Removal of topics like Nazism, electoral politics, human rights, fundamentalism from UP Board syllabus, attack on rational thinking
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यूपी बोर्ड के पाठ्यक्रम से नाजीवाद, चुनावी राजनीति, मानवाधिकार, मूलकर्तव्य जैसे विषयों को हटाना तर्कसंगत सोच पर हमला- रिहाई मंच
समाज, संविधान, लोकतंत्र को मजबूत करने वाले विषयों को हटाने से ब्राह्मणवादी-मनुवादी विचारों को मिलेगी मजबूती
लखनऊ, 25 जुलाई 2020। छात्रों पर बस्ते का बोझ कम करने के नाम पर विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और नागरिक शास्त्र आदि विषयों से संक्रामक बीमारियों सम्बंधी जानकारी, राजनीति, मानवाधिकार, विश्व बंधुत्व और सामाजिक कुप्रथाओं पर आधारित कई महत्वपूर्ण अध्यायों को शिक्षा के पाठ्यक्रमों से निकालने के सरकार के फैसले को रिहाई मंच ने वैज्ञानिक चेतना से वंचित करने और आने वाली पीढ़ियों को अंधविश्वास की तरफ ढकेलने वाला कदम बताते हुए उनकी पुनर्बहाली की मांग की है।
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रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि चुनाव, लोकतंत्र, सत्ता का विकेंद्रीकरण, राजनीति में नागरिकों की सहभागिता जैसे अध्यायों के साथ नाज़ीवाद और हिटलरशाही के अध्याय का पाठ्यक्रम से बाहर किया जाना लोकतंत्र के लिए बेहतर संकेत नहीं है। एक तरफ जहां यह तानाशाही की तरफ ले जाने वाला है वहीं सर्वधर्म समभाव, बाल संरक्षण, बाल विवाह, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, यौन उत्पीड़न आदि के ज्ञान से वंचना आने वाले समय में सामाजिक सद्भाव और उपराध मुक्त समाज संकल्पना पर ही कुठाराघात साबित होगी। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में पहले ही जातिगत और सम्प्रदायिक उत्पीड़न का दानव तांडव करता रहा है। स्कूलों में छात्रों का अधिकार जैसे विषयों से छात्रों को वंचित कर उनके उत्पीड़न को सही ठहराने की कोशिश है।
मंच महासचिव ने कहा कि वास्तव में इन विषयों को निकालने का मकसद छात्रों के बस्ते का बोझ कम करना नहीं बल्कि गैर बराबरी और जातीय एवं साम्प्रदायिक भेदभाव पर आधारित समाज और व्यवस्था के लिए मार्ग प्रशस्त कर तानाशाही की तरफ बढ़ने की दीर्घकालिक योजना का हिस्सा प्रतीत होता है। उन्होंने कहा कि समाज से सभी वर्गों को इसके खिलाफ एकजुट होकर आवाज़ उठाने की ज़रूरत है।
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उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण के दौरान जब अज्ञानता और अंधविश्वास इस महामारी से निपटने में सबसे बड़ी रुकावट बन रहे है तब उस दौर में संक्रामक बीमारियों से सम्बंधित विषय का पाठ्यक्रम से निकालने का फैसला तर्कसंगत विचार पर हमला है। उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकारी स्कूलों को अन्य शिक्षण संस्थानों को निजी हाथों में सौंप कर देश की गरीब और वंचित आबादी को शिक्षा से वंचित करने पर सरकार आमादा है। दूसरी तरफ पाठ्यक्रमों से महत्वपूर्ण अध्यायों को निकालने के पीछे साजिश है कि साक्षर तो बने मगर शिक्षित नहीं।
राजीव यादव ने कहा कि सरकार आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद और वैश्वीकरण की वकालत करती है, विदेशी निवेश की बात करती है लेकिन मानवाधिकार पर सार्वभौमिक घोषणा पत्र समेत तमाम अध्ययनों को पाठ्यक्रम से बाहर भी रखना चाहती है।
उन्होंने सवाल किया कि सरकार क्यों नहीं चाहती कि जनता अपने मानवाधिकारों और उसके अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के बारे में जाने? क्या सार्वजनिक क्षेत्र की सम्पत्तियों को बेचने के बाद सरकार पूंजीवादी व्यवस्था के उस चरम पर जाने की भूमिका बना रही है जहां मज़दूर, किसान, छोटे कारोबारियों के कोई अधिकार नहीं होंगे? पीड़ितों, महिलाओं और बच्चों के मानवाधिकारों के बारे में जानना और उसकी बात करना भी गुनाह हो जाएगा?