Advertisment

लॉकडाउन में पूंजीपतियों की संपत्ति बढ़ी, लेकिन स्वयं सहायता समूह की महिलाओं से वसूला गया जबरन कर्ज

author-image
hastakshep
04 Mar 2021
लॉकडाउन में पूंजीपतियों की संपत्ति बढ़ी, लेकिन स्वयं सहायता समूह की महिलाओं से वसूला गया जबरन कर्ज

Advertisment

Property of capitalists increased in lockdown, but women self-help groups were forcibly recovered

Advertisment

पटना से विशद कुमार. आज 04 मार्च 2021 को भाकपा-माले का विधायक दल कार्यालय छजूबाग, पटना में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने बताया कि केंद्र की मोदी सरकार और बिहार की नीतीश सरकार की नीतियों ने स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को सड़क पर उतरने को विवश कर दिया है। इन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के नाम पर इन्हें पहले कर्ज दिया गया और अब इन्हें सूदखोरी के भयानक दलदल में धकेल दिया गया है। अत: कर्ज माफी और रोजगार की गारंटी की मांग पर कल 5 मार्च को ऐपवा और स्वयं सहायता समूह संघर्ष समिति के संयुक्त तत्वावधान में विधानसभा के समक्ष गर्दनीबाग में एक रैली होगी। यह रैली 12 बजे से आरंभ होगी।

Advertisment

उक्त संवाददाता सम्मेलन में उनके साथ ऐपवा की बिहार राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे व पटना नगर की सचिव अनीता सिन्हा भी उपस्थित थीं।

Advertisment

मीना तिवारी ने आगे कहा कि बिहार की करोड़ों महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों, माइक्रो फाइनेंस वित्त कंपनियों और निजी बैंकों द्वारा स्व-रोजगार के जरिए आत्मनिर्भर बनाने के नाम पर कर्ज दिया गया। लेकिन लॉकडाउन के दौरान महिलाओं का कारोबार पूरी तरह ठप्प हो गया था और वे इन कर्जों को चुकाने और उन पर ब्याज देने पर पूरी तरह असमर्थ थीं। फिर भी उस दौर में महिलाओं को धमकी देकर कर्ज की वसूली की जाती रही। ऐसे में यह नई किस्म की महाजनी व्यवस्था का प्रारम्भ हुआ है।

Advertisment

मोदी सरकार द्वारा पेश बजट में इन महिलाओं को कोई राहत नहीं मिली। एक तरफ सरकार बड़े पूंजीपतियों को बेल आउट पैकेज दे रही है, रिपोर्ट बतला रहे हैं कि लॉकडाउन के दौरान उनकी संपत्ति का विस्तार हुआ है, लेकिन महिलाओं के छोटे कर्जों को माफ नहीं किया जा रहा है। यह सरकार की कौन सी नीति है?

Advertisment

बिहार की नीतीश सरकार भी जीविका दीदियों का लगातार शोषण ही कर रही है। लंबे समय से मांग है कि जीविका दीदियों को न्यूनतम 21,000 रुपये मानदेय दिया जाए, लेकिन सरकार इसमें आनाकानी कर रही है। आंध्रप्रदेश की सरकार ने अगस्त 2020 में समूहों के 27 हजार करोड़ रुपये की देनदारी का भुगतान कर इनके कर्ज को माफ करने का काम किया। फिर बिहार सरकार इस काम को क्यों नहीं कर सकती है?

Advertisment

बिहार में ऐपवा और स्वयं सहायता समूह संघर्ष समिति ने विधानसभा चुनाव के पहले कर्ज माफी को लेकर पूरे राज्य में व्यापक प्रदर्शन किया था और जिसके कारण कई जगहों पर कर्ज वसूली पर तात्कालिक रूप से रोक लगी थी और उसके बाद दबाव में राज्य सरकार ने इन समूहों को छिटपुट तरीके से छोटे-मोटे काम दिए हैं, लेकिन अभी भी हर समूह के लिए जीविकोर्पाजन अर्थात रोजगार की गारंटी नहीं की गई है।

बता दें कि इस बावत माले के विधायक सुदामा प्रसाद ने सदन को एक पत्र देकर इन समस्याओं पर सरकार का ध्यान आकृष्ट किया है।

कल के प्रदर्शन में माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं की मनमानी पर रोक लगाने, महिलाओं का कर्ज माफ करने, ब्याज वसूली पर अविलंब रोक लगाने, एक लाख तक के कर्ज को ब्याज मुक्त करने, 10 लाख तक के कर्ज पर 0 से 4 प्रतिशत की दर से ब्याज लेने, स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को अनिवार्य रूप से रोजगार देकर उत्पादों की खरीद करने, कर्ज के नियमन के लिए राज्य स्तरीय प्राधिकार का गठन करने, जीविका दीदियों को 21,000 रु. देने आदि मांगें प्रमुखता से उठायी जाएंगी।

Advertisment
सदस्यता लें