वसूली नोटिस पर राजनीतिक दलों ने दर्ज की आपत्ति, मुख्यमंत्री को संविधान के अनुरूप सरकार चलाने की सलाह दी

hastakshep
19 Jun 2020
वसूली नोटिस पर राजनीतिक दलों ने दर्ज की आपत्ति, मुख्यमंत्री को संविधान के अनुरूप सरकार चलाने की सलाह दी

प्रदेश में राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न पर लगे रोक

लखनऊ 19 जून 2020, लखनऊ में ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी, सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जफर, अधिवक्ता मोहम्मद शोएब और रंगकर्मी दीपक कबीर समेत कई लोगों को 64 लाख की वसूली नोटिस भेजने के खिलाफ प्रदेश के विभिन्न राजनीतिक दलों व संगठनों ने इसे राजनीतिक बदले की कार्यवाही मानते हुए योगी सरकार से संविधान के अनुसार व्यवहार करने की उम्मीद और इस वसूली नोटिस को तत्काल वापस लेने की मांग की है।

भाकपा राज्य सचिव डॉ. गिरीश शर्मा, माकपा राज्य सचिव डॉ. हीरालाल यादव, पूर्व सासंद व अध्यक्ष, लोकतंत्र बचाओ अभियान इलियास आजमी, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. संदीप पांड़ेय, स्वराज अभियान की प्रदेश अध्यक्ष अधिवक्ता अर्चना श्रीवास्तव, स्वराज इंडिया के प्रदेश अध्यक्ष अनमोल, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) के नेता दिनकर कपूर द्वारा नलाइन लिए राजनीतिक प्रस्ताव को मुख्यमंत्री को ईमेल से भेजा गया।

इसकी प्रतिलिपि आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रमुख सचिव (गृह), मण्ड़लायुक्त व जिलाधिकारी लखनऊ को भी भेजी गयी है।

राजनीतिक-सामाजिक संगठनों की तरफ से मुख्यमंत्री को प्रेषित प्रस्ताव में कहा गया कि हम सब हस्ताक्षरकर्ता सर्वसम्मति से लखनऊ जिला प्रशासन द्वारा दी गई वसूली नोटिस को विधि के विरुद्ध, मनमर्जीपूर्ण और संविधान में वर्णित न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध राजनीतिक बदले की भावना से की गयी उत्पीड़न की कार्यवाही मानते हैं। हम चितिंत है कि आपकी सरकार के प्रशासन द्वारा बिना सक्षम न्यायालय से दोष सिद्ध अपराधी साबित हुए ही दंड देने की प्रक्रिया शुरू कर दी, जो स्पष्टतः भारतीय संविधान की न्यायिक व्यवस्था के विरुद्ध है और मौलिक अधिकारों का हनन है। जबकि आपको अवगत करा दें कि जिस अपर जिलाधिकारी, लखनऊ ने सीएए-एनआरसी विरोध के दौरान हुई हिंसा की जांच कर इस वसूली की कार्यवाही को किया है, उसके अधिकार के बारें में माननीय उच्चतम न्यायालय तक ने अपने विभिन्न आदेशों में यह माना कि इस कार्य के लिए वह सक्षम न्यायालय नहीं है। इसी नाते सभी ने अपनी आपत्ति जिला प्रशासन लखनऊ से दर्ज भी करायी थी और माननीय उच्च न्यायालय ने भी ऐसी कई वसूली नोटिसों पर रोक लगाई हुई है।

पत्र में आगे कहा गया है कि अभी दो दिन पहले ही एस. आर. दारापुरी द्वारा वसूली कार्यवाही के विरूद्ध उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्ड़पीठ में दाखिल याचिका संख्या 7899/2020 में अपर स्थायी अधिवक्ता, उत्तर प्रदेश सरकार ने 10 दिन की मोहलत मांगी, जिसके बाद न्यायालय ने जुलाई के द्वितीय सप्ताह में मुकदमा लगाया है और वाद न्यायालय में विचाराधीन है। बावजूद इसके राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं को लखनऊ जिला प्रशासन द्वारा नोटिस देना विधि विरूद्ध और मनमर्जीपूर्ण तो है ही माननीय उच्च न्यायालय की अवहेलना भी है।

पत्र में आगे कहा गया है कि हम हस्ताक्षरकर्ताओं को इस पर भी आश्चर्य है कि सरकार व जिला प्रशासन ने सीएए-एनआरसी विरोधी हिंसा में खुद यह माना था कि उसकी 64,34,637/ रुपए की क्षति हुई है और यह कई लोगों द्वारा की गयी है। लेकिन हर व्यक्ति को दिए नोटिस में 64,34,637/ रूपए सात दिन में जमा कराने को कहा गया है। जो साफ तौर पर दुर्भावना से प्रेरित और महज उत्पीड़न करने के लिए है।

राजनीतिक प्रस्ताव के जरिए हम आपकी सरकार से उम्मीद करते हैं कि वह संविधान के अनुरूप व्यवहार करेगी और राजनीतिक बदले की भावना से दी गयी विधि विरूद्ध, मनमर्जीपूर्ण और माननीय उच्च न्यायालय की अवहेलना करने वाली वसूली नोटिस को तत्काल प्रभाव से निरस्त करने के लिए लखनऊ जिला प्रशासन को निर्देशित करेगी और प्रदेश में राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध बदले की भावना से किसी भी तरह की उत्पीड़न की कार्यवाही न हो यह सुनिश्चित करेगी।

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