बवाल पर अगर गौर करें तो यह वर्तमान राजनेताओं के स्तर तथा ज्ञान के भोथरेपन को उजागर करता प्रतीत होता है। हालिया प्रकरण के अनुसार कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी नव निर्वाचित महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति की जगह राष्ट्रपत्नी बोल गये। बाद में उन्होंने अपनी गलती स्वीकारी भी और राष्ट्रपति से माफ़ी मांगने की भी पेशकश की।
अधीर रंजन ने यह भी कहा बताते हैं कि वे बंगाली हैं, इसलिए उनकी हिंदी कई बार गलत हो ज़ाया करती है।
अधीर रंजन स्तर के नेता द्वारा ऐसी शब्दावली का प्रयोग सर्वथा अनुकूल नहीं है, भले ही उसे जुबान फिसलने का कवच पहनाकर कितनी ही लीपा पोती क्यों न की जाए, परंतु खेद प्रकट करने के बाद भी इस मामले को भाजपा द्वारा इतना उबाल देना तथा सोनिया गांधी को बेवजह मामले में घसीटना बिल्कुल भी उचित नहीं है। पक्ष- विपक्ष द्वारा इस प्रकरण में राष्ट्रपति जैसे गरिमापूर्ण पद को फुटबॉल बनाना गिरी हुई राजनीति की पराकाष्ठा से भी निम्न प्रतीत हो रही है।
कितना सही है ‘राष्ट्रपति’ पदनाम?
जब संविधान निर्माताओं द्वारा अंग्रेजी के ‘प्रेसीडेंट’ शब्द का हिन्दी विकल्प तलाशा गया, तो कोई सटीक शब्द नहीं मिल पाया, ऐसे में हिन्दी के प्रतिष्ठित दैनिक ‘आज’ द्वारा ‘राष्ट्रपति’ शब्द सुझाया गया और तत्कालीन समय तथा परिस्थिति के हिसाब से इसे ही उचित स्वीकार कर लिया गया। परंतु क्या ‘राष्ट्रपति’ शब्द ‘प्रेसीडेंट’ का सही विकल्प है ? नहीं। राष्ट्रपति दो शब्दों – ‘राष्ट्र’ तथा ‘पति’ की संधि से बनाया गया है।
विकिपिडिया के अनुसार ‘पति’ शब्द बहुत-सी हिन्द-ईरानी भाषाओँ में 'स्वामी' या 'मालिक' के लिए एक शब्द है। यह संस्कृत, हिन्दी, अवस्ताई फ़ारसी और बहुत सी अन्य भाषाओँ में देखा जाता है। इसका स्त्रीलिंग रूप 'पत्नी' है, जिसका अर्थ 'स्वामिनी' या 'मालकिन' निकलता है।
‘पति’ शब्द अक्सर दूसरे शब्दों के पीछे स्वामित्व दिखाने के लिए जोड़ा जाता है, जैसे कि भूपति, पशुपति, गणपति, करोड़पति, लखपति, सेनापति और क्षेत्रपति। इसी क्रम में राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, सभापति जैसे शब्द भी सृजित होते चले गए। परंतु लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ‘स्वामी’ या ‘मालिक’ जैसे पदनाम की कोई जगह नहीं होती। यहाँ शासन का सर्वोच्च से सर्वोच्च पदाधिकारी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जनता का प्रतिनिधि होता है या पब्लिक सर्वन्ट होता है। इसलिए ‘राष्ट्रपति’ यानि ‘राष्ट्र का स्वामी’ या ‘मालिक’ किसी भी दृष्टि से उचित नजर नहीं आता।
क्या हो राष्ट्रपति पदनाम का विकल्प ?
अगर गौर से देखा जाए तो राष्ट्रपति पदनाम का विकल्प तो भारत के राष्ट्रगान में ही निहित है, जहां राष्ट्र के मुखिया के भारत भाग्य विधाता होने की कल्पना की गई है और उसे जन गण मन का अधिनायक बताया गया है। यह कल्पना न केवल कल्पना है, अपितु वास्तव में धरातल पर उतर सकती है, अगर मुखिया संविधान की कसौटियों पर खरा उतरे। अधिनायक का अर्थ है – मुखिया। मुखिया कहीं तानाशाह या निरंकुश न हो जाए इसके लिए भारतीय संविधान में पूर्ण व्यवस्था की गई है और महाभियोग नामक नियंत्रक चाबुक भी प्रदान किया गया है। अतः राष्ट्रपति का पदनाम ‘राष्ट्राधिनायक’ भी किया जा सकता है। अगर और सरल पदनाम करना है तो जिस प्रकार राज्यों में गवर्नर को राज्यपाल में तबदील किया गया है उसी तरह केंद्र में ‘राष्ट्रपाल’ का पदनाम रखा जा सकता है। वैसे कुछ व्यक्ति ‘राष्ट्राध्यक्ष’ का भी सुझाव दे रहे हैं।
हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री का बड़प्पन है कि वो अपने आप को प्रधानमंत्री की बजाय प्रधान सेवक कह रहे हैं, अतः उन्हें अपने बड़प्पन का साहस दिखाते हुए प्रधानमंत्री पद का नामकरण ही प्रधान सेवक कर देना चाहिए ताकि लोगों को लगे कि वो वास्तव में सेवक हैं, मात्र दिखावे के नहीं। इसी तरह प्रशासन में भी कुछ पद हैं जिनमें अहंकार व सत्ता की बू आती है, जैसे नगराधीश, जिलाधीश। यहाँ प्रयुक्त अधीश शब्द का अर्थ है -- स्वामी, मालिक, सरदार, राजा। अकसर देखा गया है कि इन मे से कुछ अधिकारी भी अपने नाम को सार्थक करते प्रतीत होते हैं। अतः इनका भी पद नाम प्रमुख नगर सेवक तथा प्रमुख जिला सेवक आदि कर देना चाहिए ताकि उन्हें एहसास हो कि वो जन सेवक हैं, मालिक या राजा नहीं। थानेदार को भी प्रमुख थाना सेवक होना चाहिए।
परिवर्तन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है और प्रगति का द्योतक भी है। अतः समय के साथ बदलाव जरूरी हो जाता है। वैसे भी जब शहरों के नाम -मद्रास से चेन्नई, बम्बई से मुंबई, इलाहाबाद से प्रयागराज किया जा सकता है तो जो पदनाम भ्रांति पैदा करते हैं, उन्हें क्यों नहीं बदला जा सकता ? सरकार के पुरोधाओं, भाषा विज्ञानियों तथा विद्वानों को इस बारे में जरूर सोचना चाहिए।
जग मोहन ठाकन
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
Presidential Designation Case: What's the Option?