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सामाजिक न्याय की कब्र पर खड़ा राम मंदिर बहुजनों की गुलामी का प्रतीक, विरोध में सिर्फ काली पोशाक पहनेंगे दुसाध

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hastakshep
08 Aug 2020
एच.एल. दुसाध : खूबियों से लैस एक दलित पत्रकार !

लेखक एच एल दुसाध बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इन्होंने आर्थिक और सामाजिक विषमताओं से जुड़ी गंभीर समस्याओं को संबोधित ‘ज्वलंत समस्याएं श्रृंखला’ की पुस्तकों का संपादन, लेखन और प्रकाशन किया है। सेज, आरक्षण पर संघर्ष, मुद्दाविहीन चुनाव, महिला सशक्तिकरण, मुस्लिम समुदाय की बदहाली, जाति जनगणना, नक्सलवाद, ब्राह्मणवाद, जाति उन्मूलन, दलित उत्पीड़न जैसे विषयों पर डेढ़ दर्जन किताबें प्रकाशित हुई हैं।

हम अब पब्लिक लाइफ में सिर्फ काली पोशाक में दिखेंगे

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Ram temple standing on the grave of social justice, a symbol of slavery of Bahujans, Dusadh will wear only black dress in protest

‘हम आज 7 अगस्त, 2020 को मण्डल दिवस पर संकल्प लेते हैं कि आज से पब्लिक लाइफ में सिर्फ काली पोशाक में ही दिखेंगे और यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा, जब तक शक्ति के स्रोतों- आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षिक और धार्मिक- में सामाजिक और लैंगिक विविधता लागू नहीं हो जाती। अर्थात शक्ति के स्रोतों का सवर्ण , ओबीसी, एससी/ एसटी और धार्मिक अल्पसंख्यकों के मध्य वाजिब बंटवारा नहीं हो जाता!’

पाठक बंधुओं !

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आप जानते हैं कि गत 5 अगस्त को बहुप्रतीक्षित राम मंदिर के निर्माण का भूमि पूजन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा हुआ। उस अवसर पर प्रधानमंत्री ने राम मंदिर आन्दोलन की तुलना स्वतन्त्रता आंदोलन जैसे संघर्ष व समर्पण से करते हुये कहा कि जिस तरह स्वतन्त्रता की भावना का प्रतीक 15 अगस्त का दिन है, उसी तरह कई पीढ़ियों कई पीढ़ियों के अखंड व एकनिष्ठ प्रयासों का का प्रतीक 5 अगस्त का दिन है।

उनसे पहले संघ प्रमुख की ओर से कहा गया था, ’यह आनंद का क्षण है। बहुत प्रकार से आनंद का क्षण है। हमने एक संकल्प लिया था और मुझे स्मरण है कि तबके हमारे सरसंघसंचालक बाला साहब देवरस ने हमें कदम आगे बढ़ाने से पहले यह बात याद दिलाई थी कि बहुत लगकर लगभग बीस-तीस साल काम करना पड़ेगा, तब यह काम होगा। बीस-तीस साल हमने काम किया। तीसवें साल के प्रारम्भ में हमें संकल्प पूर्ति का आनंद मिल रहा है... मैं पूरे देश मे आनंद की लहर देख रहा हूँ, लेकिन सबसे बड़ा आनंद यह है कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिस आत्मविश्वास की आवश्यकता थी और जिस आत्मभान की अवश्यकता थी, उसका सगुण साकार अधिष्ठान बनने का शुभारंभ हो रहा है।‘

बहरहाल भूमि पूजन के अवसर पर प्रधानमंत्री और संघ प्रमुख दोनों ने झूठ बोला था। राम जन्मभूमि मुक्ति अभियान के पीछे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना कम, आरक्षण के खात्मे की चेतना ही प्रमुख रूप से क्रियाशील रही।

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अगर 7 अगस्त, 1990 को मण्डल रिपोर्ट प्रकाशित नहीं होती, जिस शिथिल गति से मंदिर आंदोलन चल रहा था, वैसे ही वर्षों तक चलते रहता। किन्तु मण्डल की रिपोर्ट ने इसमें आश्चर्यजनक तीव्रता ला दी। इसके जरिये शंबूकों के आरक्षण का मार्ग प्रशस्त होते ही संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा के अन्यतम प्रमुख स्तंभ लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर,1990 को सोमनाथ से रथयात्रा की जो शुरुआत की, उसके फलस्वरूप पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के शब्दों में देखते ही देखते आजाद भारत का सबसे बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया।

राम जन्मभूमि-मुक्ति के नाम पर छेड़े गए आडवाणी के आंदोलन के फलस्वरूप भाजपा का राज्यों से लेकर केंद्र की सत्ता पर काबिज होने का सिलसिला शुरू किया। और भाजपा ने राम के नाम पर मिली उस सत्ता का इस्तेमाल श्रम कानूनों को शिथिल करने लाभजनक सरकारी कंपनियों, रेलवे, हवाई अड्डो, बस अड्डों, हास्पिटलों इत्यादि को निजी हाथों में देने में देने में किया। उसके पीछे दो मकसद था। पहला बहुजनों का आरक्षण खत्म करना और दूसरा सारी धन-संपदा सवर्णों के हाथों में देना।

आज राम के नाम पर मिली सत्ता के फलस्वरूप वर्ण-व्यवस्था के वंचित शूद्रातिशूद्र गुलामों की स्थिति में पहुँच गए हैं और उनके सामने एक नया स्वतन्त्रता संग्राम छेड़ने से भिन्न कोई विकल्प नहीं बचा है।
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ऐसी स्थिति में जिस राम मंदिर आंदोलन की परिणतिस्वरूप देश की 85 प्रतिशत वंचित आबादी गुलामों की स्थिति में पहुँच गयी है, उस आंदोलन के गर्भ  से पैदा हुये राम मंदिर के भूमि पूजन दिवस, 5 अगस्त की दिवस की तुलना 15 अगस्त के स्वाधीनता दिवस से करना एवं संघ प्रमुख द्वारा इसे लेकर पूरे देश को आनंदित बताए जाने से पूरे बहुजन समाज के जागरूक लोगों को घोरतर आपत्ति है। कारण, जिस मंदिर का 5 अगस्त को भूमिपूजन हुआ, वह सिर्फ सामाजिक न्याय की कब्र पर खड़ा बहुजनों की गुलामी का प्रतीक मात्र है। और यह गुलामी तभी दूर हो सकती है, जब दलित, आदिवासी, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को संख्यानुपात मे हिस्सेदारी मिल जाय।

राम मंदिर बहुजनों की गुलामी का प्रतीक है और इसका प्रतिकार शक्ति के स्रोतों का भारत के विविध सामाजिक समूहों के मध्य वाजिब बँटवारे से ही हो सकती है, इस बात का एहसास कराने के लिए ही मैंने  मण्डल दिवस, 7 अगस्त, 2020 से सार्वजनिक जीवन में काला पोशाक धारण करने की घोषणा किया। वैसे तो विरोध जताने के लिए सारी दुनिया में लोग काले झंडे और पट्टी इत्यादि का इस्तेमाल करते रहे है, किन्तु मैंने  अगर काले कुर्ते के इस्तेमाल का मन बनाया तो मेरे इस संकल्प का प्रधान प्रेरणा स्रोत रामासामी पेरियार हैं, जिन्होंने कभी तमिलनाडू में अपने अनुगामियों को ‘काली पोशाक पहनने’ का निर्देश दिया था,जिसका मखौल उड़ते हुये मुख्यधारा के लोग ने ‘ब्लैक शर्त मुव्हमेंट’ का नाम दिया था। तब पेरियार ने काली पोशाक के पीछे युक्ति खड़ी करते हुये कहा था,’ इस विशाल प्रायः महादेश सादृश्य भारत वर्ष के आदिनिवासी द्रविड़ों को अज्ञात और पतनोन्मुख करके रख दिया है । काली पोशाक उसी का प्रकाशक है: प्रतीक है यह , हमारी आर्थिक दासता का। काली पोशाक पहनने का निर्देश हमने ही दिया है। यह किसी विदेशी पार्टी का अनुकरण नहीं है।

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काला रंग मृत्यु और शोक का प्रकाशक है। हम द्रविड़ तो कहीं मृत लोगों से ज्यादा विस्मृत हैं। वेद, पुराण, रामायण इत्यादि तो हमें शूद्र मानता आया है और आज भी मानता है। हिन्दू मंदिरों में हम तिरस्कृत हैं। अभिशाप है द्रविड़ भाषा । समाज हमें नीच और लज्जाकर स्थिति में रखा है, ऐसे प्रमाणों की कमी नहीं। जनसाधारण की दृष्टि में यह सत्य उजागर करने एवं इस दुखजनक परिस्थिति के स्मृतिसौंध के रूप में हम लोग काली पोशाक धारण किए हुये हैं।‘ पेरियार का वह ब्लैक शर्ट मुव्हमेंट ही शेष पर्यन्त सबब बना था मद्रास को तमिलनाडु में तब्दील होने का। ‘द्रविड़ मुनेत्र कषगम’ पार्टी लायी अब्राह्मणों के लिए राजनैतिक शक्ति व स्वतन्त्रता के साथ और भी बहुत कुछ।

किन्तु हम पेरियार नहीं हैं, जिनके करोड़ों अनुयायी हुआ करते थे। मैं एक लेखक हूँ, जिसका हिन्दी पट्टी के लेखकों का एक संगठन है, जिसके साथ सौ 50 – 60 की सख्या में बहुजन लेखक और कुछेक हजार डाइवर्सिटी समर्थक लोग जुड़े हुये हैं। किन्तु अपने संगठन का संस्थापक अध्यक्ष होने के बावजूद मेरा अपने साथी लेखकों और डाइवर्सिटी समर्थक साथियों पर ऐसा प्रभाव नहीं कि उन्हे गुलामी के प्रतीक राम मंदिर के विरुद्ध ब्लैक शर्ट धारण करने की अपील कर सकूँ। हाँ, मैंने काली पोशाक धरण करने का निर्णय अपने विवेक की संतुष्टि के लिए लिया है। वैसे मैं भले ही गुलामी के प्रतीक राम मंदिर के खिलाफ लोगों को काली पोशाक धारण करने की अपील न कर सकूँ, किन्तु भरोसा है, जिनमें विवेक हैं, वे अपने हिसाब से इसके प्रतिकार के लिए कुछ न कुछ उद्योग अवश्य लेंगे।

-एच एल दुसाध

(लेखक एच एल दुसाध बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इन्होंने आर्थिक और सामाजिक विषमताओं से जुड़ी गंभीर समस्याओं को संबोधित ‘ज्वलंत समस्याएं श्रृंखला’ की पुस्तकों का संपादन, लेखन और प्रकाशन किया है। सेज, आरक्षण पर संघर्ष, मुद्दाविहीन चुनाव, महिला सशक्तिकरण, मुस्लिम समुदाय की बदहाली, जाति जनगणना, नक्सलवाद, ब्राह्मणवाद, जाति उन्मूलन, दलित उत्पीड़न जैसे विषयों पर डेढ़ दर्जन किताबें प्रकाशित हुई हैं।)

 

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