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Prime Minister, will a hungry and stressed man become Bahubali after getting the vaccine?
संसद के मानसून सत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi in the Monsoon Session of Parliament) अपने स्वभाव के अनुसार फिर जमीनी हकीकत से दूर जाकर बोले। प्रधानमंत्री ने बड़े गर्व से कहा कि वैक्सीन लगवाकर 40 करोड़ लोग हुए बाहुबली बन गये हैं।
यदि कागजी आंकड़े मान भी लें तो 40 करोड़ लोगों को मात्र एक डोज ही लगी है। एक बार को मान भी लिया जाए कि 40 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुकी है, तो क्या रोजी-रोटी के संकट को झेल रहा तनावग्रस्त व्यक्ति मात्र वैक्सीन लगने से बाहुबली बन जाएगा ? जबकि जगजाहिर है कि प्रतिरोधक क्षमता पौष्टिक आहार और स्वस्थ शरीर होने से बढ़ती है।
नोटबंदी, जीएसटी और निजी कंपनियों में हुई बड़े स्तर पर छंटनी के बाद आई कोरोना महामारी के चलते लोगों की जिंदगी तनावग्रस्त हो गई है। कोरोना की दूसरी लहर में घरों में कैद हुए लोग डिस्प्रेशन से बाहर निकल नहीं पाये थे कि उनके मन में डर बैठा दिया गया। ऐसे में प्रधानमंत्री का वैक्सीन लगने का ढिंढोरा पीटना अपने मुंह मियां मट्ठू बनना है।
दरअसल मोदी सरकार के एजेंडे में आम आदमी है ही नहीं
यह सरकार हर योजना, हर गतिविधि संपन्न लोगों को ध्यान में रखते हुए करती है। देश में जब कोरोना महामारी के चलते हर व्यक्ति की आय कम हुई तो प्रधानमंत्री के घनिष्ठ दोस्त अडानी और अंबानी की लगातार बढ़ी। देश भुखमरी से जूझ रहा है और मोदी सरकार हजारों करोड़ रुपये खर्च कर प्रधानमंत्री का नया आवास बनवा रही है।
प्रधानमंत्री जनता को बस बातों से ही छकने की रणनीति पर काम कर रहे है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री निजी कंपनियों में छंटनी पर कुछ नहीं बोलते। निजी स्कूलों में बिना स्कूल खोले पूरी फीस मांगने पर कुछ नहीं बोलते। उनके ही द्वारा लाये गये तीन नये किसान कानूनों के चलते देश की खेती पर पूंजीपतियों के कब्जा होने की आशंका पर कुछ नहीं बोलते, श्रम कानून में संशोधन के चलते तबाह हो रही युवाओं की जिंदगी पर कुछ नहीं बोलते। देश में लगातार बढ़ रही भुखमरी पर कुछ नहीं बोलते। बेरोजगोरी और निजी कंपनियों में चल रही छंटनी के चलते पूरे-पूरे के परिवार के साथ बढ़ रही आत्महत्या की घटनाओं पर कुछ नहीं बोलते।
The Prime Minister has made India a land of dreams.
प्रधानमंत्री ने भारत को सपनों का देश बना दिया है। जनता को बस वह सपने ही दिखाते रहते हैं और जनता भी है कि बिना नींद प्रधानमंत्री द्वारा दिखाये गये सपने देख रही है।
प्रधानमंत्री को ज्ञात होना चाहिए कि इसी साल मात्र अप्रैल माह में 70 लाख लोगों का रोजगार छिना है। सीएमआईई की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल में देश की बेरोजगारी दर 7.97 फीसदी बढ़ गई थी जो मार्च में 6.5 फीसदी थी। फिलहाल इसमें सुधार की कोई गुंजाइश भी नहीं दिखाई दे रही है। तीसरी लहर के अंदेशे के चलते किसी भी क्षेत्र में कोई भी व्यक्त पैसा लगाने से बच रहा है।
जैसे प्रधानमंत्री 40 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगने के बाद बाहुबली की संज्ञा दे रहे हैं, ऐसे ही प्रधानमंत्री 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन की बात कर रहे थे।
प्रधानमंत्री का यह दावा तब है जब 2017 से 2020 के बीच 11,520 टन अनाज सरकार के गोदामों में ही रखे-रखे सड़ गया था। जो देश ग्लोबल हंगर इंडेक्स (भूख सूचकांक) में शामिल 107 देशों में से 94वें स्थान है, उस देश का प्रधानमंत्री वैक्सीन लगने से अपने देश के लोगों को बाहुबली की संज्ञा देने लगा है। मतलब अपने ही देश का प्रधानमंत्री भुखमरी पर अपने ही देश के लोगों का मजाक बना रहा है।
प्रधानमंत्री को ज्ञात होना चाहिए कि भारत से अपेक्षाकृत कमजोर माने जाने वाले पड़ोसी देशों पाकिस्तान (88), नेपाल (73), बांग्लादेश (45) और इंडोनेशिया (70) से भी पीछे है। हंगर-इंडेक्स में चीन दुनिया में सबसे संपन्न 17 देशों के साथ पहले नंबर पर है। श्रीलंका और म्यामांर की स्थिति भी भारत से बेहतर है। हां यह बात जरूर है कि वैक्सीन लगवाकर प्रधानमंत्री की बाहुबली बनने की बात भले ही हास्यास्पद लग रही हो पर सत्ता में बैठे लोग जनता की कमाई पर एशोआराम की जिंदगी बिताते-बिताते बाहुबली जरूर बन गये हैं।
वैसे भी जहां तक 40 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगने का सवाल है तो देश में ऐसे काफी उदाहरण सामने आये हैं कि बिना वैक्सीन लगे ही संबंधित व्यक्ति का नाम रिकार्ड में चढ़ गया।
उत्तर प्रदेश के मथुरा में ऐसे दो उदाहरण देखने को मिले। बिना टीकाकरण कराए ही लोगों के पास वैक्सीन करा लेने की सूचना आ गई। ऐसे में लोगों में परेशानी हुई कि रिकॉर्ड में वैक्सीनेशन दर्ज होने के बाद अब उन्हें वैक्सीन कैसे लगेगी ? विभाग से जुड़े लोगों ने तकनीकी गड़बड़ी बताकर पल्ला झाड़ लिया।
सोचने की बात यह है कि जब एक छोटे से शहर मथुरा में ऐसे मामले सामने आये हैं तो देश के कितने शहर और कितने गांवों में ऐसे मामले हुए होंगे ?
चरण सिंह राजपूत
लेखक वरिष्ठ पत्रकार व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।