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हरियाली से खुशहाली संभव है

हरियाली से खुशहाली संभव है

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हरियाली पर पड़ रहा है मौसम का मिजाज बदलने का प्रतिकूल असर

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वैश्विक स्तर पर मानवीय गतिविधियों, प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन की वजह से पारिस्थितिक असंतुलन धरती के प्राणियों के लिए संकट बनता जा रहा है, इसका सीधा प्रभाव कृषि और किसान पर पड़ता है. विगत सालों में देश के कई हिस्सों में किसान जलवायु परिवर्तन की वजह से असमय वर्षा और सूखे की मार झेल रहे हैं. बढ़ते औद्योगकरण के कारण वायुमंडल में भारी मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है. परिणामतः पूरे भूमंडल पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ता जा रहा है. खासकर बिहार के तराई क्षेत्र और नेपाल के सीमावर्ती जिले बाढ़ से काफी प्रभावित हो रहे हैं. वहीं उसके कुछ हिस्से सूखे से प्रभावित हो रहे हैं. यह सब मौसम का मिजाज बदलने के कारण हो रहा है.

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जल भी जरूरी है और हरियाली भी.

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जल और हरियाली के लिए गांवों में पंचायत स्तर पर थोड़े बहुत काम भी हो रहे हैं, लेकिन समस्या यह है कि गांव के अधिकांश किसान व मजदूर ग्लोबल वार्मिंगजलवायु परिवर्तन की जानकारी से अनभिज्ञ हैं. हालांकि वह जल और हरियाली की महत्ता को समझते हैं. वह समझते हैं कि 'जल है तो कल है'.

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गांव के किसान आज भी जल, जंगल और जमीन को बचाने की दिशा में बेजोड़ कार्य कर रहे हैं. वातावरण को हरा-भरा रखने के लिए पेड़-पौधों की देखभाल कर रहे हैं. शहर की अपेक्षा गांव का वातावरण पूर्णतः शुद्ध, सौम्य और जीवनदायी है. गांव में खेत, खलिहान, सड़क, पगडंडी सभी हरे-भरे हैं. परिणामतः तालाब, कुआं आदि भी अधिकांश जगह जीवित हैं जिससे लोग खेतों की सिंचाई, पशुओं को पानी आदि का दैनिक दिनचर्या पूरा कर रहे हैं.

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मुजफ्फरपुर में अभी भी जीवित हैं कुछ कुएं और तालाब

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बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अंतर्गत पारू प्रखंड के चांदकेवारी पंचायत में तकरीबन 15 से 20 कुएं और दर्जन भर तालाब अभी भी जीवित हैं. जहां लोग मछली पालन करते हैं.

पंचायत की मुखिया रीना कुमारी इस संबंध में ने बताया कि पूरे पंचायत में राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल, जीवन और हरियाली के तहत गांव में सड़कों के किनारे जामुन, आम, महोगनी आदि के 1200 पौधे लगाए गए हैं. इनकी देखभाल के लिए 12 वनपोषक भी नियुक्त किये गए हैं जो सप्ताह में एक दिन सिंचाई करते हैं. पंचायत के लगभग 7 कुओं का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण किया गया है.

मुखिया रीना कुमारी कहती हैं कि पंचायत में सबसे बड़ी समस्या लोगों में वृक्षारोपण को लेकर जागरूकता का अभाव है. सड़क किनारे लग रहे पौधारोपण कार्य में सहयोग नहीं करते हैं.

हालांकि किसानों का कहना है कि सड़क के किनारे वृक्ष लगाने से उसकी छाया, उनके खेत के कुछ भूभाग को प्रभावित करते हैं.

वहीं मोहब्बतपुर पंचायत की मुखिया नीलू देवी ने बताया कि पंचायत के चार गांवों में 400 छायादार पौधे लगाए गए हैं. जिसकी देखभाल के लिए वनपोषक को 8 दिनों की सिंचाई के लिए प्रतिदिन के हिसाब से 210 रुपए मजदूरी दी जाती है. वह पौधों की देखभाल से लेकर सिंचाई तक की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं.

प्रसन्नता जाहिर करते हुए मुखिया कहती हैं कि आने वाले वक्त में यही नन्हे-से पौधे 10 हजार की आबादी वाली पंचायत को हरियाली के साथ-साथ प्राणवायु भी देंगे.

क्या है बिहार सरकार की जल-जीवन-हरियाली योजना

जल-जीवन-हरियाली योजना बिहार सरकार द्वारा पृथ्वी दिवस के अवसर पर 09 अगस्त 2019 को आरंभ किया गया एक महत्वाकांक्षी मिशन है. जिसका स्लोगन ‘‘जल-जीवन-हरियाली, तभी होगी खुशहाली" रखा गया है. पर्यावरण के प्रति लोगों की जवाबदेही, सजगता, और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए समेकित प्रयास के लिए जल-जीवन-हरियाली मिशन का गठन किया गया है. इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा था कि पर्यावरण असंतुलन की वजह से ही नेपाल की तराई व सीमावर्ती जिलों में अचानक तेज वर्षा से फ्लैश फ्लड आ जाती है. दुनिया विकास के नाम पर वृक्षों की अंधाधुंध कटाई कर रही है. बिहार में जहां 1200 से 1500 मिलीमीटर वर्षा हुआ करती थी, वहीं पिछले 13 सालों में यह घटकर केवल 900 मिलीमीटर रह गया है. पर्यावरण में तेज़ी से हो रहे बदलाव के कारण राज्य में वर्षा की अनियमितता, वज्रपात और लू की स्थिति लगातार बढ़ती जा रही है.

राज्य बंटवारे के बाद बिहार को वनों का सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा

वर्ष 2000 में झारखंड से अलग होने के बाद बिहार को वनों का सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा था. बंटवारे के बाद बिहार में केवल 9 प्रतिशत वन क्षेत्र रह गए थे. लेकिन राज्य सरकार के प्रयासों और लगातार पेड़ लगाने को बढ़ावा देने के परिणामस्वरूप 20 सालों में यह बढ़कर 15 प्रतिशत हो गया है.

बिहार में हरित आवरण के लिए 24 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है जिसमें 19 करोड़ पौधे लगाए जा चुके हैं. इसके तहत सड़कों के किनारे, बांध, तालाब, पईन, पोखर, आहर आदि के किनारे वृक्ष लगाना है. दूसरी ओर सौर ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा के जरिए भी गांवों को हरित आवरण से परिपूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके अंतर्गत जल संरक्षण, मृदा-संरक्षण, मौसम अनुकूल फसल चक्र, टपकन सिंचाई, जैविक खेती को बढ़ावा देना और मिट्टी की गुणवता को बढ़ाना आदि शामिल है. इसके लिए राज्य सरकार प्रखंड से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक पर्यावरण संरक्षण व हरित आवरण की सफलता के लिए हर प्रकार से जन जागरूकता अभियान चला रही है.

सरकार के इन प्रयासों का असर भी दिखने लगा है. चांदकेवारी पंचायत के विभिन्न गांवों के युवा पीर मोहम्मद, अजय शर्मा, रंधीर कुमार और अमृत राज आदि ने बताया कि गांव में गोष्ठी, कार्यशाला, प्रचार-प्रसार, दीवार लेखन, रैली आदि पहले कभी नहीं हुआ था. सरकार की तमाम योजनाएं जमीन पर कम, कागज पर अधिक चमकती थी. हरित आवरण के बारे में पंचायत वासियों को कोई जानकारी नहीं है. इसीलिए हमें पर्यावरण की महत्ता का अंदाज़ा नहीं था. इसके पहले भी बहुत से पौधे लगे थे, जो उचित देखभाल नहीं होने के कारण या तो उन्हें पशु चर गए या पानी की कमी के कारण सूख गए थे.

पीर मोहम्मद कहते हैं कि मुखिया, वार्ड सदस्यों, सरपंचों को भी पौधरोपण के साथ-साथ इसके प्रचार-प्रसार की ज़िम्मेदारी देनी चाहिए.

वस्तुतः जल, जीवन और हरियाली को बचाए रखने के लिए स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी. जनप्रतिनिधियों को केवल पौधरोपण और कुओं के सौंदर्यीकरण ही नहीं, ग्राम सभा में पर्यावरण की वर्तमान स्थिति, संरक्षण और संवर्द्धन की दिशा में भी प्रयास करने होंगे. युवाओं और बच्चों में जागरूकता के लिए गांव के स्कूलों और कॉलेजों आदि में जल संरक्षण व हरित आवरण को लेकर निबंध प्रतियोगिता व वाद-विवाद प्रतियोगिता करनी होगी. गांव के हाट-बाजार में नुक्कड़ नाटक का मंचन करना होगा. लोगों को पौधरोपण और कुआं-तालाब के संरक्षण और फायदे बताने होंगे. फलदार और छायादार दोनों प्रकार के पौधे लगाने के लिए जमीनी स्तर पर जागरूकता के उद्देश्य से स्वयं सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों को गांवों का दौरा करना पड़ेगा. वहीं दूसरी ओर ग्रामीण युवाओं को भी वृक्ष, जल और हरियाली के महत्व को गंभीरता से समझना होगा. सभी को यह समझने की ज़रूरत है कि 'जब हरियाली होगी, तभी खुशहाली आएगी'.

वंदना कुमारी

मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार

(चरखा फीचर)

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