/hastakshep-prod/media/post_banners/HtnXOQIq8GRDULrEcZ3o.jpg)
रांची से शाहनवाज हसन.
झारखंड में पत्रकारों की सुरक्षा (Security of journalists in Jharkhand) हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है। रघुवर दास के कार्यकाल में झारखण्ड के विभिन्न जिलों में बड़ी संख्या में पत्रकारों की हत्यायें एवं झूठे मुकदमों के बाद जेल भेजने की घटनाओं को तब विपक्षी दलों चुनावी मुद्दा बनाते हुए इसे अपने घोषणापत्र में शामिल करने की बात कही थी।
झारखण्ड में अब भी पत्रकारों को निष्पक्ष पत्रकारिता करने पर झूठे मुकदमे दर्ज हो रहे हैं
पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आती है तो एक मजबूत पत्रकार सुरक्षा कानून बनाएगी। अब झारखंड में कांग्रेस के समर्थन से झामुमो की हेमन्त सोरेन की सरकार सत्ता पर आसीन है। पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन काफ़ी संवेदनशील रहे हैं बावजूद इसके झारखण्ड के विभिन्न जिलों में अब भी पत्रकारों को निष्पक्ष पत्रकारिता करने पर झूठे मुकदमे दर्ज हो रहे हैं। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ (Fourth pillar of democracy) संवैधानिक संरक्षण के अभाव में कमज़ोर दिखाई देता है।
झारखण्ड के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में सरकार की वेबसाइट पर पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर नए कानून का मसौदा तैयार किया गया है। झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा झारखण्ड में भी तत्काल इस मसौदे को लागू करने की मांग को आज सरकार के समक्ष मज़बूती से रखने का कार्य किया।
झारखण्ड के 22 जिलों में पत्रकारों ने पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की मांग को लेकर एक दिवसीय धरना दिया, धरना के उपरांत मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गया।
छतीसगढ़ में सत्ता में आने के बाद ही बघेल सरकार ने पत्रकारों को किये वादे को पूरा करते हुए फरवरी महीने में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आफताब आलम की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इस समिति को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसे समिति ने उसे तय समय में पूरा कर लिया। वहीं झारखण्ड में अब तक इस पर कोई पहल नहीं की गयी है।
Draft of the law made for the protection of journalists in Chhattisgarh
छतीसगढ़ में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर बनाये गए कानून के मसौदे के मुताबिक ऐसा कोई व्यक्ति जो शासकीय सेवक है, यदि इस कानून या इस कानून के तहत बनाए गए नियमों के अंतर्गत अपने कर्तव्यों की जानबूझ कर उपेक्षा करता है तो उसे एक वर्ष तक की सज़ा हो सकती है। इस कानून तोड़ने की जांच पुलिस उपाधीक्षक से नीचे के पदाधिकारी नहीं कर सकते। साथ ही यह अपराध जमानती होगा।
क्या है छत्तीसगढ़ मीडियाकर्मी सुरक्षा कानून
‘छत्तीसगढ़ मीडियाकर्मी सुरक्षा कानून’ के नाम से तैयार इस मसौदे में सुरक्षा पाने के हकदार पत्रकारों की अर्हता आदि का भी जिक्र है। इसके अनुसार -
- ऐसा व्यक्ति जिसके गत 3 महीनों में कम से कम 6 लेख जनसंचार माध्यम में प्रकाशित हुए हों।
- ऐसा व्यक्ति जिसे गत 6 माह में किसी मीडिया संस्थान से समाचार संकलन के लिए कम से कम 3 भुगतान प्राप्त किया हो।
- ऐसा व्यक्ति जिसके फोटोग्राफ गत 3 माह की अवधि में कम से कम 3 बार प्रकाशित हुए हों।
- स्तंभकार अथवा स्वतंत्र पत्रकार जिसके कार्य गत 6 माह के दौरान 6 बार प्रकाशित/प्रसारित हुए हों।
- ऐसा व्यक्ति जिसके विचार/मत गत तीन माह के दौरान कम से कम 6 बार जनसंचार में प्रतिवेदित हुए हों।
- ऐसा व्यक्ति जिसके पास मीडिया संस्थान में कार्यरत होने का परिचय पत्र या पत्र हो।
झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन की मांग | Demand of Jharkhand Journalists Association
पत्रकारों के पंजीकरण के लिए भी सरकार अथॉरिटी (पत्रकार सुरक्षा कानून समिति) का निर्माण करे।
तैयार कानून के प्रभावी होने के 30 दिन के अंदर सरकार पत्रकारों के पंजीकरण के लिए अथॉरिटी(समिति) नियुक्त करे।
अथॉरिटी के गठन में कम से कम दो मीडियाकर्मी जिलावार हों जिनकी वरिष्ठता कम से कम 10 वर्ष हो। इनमें से एक महिला मीडियाकर्मी भी हों।
अथॉरिटी में शामिल होने वाले मीडियाकर्मियों का कार्यकाल दो वर्ष का हो।
कोई भी मीडियाकर्मी लगातार 2 कार्यकाल से ज्यादा अथॉरिटी का हिस्सा नहीं रह सकता।
इस समिति का सदस्य कौन होगा
कोई पुलिस अधिकारी, जो अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक से निम्न पद का न हो.।
जनसम्पर्क विभाग के विभाग प्रमुख और तीन पत्रकार, जिन्हें कम से कम 12 वर्षों का अनुभव हो।
जिनमें कम से कम एक महिला सदस्य होंगी। इस समिति में भी नियुक्त किए गए पत्रकारों का कार्यकाल दो साल का ही होगा और कोई भी पत्रकार दो कार्यकाल से ज्यादा इस समिति का हिस्सा नहीं बन सकता है।
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए समिति के गठन के 30 दिन बाद सरकार झारखण्ड के हर एक जिले में जोखिम प्रबंधन इकाई का गठन करे। इस जोखिम इकाई के सदस्य जिले के कलक्टर, जिला जनसम्पर्क अधिकारी, पुलिस अधीक्षक और दो पत्रकार भी हों।
पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की मांग झारखण्ड में सबसे पहले वर्ष 2014 में झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा उठाई गयी थी। वर्ष 2015 में इसे राष्ट्रीय स्तर पर संगठन की ओर से उठाया गया, तब कई संगठनों ने इसका उपहास उड़ाया था। आज उपहास उड़ाने वाले भी झारखण्ड जर्नलिस्ट एसोसिएशन की मांग का ही अनुसरण कर रहे हैं।
जेजेए ने आज समस्त झारखण्ड के पत्रकारों को पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की मांग को लेकर गोलबंद किया है, संघर्ष की शुरुआत जेजेए ने कर दी है।
/hastakshep-prod/media/post_attachments/gqrOEI4OvLC5DQZblEGi.jpg)