Advertisment

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा बापू की दांडी यात्रा की याद क्यों दिला रही है?

भारत जोड़ो यात्रा और भारत का विचार

Advertisment

बापू की दांडी यात्रा ने अद्भुत चेतना जागृत की थी

Advertisment

जिस समय देश में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा चल रही हो उस दौरान महात्मा गांधी की ऐतिहासिक दांडी यात्रा (Historical Dandi March of Mahatma Gandhi) की याद आना स्वाभाविक है। दांडी यात्रा ने सारे देश में अद्भुत चेतना जागृत की थी। ‘नमक सत्याग्रह’ के नाम से इस यात्रा ने गांधीजी के शब्दों में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी थी।

Advertisment

वैसे तो इस यात्रा पर सैकड़ों किताबें लिखी गईं परंतु मेरे इस लेख का आधार डॉ. सुशीला नायर द्वारा लिखित किताब है। किताब का शीर्षक है ‘‘साल्ट सत्याग्रह - द वाटरशेड” (MAHATMA GANDHI : SALT SATYAGRAHA : THE WATERSHED)।

Advertisment

दांडी यात्रा 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से प्रारंभ होने वाली थी। परंतु 11 मार्च की शाम को ही वहाँ हजारों व्यक्ति एकत्र हो गए। जो लोग एकत्र हुए उनमें सरकारी कर्मचारी, मिलों के मालिक और मजदूर, शिक्षक, बुद्धिजीवी और राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल थे। सरदार पटेल को पहले ही गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था।

Advertisment

हजारों की भीड़ को संबोधित करते हुए गांधीजी ने कहा ‘‘यदि ईश्वर की कृपा रही तो हम कल प्रातः 6.30 बजे अपनी यात्रा प्रारंभ करेंगे। जो लोग यात्रा में शामिल होना चाहते हैं वे ठीक 6.30 बजे यहां पहुंच जाएं। यह अंतिम हमला है। मैंने आश्रम वापिस आने की शपथ नहीं ली है। परंतु हम और आप शपथ ले सकते हैं कि हम स्वराज हासिल करके ही वापिस लौटेंगे। हमारा यह संघर्ष एक महीने, एक वर्ष या अनेक वर्षों तक चल सकता है। परंतु जबतक हम आश्रम वापिस नहीं आएंगे। भले ही हमारी मौत हो जाए। भले ही हमारे सगे-संबंधियों की मौत हो जाए या आपके पास खबर आए कि आपका घर जला दिया गया है।’’

Advertisment

बारह मार्च को प्रातः भारी भीड़ आश्रम के पास एकत्र होने लगी। प्रातः 6 बजे तक आश्रम की तरफ आने वाली सड़कों पर तिल रखने की जगह भी नहीं बची। एलिस ब्रिज पर भी भारी भीड़ एकत्रित हो गई। ठीक 6.30 बजे चुने हुए 78 व्यक्ति तीन की पंक्ति में रवाना हुए। प्यारेलाल अपनी और गांधीजी की आवश्यक चीजें लिए हुए गांधीजी के ठीक पीछे चल रहे थे।

Advertisment

राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए निम्नलिखित 78 स्वयंसेवक मार्च में शामिल थे: गुजरात-31, महाराष्ट्र-12, उत्तरप्रदेश-8, कच्छ-6, केरल-4, पंजाब-3, राजपूताना-3, बम्बई- 3, सिन्ध-1, नेपाल-1, तमिलनाडु-1, आंध्र-1, उत्कल-1, कर्नाटक-1, बिहार-1 और बंगाल-1। ये सब यात्री पूरे दांडी मार्च में बापू के साथ रहे। आश्रम के आसपास एकत्रित हजारों की भीड़ बापू को आश्रम से 7 मील तक छोड़ने गई।

मार्च के पहले दिन असलाली गांव में बापू ने घोषणा की कि कुछ गावों के मुखियाओं ने इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्तीफा स्वयं स्फूर्त होना चाहिए। इस्तीफा देने के लिए किसी पर दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए।

14 मार्च को गांधीजी ने कुछ और गांवों के मुखियाओं के इस्तीफे की घोषणा की। इस्तीफा देते हुए गांवों के मुखियाओं ने कहा कि ऐसे शासन से सहयोग का सवाल ही नहीं उठता जो भारतवासियों का खून चूसता है और देशवासियों का शोषण करता है।

गांधीजी ने सत्याग्रहियों को अनेक नियमों का पालन करने की सलाह दी। विशेषकर सत्याग्रहियों को चरखा करतने का परामर्श दिया। इसके साथ ही उनका परामर्श था कि लोग सरकार से किसी भी प्रकार का सहयोग न करें। समस्त देशवासियों के लिए सेडिशन (देशद्रोह) का कोई डर नहीं था। वह एक प्रकार का धर्म हो गया था जिसका प्रत्येक व्यक्ति पालन करता था। नमक कानून को तोड़ने के अलावा अन्य कानून भी तोड़े जा रहे थे।

इस बीच 20 मार्च को जवाहरलाल नेहरू जिन्हें गांधी ने ‘राष्ट्र का मुख्य सेवक’ निरूपित किया था, अल सुबह आए। वे मुख्य रूप से बापू से मिलने आए थे। नेहरू ने दो बजे रात को नहर पार की थी वह भी थके हुए मछुआरों के कंधे के सहारे। एक स्थान पर सत्याग्रह में मुसलमानों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी आंदोलन बिना मुसलमानों और ईसाईयों, पारसियों और यहां तक कि गोरों की भागीदारी के बिना संभव नहीं हो सकता। इस समय हजारों ग्रामवासी, पुरूष, महिलाएं और बच्चे सत्याग्रह से जुड़ रहे हैं।

नेहरूजी ने इस संबंध में लिखा ‘‘आज ये सत्याग्रही एक लंबी मंजिल की तरफ बढ़ रहे हैं। उनकी आखों में एक अजीब चमक है। कौन जिएगा अगर भारत मरता है और कौन मरता है अगर भारत जिंदा रहता है।’’

इस दरम्यान 21 मार्च को अहमदाबाद में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक नेहरूजी की अध्यक्षता में संपन्न हुई जिसमें एक प्रतिज्ञापत्र का प्रारूप तैयार हुआ। इस दरम्यान मोतीलाल नेहरू ने जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर यह सूचित किया कि वे आनंद भवन देश को भेंट कर रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू ने पत्र का उत्तर देते हुए मोतीलाल नेहरू को धन्यवाद दिया और कहा कि वे इसकी सूचना कार्यकारिणी को दे रहे हैं और आज से आनंद भवन का नाम स्वराज भवन रखा जा रहा है। इस दरम्यान नमक सत्याग्रही अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जा रहे थे। रास्ते में बापू जनता को संबोधित करते थे।

छःह अप्रैल को गांधीजी लगभग 2 हजार सत्याग्रहियों के साथ समुद्र तट पर पहंचने वाले थे। समुद्र तट पहुंचने पर गांधीजी ने पहले समुद्र में स्नान किया और फिर मुठ्ठी भर नमक हाथ में लेकर गांधीजी ने घोषणा की कि अब नमक कानून भंग कर दिया गया है। इस दरम्यान सरकार इस बात पर विचार करती रही कि गांधीजी को गिरफ्तार किया जाए या नहीं। वैसे इस दौरान एक रेलवे सैलून तैयार रखा जाए। इस दरम्यान शासन के पास खबरें आती रहीं कि कभी भी गांधीजी की मृत्यु हो सकती है।

खबरों के अनुसार गांधीजी का रक्तचाप खतरनाक हद तक बढ़ा रहता था और उनके ह्दय की हालत भी अच्छी नहीं थी। सरकार ने उनकी कुंडली भी बनवाई जिसके अनुसार कभी भी उनकी मृत्यु हो सकती थी। इन सब कारणों के चलते सरकार को उनकी गिरफ्तारी की जल्दी नहीं थी।

गांधीजी द्वारा नमक कानून तोड़ने के बाद सभी सत्याग्रहियों को इशारा था कि वे अब कानून तोड़ सकते हैं। इसके बाद लोग अपने-अपने लोटों में समुद्र का पानी लाने लगे और अपने कैम्पों में उसे उबालकर नमक बनाते। इस तरह हजारों लोगों ने नमक कानून तोड़ा।

इस बीच संवाददाताओं को संबोधित करते हुए गांधीजी ने कहा कि अब जो भी चाहे, जहां भी चाहे, नमक बनाओ और कानून तोड़ो। उन्नीस अप्रैल को अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि ‘‘हमारे बीच सबसे महान जवाहरलाल नेहरू भी गिरफ्तार कर लिए गए हैं।’’

इसके बाद गांधीजी ने सबका आव्हान किया कि वे नमक के माल गोदामों पर छापा मारें। छापा मारते समय यदि पुलिस उनपर हमला करती है तो वे उनका विरोध न करें।

नेहरूजी की गिरफ्तारी के बाद अनेक बड़े नेताओं की गिरफ्तारी होने लगी। नेहरूजी व अन्य नेताओं की गिरफ्तारी के विरूद्ध राष्ट्रव्यापी आक्रोश होने लगा। कई स्थानों पर हिंसक घटनाएं हुईं जिनके बारे  में बोलते हुए उन्होंने कहा कि ये हिंसक घटनाएं हमारे संघर्ष को नुकसान पहुंचाती हैं। मध्यप्रदेश के जबलपुर में सेठ गोविंद दास और द्वारिका प्रसाद मिश्र ने ‘भारत में अंग्रेजी राज’ नामक पुस्तक के कुछ पृष्ठों का वाचन कर अपना विरोध प्रकट किया। इस दरम्यान नमक सत्याग्रह सारे देश में फैल गया। दक्षिण में राजगोपालाचारी, नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्राविन्स में खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में आंदोलन हुआ।

गांधीजी ने स्पष्ट किया कि स्थिति कितनी भी गंभीर हो जाए संघर्ष चलता रहेगा। कुछ स्थानों पर फौज ने आंदोलनकारियों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया। इस दरम्यान प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई।

बहुत सोच विचार के बाद 4 मई को आधी रात के 45 मिनट बाद गांधीजी की गिरफ्तारी की गई। गांधीजी कराड़ी नामक स्थान पर सो रहे थे। उस समय डिस्क्ट्रि मजिस्ट्रेट सूरत गिरफ्तारी का वारंट लेकर आए। उनके साथ 20 सशस्त्र पुलिस वाले थे। गांधीजी ने कहा वारंट पढ़कर सुनाया जाए। वारंट के अनुसार गांधीजी की गतिविधियां अत्यधिक खतरनाक हैं इसलिए उनपर नियंत्रण आवश्यक है। इस उद्धेष्य की पूर्ति हेतु उनकी गिरफ्तारी जरूरी है। इसलिए उनकी तुरंत गिरफ्तारी की जा रही है और उन्हें तुरंत यरवदा सेन्ट्रल भेजा जा रहा है। इसके बाद कार और ट्रेन से उन्हें यरवदा जेल ले जाया गया। बंबई सरकार के एक आदेश के अनुसार 100 रू. प्रतिमाह गांधीजी पर  खर्च किया जाना था। बम्बई सरकार ने यह आदेश भी दिया था कि पूना जिला अधिकारी महीने में दो बार गांधीजी से जेल में मिलें और उनके स्वास्थ्य संबंधी रिपोर्ट दें।

गांधीजी की गिरफ्तारी से पूरे देश में आक्रोश का तूफान सा आ गया। न सिर्फ देश में वरन् विदेशों में भी उसका असर दिखा। अमरीका के 102 धार्मिक नेताओं ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को लिखित संदेश भेजा कि गांधीजी से मिलकर समस्या का हल निकालें।

इसी बीच लार्ड इरविन ने एक महत्वपूर्ण बात कही। इरविन ने लंदन स्थित होम आफिस को लिखा कि यदि ब्रिटिश  सरकार भारत पर और शासन करना चाहता है तो ऐसी हालत में जब पूरा इंडिया कब्रिस्तान बन जाएगा मैं यह नहीं कर सकता। हमें गांधी से मिलकर हल निकालना होगा।     

- एल. एस. हरदेनिया

2022 में राहुल गांधी का मिशन 2024 : जाते हुए साल 2022 का राजनीतिक लेखा-जोखा | hastakshep

Remembering Bapu's Dandi March During Rahul Gandhi's Bharat Jodo Yatra

Advertisment
सदस्यता लें