नींद लोरियाँ गाती थी ख़्वाबों की दुनिया में वो कठपुतली छा जाती थी ...
जादू के उन लम्हों में हम दिनों-दिनों तक रहते थे ...
जो भी मिलता उससे बस कठपुतली की दास्तां कहते थे ...
वक़्त बदला इक मोबाइल बच्चों के खिलौने तोड़ गया ..
और बिना शोर के गिल्ली डंडा गली मुहल्ला छोड़ गया ...
डॉ. कविता अरोरा (Dr. Kavita Arora) कवयित्री हैं, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली समाजसेविका हैं और लोकगायिका हैं। समाजशास्त्र से परास्नातक और पीएचडी डॉ. कविता अरोरा शिक्षा प्राप्ति के समय से ही छात्र राजनीति से जुड़ी रही हैं।
नये दौर की चमक तेज़ थी लोग वहीं को दौड़ गये ...
और अंधेरे में बेचारी कठपुतली को छोड़ गये ..
लौटेंगे सब इस उम्मीद पर जाने कब तक अड़ी रही ..
दिया जलाये दिनों दिनों तक दरवज्जे पर खड़ी रही ..
खंडहर राजमहल के गीतों से ना फिर ना किसी की प्रीत रही ...
कोई ना पलटा, ना फिर सोचा ..
कठपुतली पर क्या बीत रही ....
कि हार कर कठपुतली ने दरवज्जे का मुँह मोड़ दिया ..
हुई बक्से में बंद ऐसी कि धागों पे थिरकना छोड़ दिया ..