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आज क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल का जन्मदिन है

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आज क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल का जन्मदिन है

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आज क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल का जन्मदिन है

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Today 11th June is the birthday of revolutionary Ramprasad Bismil

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राम प्रसाद बिस्मिल जयंती 11 जून | राम प्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय।Ram Prasad Bismil Biography in Hindi | राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी

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11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर शहर के खिरनीबाग मुहल्ले में पं. मुरलीधर की पत्नी मूलमती की कोख से जन्मे राम प्रसाद बिस्मिल अपने माता-पिता की दूसरी सन्तान थे। उनसे पूर्व एक पुत्र पैदा होते ही मर चुका था। बिस्मिल की जन्म-कुण्डली व दोनों हाथ की दसो उँगलियों में चक्र के निशान देखकर एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी - "यदि इस बालक का जीवन किसी प्रकार बचा रहा, यद्यपि सम्भावना बहुत कम है, तो इसे चक्रवर्ती सम्राट बनने से दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं पायेगी।

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बिस्मिल के माता-पिता दोनों ही सिंह राशि के थे और बच्चा भी सिंह-शावक जैसा लगता था, अतः ज्योतिषियों ने बहुत सोच विचार कर तुला राशि के नामाक्षर र से निकलने वाला नाम रखने का सुझाव दिया।

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माता-पिता दोनों ही राम के आराधक थे अतः राम प्रसाद नाम रखा गया। माँ तो सदैव यही कहती थीं कि उन्हें राम जैसा पुत्र चाहिये था सो राम ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर प्रसाद के रूप में यह पुत्र दे दिया। बालक को घर में सभी लोग प्यार से राम कहकर ही पुकारते थे।

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राम प्रसाद के जन्म से पूर्व उनकी माँ एक पुत्र खो चुकी थीं, अतः जादू-टोने का सहारा भी लिया गया। एक खरगोश लाया गया और नवजात शिशु के ऊपर से उतार कर आँगन में छोड़ दिया गया। खरगोश ने आँगन के दो-चार चक्कर लगाये और मर गया। यह विचित्र अवश्य लगे किन्तु सत्य घटना है और शोध का विषय है। इसका उल्लेख राम प्रसाद बिस्मिल ने स्वयं अपनी आत्मकथा में किया है।

मुरलीधर के कुल नौ सन्तानें हुईं, जिनमें पाँच पुत्रियाँ एवं चार पुत्र थे। राम प्रसाद उनकी दूसरी सन्तान थे। आगे चलकर दो पुत्रियों एवं दो पुत्रों का भी देहान्त हो गया।

आखिर राम प्रसाद बिस्मिल कैसे बदले ? (After all, how did Ramprasad Bismil change?

राम प्रसाद ने उर्दू मिडिल की परीक्षा में उत्तीर्ण न होने पर अंग्रेजी पढ़ना प्रारम्भ किया। साथ ही पड़ोस के एक पुजारी ने राम प्रसाद को पूजा-पाठ की विधि का ज्ञान करवा दिया। पुजारी एक सुलझे हुए विद्वान व्यक्ति थे जिनके व्यक्तित्व का प्रभाव राम प्रसाद के जीवन पर दिखाई देने लगा।

पुजारी के उपदेशों के कारण राम प्रसाद पूजा-पाठ के साथ ब्रह्मचर्य का पालन करने लगा। पुजारी की देखा-देखी उसने व्यायाम भी प्रारम्भ कर दिया। पूर्व की जितनी भी कुभावनाएँ एवं बुरी आदतें मन में थीं वे छूट गईं। मात्र सिगरेट पीने की लत रह गयी थी जो कुछ दिनों पश्चात् उसके एक सहपाठी सुशीलचन्द्र सेन के आग्रह पर जाती रही।

अब तो राम प्रसाद का पढ़ाई में भी मन लगने लगा और बहुत वह बहुत शीघ्र ही अंग्रेजी के पाँचवें दर्जे में आ गया।

राम प्रसाद में अप्रत्याशित परिवर्तन हो चुका था। शरीर सुन्दर व बलिष्ठ हो गया था। नियमित पूजा-पाठ में समय व्यतीत होने लगा था। तभी वह मन्दिर में आने वाले मुंशी इन्द्रजीत के सम्पर्क में आया, जिन्होंने राम प्रसाद को आर्य समाज के सम्बन्ध में बताया व सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने का विशेष आग्रह किया।

सत्यार्थ प्रकाश के गम्भीर अध्ययन से राम प्रसाद के जीवन पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा।

बिस्मिल क्रांतिकारी कैसे बने ? (How did Bismil become a revolutionary?)

राम प्रसाद जब गवर्नमेण्ट स्कूल शाहजहाँपुर में नवीं कक्षा के छात्र थे तभी दैवयोग से स्वामी सोमदेव (Swami Somdev) का आर्य समाज भवन में आगमन हुआ।

मुंशी इन्द्रजीत ने राम प्रसाद को स्वामीजी की सेवा में नियुक्त कर दिया। यहीं से उनके जीवन की दशा और दिशा दोनों में परिवर्तन प्रारम्भ हुआ।

एक ओर सत्यार्थ प्रकाश का गम्भीर अध्ययन व दूसरी ओर स्वामी सोमदेव के साथ राजनीतिक विषयों पर खुली चर्चा से उनके मन में देश-प्रेम की भावना जागृत हुई।

सन् 1916 के कांग्रेस अधिवेशन में स्वागताध्यक्ष पं. जगत नारायण 'मुल्ला' के आदेश की धज्जियाँ बिखेरते हुए राम प्रसाद ने जब लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की पूरे लखनऊ शहर में शोभायात्रा निकाली तो सभी नवयुवकों का ध्यान उनकी दृढ़ता की ओर गया। अधिवेशन के दौरान उनका परिचय केशव चक्रवर्ती, सोमदेव शर्मा व मुकुन्दीलाल आदि से हुआ।

बाद में इन्हीं सोमदेव शर्मा ने किन्हीं सिद्धगोपाल शुक्ल के साथ मिलकर नागरी साहित्य पुस्तकालय, कानपुर से एक पुस्तक भी प्रकाशित की जिसका शीर्षक रखा गया था - अमेरिका की स्वतन्त्रता का इतिहास

यह पुस्तक बाबू गनेशप्रसाद के प्रबन्ध से कुर्मी प्रेस, लखनऊ में सन् १९१६ में प्रकाशित हुई थी।

राम प्रसाद ने यह पुस्तक अपनी माताजी से दो बार में दो-दो सौ रुपये लेकर प्रकाशित की थी। इसका उल्लेख उन्होंने अपनी आत्मकथा में किया है।

यह पुस्तक छपते ही जब्त कर ली गयी थी बाद में जब काकोरी काण्ड का अभियोग चला तो साक्ष्य के रूप में यही पुस्तक प्रस्तुत की गयी थी। अब यह पुस्तक सम्पादित करके सरफरोशी की तमन्ना नामक ग्रन्थावली के भाग-तीन में संकलित की जा चुकी है।

बिस्मिल किस तरह जातिप्रथा से घृणा करते थे और क्या चाहते थे?

उनकी दादी आदर्श थीं, इनका बिस्मिल के जीवन पर गहरा असर था। इस प्रसंग में उनका एक अनुभव पढ़ें और सबक लें-

"एक समय किसी चमार की वधू, जो अंग्रेजी राज्य से विवाह करके गई थी, कुल-प्रथानुसार जमींदार के घर पैर छूने के लिए गई। वह पैरों में बिछुवे (नुपूर) पहने हुए थी और सब पहनावा चमारों का पहने थी। जमींदार महोदय की निगाह उसके पैरों पर पड़ी। पूछने पर मालूम हुआ कि चमार की बहू है। जमींदार साहब जूता पहनकर आए और उसके पैरों पर खड़े होकर इस जोर से दबाया कि उसकी अंगुलियाँ कट गईं। उन्होंने कहा कि यदि चमारों की बहुऐं बिछुवा पहनेंगीं तो ऊँची जाति के घर की स्‍त्रियां क्या पहनेंगीं ? ये लोग नितान्त अशिक्षित तथा मूर्ख हैं किन्तु जाति-अभिमान में चूर रहते हैं।

गरीब-से-गरीब अशिक्षित ब्राह्मण या क्षत्रिय, चाहे वह किसी आयु का हो, यदि शूद्र जाति की बस्ती में से गुजरे तो चाहे कितना ही धनी या वृद्ध कोई शूद्र क्यों न हो, उसको उठकर पालागन या जुहार करनी ही पड़ेगी। यदि ऐसा न करे तो उसी समय वह ब्राह्मण या क्षत्रिय उसे जूतों से मार सकता है और सब उस शूद्र का ही दोष बताकर उसका तिरस्कार करेंगे ! यदि किसी कन्या या बहू पर व्यभिचारिणी होने का सन्देह किया जाए तो उसे बिना किसी विचार के मारकर चम्बल में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसी प्रकार यदि किसी विधवा पर व्यभिचार या किसी प्रकार आचरण-भ्रष्ट होने का दोष लगाया जाए तो चाहे वह गर्भवती ही क्यों न हो, उसे तुरन्त ही काटकर चम्बल में पहुंचा दें और किसी को कानों-कान भी खबर न होने दें। वहाँ के मनुष्य भी सदाचारी होते हैं। सबकी बहू-बेटी को अपनी बहू-बेटी समझते हैं। स्‍त्रियों की मान-मर्यादा की रक्षा के लिए प्राण देने में भी सभी नहीं हिचकिचाते। इस प्रकार के देश में विवाहित होकर सब प्रकार की प्रथाओं को देखते हुए भी इतना साहस करना यह दादी जी का ही काम था।"

बिस्मिल की अन्तिम रचना / राम प्रसाद बिस्मिल

मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या !

दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !

मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल

उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !

ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में,

फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या !

काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते,

यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या !

आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प,

सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या !

जगदीश्वर चतुर्वेदी

(जगदीश्वर चतुर्वेदी की एफबी टिप्पणियों का किंचित् संपादित समुच्चय साभार)

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