हिन्दू मुसलमान की अफ़ीम का नशा उतरने से बिगड़ रहा मोदी की भाजपा का खेल
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
यूपी की सियासत में धार्मिक ध्रुवीकरण (Religious polarization in the politics of UP) की अफ़ीम का नशा अब धीरे-धीरे कम होने से मोदी की भाजपा की साँसें फ़ूल रही हैं, वहीं विपक्ष भी अपनी पूरी ताक़त झोंक रहा है। विपक्ष जनता के बीच जाकर समझा रहा है कि कैसे मोदी की भाजपा ने देश व प्रदेश की जनता के साथ विश्वासघात किया, कैसे-कैसे हसीन सपने दिखाकर सत्ता की दहलीज़ पर कदम रखा था लेकिन कोई वादा पूरा नहीं हुआ, न दो करोड़ युवाओं को रोज़गार देने का और न किसानों की आय दोगुनी करने का। गन्ने के दाम पिछले चार सालों से नहीं बढ़े न ही दस दिनों के अंदर गन्ने का भुगतान किया जा रहा है। महंगाई अपने पूरे जोश में लोगों की परेशानियों को बढ़ाने का काम कर रही है। चाहे पेट्रोल डीज़ल के हर रोज़ बढ़ते दाम हों या रसोई गैस के दाम बढ़ते-बढ़ते 450 से 850 पर पहुँच गए हैं लेकिन मोदी सरकार न महंगाई कम करने की कोशिश कर रही हैं और न ही किसानों के लिए बनाए गए तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने को तैयार है।
क्या यही अच्छे दिन हैं ?
गाँव के लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या यही अच्छे दिन हैं महंगाई ने रसोई का बजट बिगाड़ दिया है और पेट्रोल डीज़ल के बढ़ते दाम महंगाई को और बढ़ाने को मजबूर कर रही हैं। विपक्ष मज़बूत हो रहा है और मोदी की भाजपा का ग्राफ़ लगातार नीचे गिरता जा रहा है पहले देखने में आता था कि जनता में विपक्ष के नेताओं के आरोपों को संजीदगी से नहीं लिया जाता था लेकिन किसान आंदोलन के बाद जनता विपक्ष के आरोपों को संजीदगी से ले रही हैं।
भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन को तो मज़बूत किया ही, साथ ही विपक्ष को भी संजीवनी मिल गई है। राष्ट्रीय लोकदल जिसका कभी सिक्का चलता था, लेकिन 2013 में प्रायोजित साम्प्रदायिक दंगों ने रालोद का सूपड़ा साफ़ कर दिया था यहाँ तक कि राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह व पुत्र जयंत चौधरी को भी हरा दिया था, जबकि मुसलमान और दलितों ने दोनों को जिताने की भरपूर कोशिश की थी, लेकिन उनकी जाति जाटों ने उन्हें हारने के लिए विवश किया था। अपने नेता के हार की टीस भी उनकी जाति जाटों में महसूस की जा रही है।
बीते दिनों मुज़फ़्फ़रनगर के राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान में आयोजित किसानों की पंचायत में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि हमने चौधरी अजित सिंह को हराकर बहुत बड़ी ग़लती की थी जिसे अब हम सुधारेंगे। तब से लेकर आज तक बहुत पंचायतें हुई सभी पंचायतों में यही टीस महसूस की जा सकती हैं।
जाटों का कहना है कि हमें अपने नेता को हराने की सज़ा मिल रही है हमारी जाति को और किसानों को भी। अगर चौधरी अजित सिंह सांसद होते वह किसानों की लड़ाई संसद में लड़ते।
बहुत लोगों से बात की गईं तो उनका कहना था कि दस मंत्री भी चौधरी अजित सिंह का मुक़ाबला नहीं कर सकते हैं। चौधरी अजित सिंह व जयंत चौधरी केवल किसानों की बात करते हैं जिसकी वजह से सरकारें उनकी बातों को तरजीह देती थी, लेकिन आज की मोदी की भाजपा जनभावनाओं की क़द्र करना नहीं जानती क्योंकि उनकी सरकार धार्मिक भावनाओं के आधार पर बनी है न कि जनता ने मुद्दों को आधार बनाकर। यही वजह है कि वह हर विषय पर हिन्दू मुसलमान का कार्ड खेलती है। शमशान क़ब्रिस्तान करने होली दीपावली की बातें करने से बनी है न कि जनता के हितों के लिए बनायी गई हैं।
ख़ैर तीनों विवादित कृषि क़ानूनों को रद्द करने से कम पर किसान मानने को तैयार नहीं हैं और मोदी की भाजपा सरकार का यह प्रयास चल रहा है किसी भी क़ीमत पर क़ानून वापिस न हो।
किसानों का कहना है कि यह क़ानून किसानों की आय दोगुनी करने के लिए नहीं बल्कि अपने दो पूँजीपतियों के लिए बनाए गए हैं। लोगों की शंकाओं को अड़ानी अंबानी समूहों द्वारा बनाए गए बड़े-बड़े गोदामों और रिटेल बाज़ार में कदम बढ़ाने से बल मिल रहा है। लोगों का कहना है कि जैसे मोबाइल फ़ोन पर एक छत्र राज कर लिया है वैसे ही खेतीबाड़ी में भी अपना दबदबा क़ायम कर लेंगे। पहले फसलों के अच्छे दाम देंगे फिर जब क़ाबिज़ हो जाएँगे, तब अपनी मनमर्ज़ी से किसानों का शोषण करेंगे जैसे पहले जियो को फ़्री दिया गया और अब इनकमिंग के भी पैसे लगते हैं और रिचार्ज भी महँगा कर दिया है।
इस पूरे माहौल को क़रीब से देख रहे किसान नेता एवं राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने भी किसानों के बीच एंट्री मार दी है जिसके बाद मोदी की भाजपा के नेता सहमे- सहमे लग रहे हैं। उनको पश्चिम की सियासत से अपने विरूद्ध बन रहे माहौल की आहट महसूस होने लगी है।
इस पूरे आंदोलन में चौधरी अजित सिंह बारीकी से नज़र तो रखते रहे लेकिन सड़क पर नहीं आए। हां अपने पुत्र को लगा रखा है, वह गाँव दर गाँव जा रहे हैं पंचायतें कर रहे हैं गंगाजल की क़समें खिला रहे हैं, साफ़-साफ़ कह रहे हैं हिन्दू मुसलमान बन कर वोट करने से यही परिणाम आते हैं। वह पूछते हैं आप लोग फिर हिन्दू के नाम पर वोटिंग करोगे ? मैदान से आवाज़ आती है – नहीं बहुत हुआ हिन्दू मुसलमान अब हम सब एकजुट होकर देशहित में वोटिंग करेंगे।
ग्राउंड ज़ीरो पर इस कहकहे के बीच मोदी की भाजपा और विपक्ष आमने-सामने आ गए हैं, लेकिन इस सियासी खेल में मोदी की भाजपा पिछड़ती दिख रही हैं और विपक्ष यानी राष्ट्रीय लोकदल व कांग्रेस फ़्रंटफुट पर खेल रहे हैं। कांग्रेस द्वारा द्वारा आयोजित की जा रही पंचायतों में भी भारी भीड़ जुट रही है और रालोद द्वारा आयोजित पंचायतों में भी आ रही भीड़ इस ओर इशारा करती दिखाई दे रही है कि मोदी की भाजपा के झूठे वायदों से आजिज़ आ चुके हैं और वह विपक्ष की तरफ़ उम्मीद भरी नज़रों से निहार रही हैं।
चौधरी अजित सिंह की एंट्री से मोदी की भाजपा का खेल बिगड़ रहा है और तीनों विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन को भी ताक़त मिल गई है।
वैसे देखा जाए तो किसान आंदोलन बहुत मज़बूत हो रहा है यह आंदोलन घर-घर में पहुँच गया है इससे निपटना मोदी की भाजपा के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है।

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