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स्त्री क्या तुम केवल श्रद्धा हो? मैं फूल नहीं फूलन बनूँगी

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hastakshep
12 Jul 2020
स्त्री क्या तुम केवल श्रद्धा हो? मैं फूल नहीं फूलन बनूँगी

स्त्री जीवन के तमाम सारे संबंधों को समझने की जरूरत -प्रो. सुधा सिंह

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अलवर, (राजस्थान) 12 जुलाई, 2020. कल नोबल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामगढ़, अलवर- Nobles Postgraduate College, Ramgarh, Alwar (राज ऋषि भर्तृहरि मत्स्य विश्वविद्यालय, अलवर से सम्बद्ध) एवं भर्तृहरि टाइम्स, पाक्षिक समाचार पत्र, अलवर के संयुक्त तत्त्वाधान में एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार, स्वरचित काव्यपाठ/मूल्यांकन ई-संगोष्ठी-2 का आयोजन किया गया। जिसका विषय ‘स्त्री संबंधी मुद्दे’ था। इस संगोष्ठी में देश भर के 21 राज्यों एवं 3 केंद्र शासित प्रदेश आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और पुडुचेरी से सहभागिता करने वालों ने भाग लिया। जिनमें 16 युवा कवि-कवयित्रियों ने अपना काव्य पाठ किया।

इस संगोष्ठी, में मूल्यांकनकर्ता वरिष्ठ काव्य-मर्मज्ञ/साहित्यालोचक प्रो. सुधा सिंह (दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली) मौजूद रहीं।

कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ. सर्वेश जैन (प्राचार्य, नोबल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामगढ़, अलवर) ने अथिति का स्वागत करते हुए कहा कि प्रो. सुधा सिंह आज के समय की चर्चित व स्त्रीवादी आलोचक हैं। और उनका परिचय देते हुए बताया कि प्रो. सुधा सिंह की मीडिया एवं पत्रकारिता पर 9 किताबें एवं सोशल साइंस व भाषा साहित्य पर 11 किताबें आ चुकी हैं। जिसमें ‘ज्ञान का स्त्रीवादी पाठ’ सबसे प्रसिद्ध एवं चर्चित पुस्तक है।

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डॉ. जैन ने सभी कवि-कवयित्रियों, सहभागियों और श्रोताओं का स्वागत किया।

काव्य पाठ के उपरांत प्रो. सुधा सिंह ने सभी युवा कवि-कवयित्रियों की कविताओं का मूल्यांकन करते हुए अपनी टिप्पणी में कहा कि यह मेरे लिए बहुत ही अद्भुत अनुभव रहा, जिसमें काव्य पाठ का जीवंत रूप देखने को मिला, जिसकी मैं साक्षी बनीं। लगभग सभी कविताएं स्त्री मुद्दों से जुड़ी हुई थीं। जो सभी ने अनुभव से संयोजित करके अपनी कविता में ढाला है। कुछ कविताएँ ऐसी थीं, जो इतिहास का केवल अतीत गाथा न बनकर वर्तमान को संबोधित कर रही थीं। कुल मिलाकर यह बहुत ही दिलचस्प अनुभव था। जरा सी आँख खोलकर प्रयास करें तो स्त्री की जो जद्दोजहद है। उसके संघर्षों को समझ सकते हैं। कुछ कविताएँ माँ के ऊपर, कुछ स्त्री जीवन के तमाम संबंधों जहाँ परिवार के भीतर और समाज के अन्दर तमाम तरह के संबंधों का निर्वाहन करती हैं, उस पर थी। इस तरह काव्य पाठ में स्त्री के जीवन का लगभग हर पक्ष कविताओं में ऊभर कर आया।

उन्होंने युवा कवि-कवित्रियों को सुझाव देते हुए कहा कि प्रेमचन्द्र, दिनकर, वर्जिनिया वोल जो हमारे आदि कवि व साहित्यकार हैं उनको भी पढ़ना चाहिए।
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काव्य पाठ करने वालों में सुषमा पाखरे (वर्धा-महाराष्ट्र) ने ‘मैं फूल नहीं फूलन बनूँगी’, अंजनी शर्मा (गुरुग्राम, हरियाणा) ने ‘स्त्री क्या तुम केवल श्रद्धा हो?’, आकांक्षा कुरील (वर्धा-महाराष्ट्र) ने ‘बंदिशें’, अंशुमाला (बिहार) ने ‘माँ’, हरिकेश गौतम (सीतापुर, यूपी) ने ‘जहाँ बच्चियों में औरत पढ़ी जाती हैं’, जोनाली बरुआ (असम) ने ‘परम प्राप्ति’, के. कविता (पुडुचेरी) ने ‘बातें करनी हैं-नर से ज्यादा, नारी से कुछ’, डॉ. मंजुला (पटना) ने ‘भारत की नारी’, जे.डी. राना (अलवर, राजस्थान) ने ‘भारत की बेटी’, डॉ. मोंजू मोनी सैकिया (असम) ने ‘आज की लड़की हूँ मैं’, प्रीति शर्मा (बुलंदशहर, यूपी) ने ‘नारी’, संध्या राज मेहता (ठाणे, महाराष्ट्र) ने ‘नारी शक्ति’, शबनम तबस्सुम (अलीगढ़) ने ‘प्यार या भ्रम’, प्रदीप कुमार माथुर (अलवर, राजस्थान) ने ‘कामगार महिलाएं और बेटियां’, तूलिका (ओड़िशा) ने ‘खिड़कियाँ’, वैशाली राजेश बियानी (महाराष्ट्र) ने ‘कौन हूँ मैं? क्या पहचान है मेरी?’ कविताएँ पढ़ीं। इस संगोष्ठी का संचालन करते हुए कादम्बरी (संपादक, भर्तृहरि टाइम्स, पाक्षिक समाचार पत्र, अलवर) ने कहा कि हम एक या दो काव्य पाठ ई-संगोष्ठी से कविता लिखना नहीं सिखा सकते लेकिन कविता की एक समझ विकसित कर सकते हैं।

धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मंजू (सहायक प्राध्यापक, नोबल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामगढ़, अलवर) ने किया।
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