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रवीश बोले- पालघर के बारे में मैं नहीं चुप था, सांप्रदायिकों का गिरोह कुछ ज़्यादा सक्रिय था

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hastakshep
20 Apr 2020
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रवीश कुमार के भाषणों के प्रभाव में एक सोच — यह भारतीय मीडिया की एक अलग परिघटना है

Ravish said - I was not silent about Palghar, the communal gang was more active

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नई दिल्ली, 20 अप्रैल 2020. एनडीटीवी के चर्चित एंकर और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता रवीश कुमार (Ravish Kumar, NDTV's celebrated anchor and Magsaysay Award winner) ने महाराष्ट्र के पालघर में हुई मॉब लिंचिंग की घटना (Incident of mob lynching in Palghar, Maharashtra) पर कहा है कि वह इस घटना पर चुप नहीं थे, बल्कि सांप्रदायिकों का गिरोह कुछ ज़्यादा सक्रिय था।

रवीश कुमार ने अपने सत्यापित फेसबुक पेज पर एक पोस्ट लिखी है, जिसका संपादित अंश निम्न है -

“मुंबई से 125 किमी दूर पालघर में एक भयानक घटना हुई है। गढ़चिंचले गांव के पास हत्यारी भीड़ ने दो साधुओं और एक कार चालक को कार से खींच कर मार डाला। इनमें से एक 70 वर्षीय महाराज कल्पवृक्षगिरी थे। उनके साथी सुशील गिरी महाराज और कार चालक निलेश तेलग्ने भी भीड़ की चपेट में आ गए। तीनों अपने परिचित के अंतिम संस्कार में सूरत जा रहे थे।

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मौके पर पुलिस पहुंच गई थी, भीड़ को समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन भीड़ ने उल्टा पुलिस पर ही हमला कर दिया। पुलिस पीड़ितों को अस्पताल ले जाना चाहती थी तो भीड़ औऱ उग्र हो गई। पुलिस की गाड़ी तोड़ दी। पुलिसकर्मी भी घायल हो गए। किसी तरह अस्पताल लाया गया जहां उन्हें मृत घोषित किया गया।

महाराष्ट्र पुलिस ने हत्या के आरोप में 110 लोगों को गिरफ्तार किया है। अभी कुछ और लोगों के भाग कर पास के जंगल में छुपने की ख़बर है, जिनकी तलाश हो रही है।

पुलिस को पता चला है कि व्हाट्सस एप के ज़रिए अफवाह फैली थी कि बच्चा चोरों का गिरोह सक्रिय है, जो मानव अंगों की तस्करी करता है।

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पुलिस पता कर रही है कि अफवाह कैसे फैली और हत्या के दूसरे कारण क्या हो सकते हैं।

पुलिस को बताना चाहिए कि जब यह अफ़वाह कई दिनों से फैल रही थी तो उसने तब क्या किया ?

महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने ट्वीट किया है कि “हमला करने वाले और जिनकी इस हमले में जान गई है- दोनों अलग धर्मीय नहीं है। बेवजह समाज में धार्मिक विवाद निर्माण करने वालों पर पुलिस और महाराष्ट्र साइबर को कठोर कार्रवाई करने के आदेश दिए गए हैं।“

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अगर हत्यारी भीड़ अलग धर्म के लोगों की होती तब भी मेरा स्टैंड साफ है। हिंसा करने वाले के साथ कोई कोताही नहीं बरती जानी चाहिए और न उनके साथ खड़ा होना चाहिए। यह वो मानसिकता है कि जो घरों में लोगों को हत्यारा बना कर रखती है। जैसे सांप्रदायिक आई टी सेलीय गिरोहों का समूह।

यह घटना शनिवार की है। उस दिन मुझसे किसी ने कुछ नहीं कहा। रविवार की शाम अचानक सांप्रदायिकों का समूह मुझे गाली देने लगा। तब तक मुझे इस घटना के बारे में जानकारी भी नहीं थी।

अनाप शनाप गालियां देने लगा कि मैं चुप क्यों हं। अखलाक का ज़िक्र करने लगा। पहले ये खुद नहीं बताते कि अखलाक की हत्या की निंदा की थी या नहीं, लेकिन इनके मन में गुस्सा है कि मैंने निंदा कर कोई अपराध कर दिया। मैंने तो सुबोध कुमार सिंह की हत्या की भी निंदा की थी। ये आई टी सेल वाले इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के इंसाफ के लिए अभियान क्यों नहीं चलाते हैं?

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मुझे लगा कि आई टी सेल का सांप्रदायिक गिरोह कोटा में फंसे बिहार के छात्रों के लिए आवाज उठा रहा होगा। बिहार बीजेपी के एक विधायक ने अपने बेटे को वहां से मंगा लिया जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बाकी छात्रों को नहीं आने दे रहे हैं। यह कह कर कि वे तालाबंदी के नियमों का पालन कर रहे हैं। तो फिर अपने सहयोगी दल के विधायक को कोई नैतिक संदेश देंगे? किसी आई टी सेल वाले ने मुझे चैलेंज नहीं किया कि इस पर क्यों नहीं लिख रहे हैं?

अगर कहीं घटना हई है तो उसे लेकर मुझे गाली क्यों देने आते हैं? क्या मैं प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री हूं? वैसे घटना नहीं भी होती है तो भी आई टी सेल की फैक्ट्री मुझे गाली दे रही होती है। यह भी एक किस्म का लिंच मॉब है। मैं तो बहुत सी चीज़ों पर नहीं लिखता हूं। जब सही बात लिख देता हूं तब भी यह गाली देने आते हैं। इनकी फैक्ट्री मेरे नाम से चलती है। इन्हें हर वक्त सांप्रदायिकता की तलाश होती है ताकि अपनी सरकार के झूठ पर पर्दा डाल सकें।

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Ravish Kumar  भीड़ बनने की प्रक्रिया एक ही है। हमेशा एक झूठ से भीड़ बनती है और उसमें आग लगती है। यह प्रक्रिया हमारे समाज का हिस्सा होती जा रही है। महाराष्ट्र में पहले भी व्हाट्स एप के ज़रिए बच्चा चोरी गिरोह का अफवाह फैल चुका है। भीड़ ने कई लोगों की हत्या कर दी।

अफसोस कि समाज के भीतर की अमानवीयता के कारण कल्पवृक्षगिरी जी महाराज जैसे बेकसूर लोगों की ऐसी नृशंस हत्या हुई है। मॉब लिंचिंग वाले समाज में निरीह साधु प्राणी भी सुरक्षित नहीं है। भरोसा इतना कमज़ोर हो चुका है कि भीड़ सनक जाती है। वह नहीं देखती कि सामने कौन है। कई बार वह सामने कौन है को भी देखती है। जानती है कि वह हत्या के कर्म में शामिल है लेकिन समाज को आस पास शामिल देख कर वह हत्या कर रही होती है।

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