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लोक को बांटते तंत्र का प्रतिरोध - लोकतंत्र तानाशाही में तभी बदलता है जब जनता सवाल करना बंद कर देती है

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hastakshep
26 Feb 2020
लोक को बांटते तंत्र का प्रतिरोध - लोकतंत्र तानाशाही में तभी बदलता है जब जनता सवाल करना बंद कर देती है

Report of a seminar by Kannan Gopinathan in Indore

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इंदौर। लोकतंत्र तानाशाही में तब बदलता है जब लोग सरकारों से सवाल पूछना बंद कर देते हैं। सरकार जनता के मुद्दों पर बात नहीं करती एक समुदाय को पीड़ा पहुंचा कर खुश होने वाली पीढ़ी तैयार कर ली गई है। नागरिकता कानून के विरोध में चल रहे आंदोलन ने देश के भविष्य के लिए नेतृत्व तैयार किया है। इसमें युवाओं और महिलाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण हैं। दलितों और पिछड़ों को समझना होगा कि निजी करण के माध्यम से सरकार आरक्षण व्यवस्था समाप्त कर रही है।

ये विचार व्यक्त किए कलेक्टर की नौकरी छोड़कर आए सामाजिक कार्यकर्ता कण्णन गोपीनाथन ने। वे संदर्भ केंद्र, प्रगतिशील लेखक संघ, भारतीय जन नाट्य संघ, ( इप्टा ) रूपांकन, भारतीय महिला फेडरेशन तथा भगत सिंह दीवाने संस्था द्वारा इंदौर प्रेस क्लब में *लोक को बांटते तंत्र का प्रतिरोध* विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि देश में घुसपैठ रोकने के नाम पर नागरिकता कानून वर्ष 2016 में भी था उस दौरान पूर्वांचल में ही उसके विरोध में आंदोलन हुआ था। लेकिन उस समय गृह मंत्री अमित शाह नहीं थे जो अब हमें क्रोनोलॉजी समझा रहे हैं, धमका रहे हैं। तब के कानून में सांप्रदायिकता नहीं थी। हमें समझाया जा रहा है कि इस कानून से मुसलमानों के अलावा किसी को खतरा नहीं है, यह झूठ प्रचारित किया जा रहा है। सच्चाई तो यह है कि यह कानून सभी धर्मों के गरीबों के खिलाफ है। इसे हिंदू- मुसलमान में बांट कर दिखाया जा रहा है। इस कानून में नागरिकता का निर्णय धर्म के आधार पर लिया गया है, जो संविधान के विरुद्ध है। तीन देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश को धर्म आधारित देश बताकर वहां के हिंदू अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात की जा रही है। जबकि श्रीलंका और भूटान भी बौद्ध धर्म आधारित राष्ट्र हैं उन देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात क्यों नहीं की गई है ? श्रीलंका और म्यांमार से कई प्रताड़ित शरणार्थी आए लेकिन उन्हें नागरिकता नहीं मिली। सरकार पूछने पर भी जवाब नहीं देती।

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कैसे प्रमाणित होगी प्रताड़ना

एक धर्म विशेष के प्रति नफरत पालने वाली सरकार ने यह सोचा ही नहीं है कि इन देशों से आने वाले प्रताड़ित अपनी प्रताड़ना कैसे साबित करेंगे। सरकार और उनका दल देश में दो करोड़ घुसपैठिए बता रहा है। पहचाने गए घुसपैठियों का क्या किया जाएगा ? सरकार यह भी नहीं बता रही है। सरकार अपने आप में स्पष्ट नहीं हैं। बिना सोचे समझे फैसले लागू किए जा रहे हैं। नोट बंदी का फैसला भी ऐसा ही था जिसके परिणाम देश आज भी भुगत रहा है। देश की अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई है। सरकार को घुसपैठियों को तलाशना था तो सभी देशवासियों से नागरिकता का प्रमाण मांगने की जरूरत नहीं थी।

पर पीड़ा में खुशी ढूंढो

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कण्णन ने कहा कि नागरिकता के लिए न केवल माता पिता के जन्म का प्रमाण देना होगा अपितु परिवार में आपसी संबंधों को भी प्रमाणित करने वाले दस्तावेज देना होंगे। असम की एनआरसी का सबक हमारे सामने हैं। कई उदाहरण हैं नागरिकता सूची में भाई आ गया बहन नहीं आ सकी। संयुक्त राष्ट्र संघ के एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि वर्तमान में देश में 38% लोगों के पास जन्म का प्रमाण नहीं है। 25 साल पहले की स्थिति इससे भी बदतर रही होगी।

सरकार जनता के मुद्दों पर बात नहीं करती, वह केवल उस एजेंडे पर काम कर रही है जिनसे देश के एक ही धर्मावलंबी प्रभावित होते हैं। राम मंदिर के बाद तीन तलाक, कश्मीर और अब एनआरसी लाकर वे हमें कहते हैं कि चाहे तुम्हें कुछ नहीं दे पाए पर उन्हें तो औकात दिखा दी है। उसी में अपनी खुशी देखो। इस सोच के साथ एक पूरी पीढ़ी तैयार कर ली गई है। दूसरों की परेशानी में खुश होना अमानवीयता है। हर एक घंटे में एक बेरोजगार आत्महत्या कर रहा है। 42 वर्षों में जीडीपी सर्वाधिक नीचे हैं, लेकिन लोग इस बात पर खुश हो रहे हैं कि सरकार दूसरों को परेशान कर रही है।

तैयार हो रहा है देश का भावी नेतृत्व
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कण्णन ने कहा कि नागरिकता कानून के विरोध में युवा और महिलाएं सर्वाधिक सक्रिय है। यह लोग ही देश के भविष्य के नेता होंगे। आपातकाल के विरोध में भी ऐसे ही नेता उभरकर सामने आए थे। संघर्षों से तप कर आ रहे युवक मूल्यों के साथ खड़े हैं। उन्होंने कहा कि वे इन मुद्दों पर देश के 70 जिलों में भ्रमण कर चुके हैं। इस कानून को लेकर देश की विपक्षी पार्टियां जो प्रारंभ में ढुलमुल थी अब विरोध में खुलकर सामने आ रही है। यह कानून स्थाई नहीं है सत्ता बदलते ही यह कानून धारा शाही हो जाएगा।

कश्मीर पर

कण्णन ने बताया कि भ्रमण के दौरान वे लोगों से कश्मीर के बारे में सवाल करते रहे हैं। कश्मीर पर पाबंदी लागू हुए 203 दिन बीत चुके हैं। कई महिलाओं के बेटे, पति गायब हैं वहां का उच्च न्यायालय सुनने को तैयार नहीं है। धारा 370 हटाने के जो कारण सरकार ने बताए थे वह सब झूठे साबित हो रहे हैं। कश्मीर में न तो आतंकवाद घटा है नहीं विकास हुआ है। यों भी आतंकवाद का धारा 370 से कोई लेना-देना नहीं था। इस फैसले का असर यह हुआ है कि कश्मीर हमसे और दूर हो गया है। जो समुदाय कल तक कश्मीर के बारे में चुप था। आज एनआरसी पर मुखर है

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आंदोलन में मुस्लिम ही क्यों ?

कण्णन ने कहा कि एनआरसी के विरुद्ध जारी आंदोलन में मुसलमानों की सर्वाधिक भागीदारी स्वाभाविक है, क्योंकि यह उनके अस्तित्व की लड़ाई है। जबकि इस कानून से हिंदू भी प्रभावित होते है। असम का उदाहरण हमारे सामने हैं। यह लड़ाई देश के संविधान को बचाने की भी है। एक ही कानून एक समुदाय को नागरिकता देता है दूसरे को डिटेंशन सेंटर में भेजता है। सरकार कहती है कि एनआरसी पर अभी विचार ही नहीं हुआ है, उसकी शर्ते नहीं बनी है। यह कह कर वह जनता को धोखा दे रहे हैं, गुमराह कर रहे हैं। एनपीआर (नेशनल पापुलेशन रजिस्टर ) के बाद किसी भी तरह की एनआरसी की जरूरत ही नहीं रह जाती है। प्रति 10 वर्ष में होने वाली जनगणना और वर्तमान एनपीआर में अंतर है क्योंकि यह जनगणना एनआरसी के लिए ही की जा रही है। इसके दस्तावेज सार्वजनिक होंगे, लोगों से आपत्तियां मांगी जाएगी जबकि जनगणना की जानकारी कानूनी रूप से गोपनीय होती है। कानून में एनपीआर के बारे में नहीं लिखा है पर नियम ऐसे ही बनाए गए हैं। असम में एक ही दिन में दो लाख आपत्तियां मिली, लोग एक दूसरे की शिकायतें करने लगे। सरकार हर स्तर पर लोगों को लड़ाना चाहती है। असम में एनआरसी के लिए 6 वर्ष का समय लगा देश में एनआरसी के लिए कितना समय लगेगा समझा जा सकता है। तब तक हम एक दूसरे से नफरत करते रहेंगे।

नहीं मिलते अमित शाह

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कण्णन ने बताया कि टेलीविजन के एक शो में गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की थी कि एनआरसी के बारे में किसी भी जानकारी के लिए वह किसी से भी मिलने को तैयार हैं। लेकिन जब उन्होंने उनसे मिलने का समय मांगा तो उन्हें कोई जवाब नहीं मिला, नहीं मिलने का समय ही दिया गया। अमित शाह को पता है कि उनके पास जनता के सवालों के जवाब नहीं है।

नामकरण उचित नहीं है

शासक विरोध को दबाने के लिए घृणा फैला रहे हैं। सरकार का मतलब देश नहीं होता, जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है। सरकार समर्थक भय फैला रहे हैं।टुकड़े-टुकड़े गैंग, नक्सल, अर्बन नक्सल, खालिस्तानी, जिहादी, असहमत हिंदू जयचंद, ईसाई धर्म परिवर्तन कर्ता बताकर उनके विरोध में नफरत फैलाई जा रही है।

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देश में हर बार मुसलमानों को देशभक्ति और दलितों को अपनी काबिलियत प्रमाणित करना पड़ती है। पिछड़ों और दलितों को समझना होगा कि सरकार निजी करण के माध्यम से आरक्षण व्यवस्था को समाप्त कर रही है। निजीकरण का विरोध ही आरक्षण बचाने का साधन है। वर्तमान शासक प्रतिशोधी हैं। सरकार अपने से असहमत लोगों को परेशान करती हैं। इस भय से जनता ने सवाल पूछना ही बंद कर दिया है। लोकतंत्र तानाशाही में तभी बदलता है जब जनता सवाल करना बंद कर देती है। हम तो सरकार से सवाल करते रहेंगे।

राज्य सरकार की भूमिका

कण्णन ने बताया कि एनपीआर बिना राज्य सरकार के सहयोग से संभव ही नहीं है। एक बार अगर एनपीआर हो गया तो केंद्र को राज्य सरकार से सहयोग की जरूरत भी नहीं रहेगी। जो राज्य एनआरसी का विरोध करते हुए एनपीआर करने की बात करते हैं वह दोगले हैं, इसलिए विरोध करने वाले राज्यों को एनपीआर रोकना चाहिए। न्यायालयों के माध्यम से तानाशाही को समाप्त नहीं किया जा सकता। आपातकाल हटाने में भी न्यायालय की भूमिका नहीं थी। वैसे अब सर्वोच्च न्यायालय को तय करना है कि संविधान का अनुच्छेद 14 रहेगा या एनआरसी। जनता को ही इसका काले कानून के विरोध में प्रतिरोध संगठित करना पड़ेगा।

जिन युवाओं को देश की आजादी की लड़ाई लड़ने का अवसर नहीं मिला था उनके लिए यह मौका है, देश को बचाने का। सरकार को दंगे भड़काना आता है, शांतिपूर्ण आंदोलनों से निपटना वे जानती ही नहीं है। वर्तमान आंदोलन कई सबक दे रहा है। आंदोलनकारियों को धैर्य पूर्वक लंबी लड़ाई के लिए तैयार रहने की जरूरत है। प्रतिरोध से अधिक लोगों से मिलकर उन्हें समझाने की जरूरत है।

अपना परिचय दिया

निर्धारित विषय पर बोलने के पूर्व कण्णन गोपीनाथन ने अपना परिचय देते हुए बताया कि वह केरल के निवासी हैं। हरियाणा की लड़की से विवाह किया है। उनकी अंतिम पोस्टिंग दादरा नगर हवेली में थी, उस दौरान जब धारा 370 वाला मामला आया तो वे विचार करने पर विवश हो गए। जब सरकार ने पूरे कश्मीर को ही जेल में बदल दिया, कई युवा गिरफ्तार हुए, संचार व्यवस्था भंग कर दी गई तब उन्हें उम्मीद थी कि मीडिया, न्यायालय, समाज से इसके विरोध में आवाज उठेगी। मानवीय मूल्यों के पक्ष में लोग खड़े होंगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। तब उनका भरोसा टूटा। इसी दौरान मार्टिन लूथर किंग को पढ़ने के दौरान उन्होंने समझा कि न्याय तभी मिलता है जब जनता उसके लिए लड़ती है। व्यवस्था में रहकर उसे बदला नहीं जा सकता, तब उन्होंने कश्मीर के मामले में सरकार की षड़यंत्र पूर्ण नीति के विरोध में आईएएस की नौकरी छोड़कर जनता के साथ मिलकर आंदोलन में सहभागिता निभाना तय किया।

सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है

आयोजन के संयोजक प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने संचालन करते हुए कहा कि देश में शासकों का अन्याय तेजी से सक्रिय है। एनआरसी से पहले कश्मीर में जो कुछ हुआ वह संविधान के साथ खिलवाड़ है। व्यवस्था में जाकर चीजों को सुधारा नहीं जा सकता। कण्णन ने साबित किया है कि सब कुछ समाप्त नहीं हो गया है। वर्तमान में चल रहा आंदोलन इंसानियत को बचाने के लिए है। यह लड़ाई हम पर थोपी गई है। उन्होंने दिल्ली दंगों में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए इंदौर की सामाजिक कार्यकर्ता कल्पना मेहता को याद किया और उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की।

मोदी जी को दिया धन्यवाद

मंच पर बड़वाली चौकी और माणक बाग में एनआरसी के विरुद्ध धरना दे रही महिलाओं और अन्य लोगों का नेतृत्व करने वाली शुमायरा, इरमजी, मुस्तफा फातिमा, शबाना फातिमा ने अपना परिचय देते हुए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद दिया कि उन्होंने घरों से बाहर बाहर आकर अन्याय का विरोध करने का उन्हें अवसर प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि हम अपने संविधान, अधिकार और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

महिला नेत्रियों ने इंदौर में आंदोलन के संयोजक वरिष्ठ समाजसेवी आनंद मोहन माथुर को भी धन्यवाद दिया।

भारतीय महिला फेडरेशन की सारिका श्रीवास्तव ने बताया कि वह इंदौर के अलावा भी प्रदेश के कई जिलों में जारी धरनो में शामिल हुई है। बुर्के में रहने वाली महिलाएं भी अब विद्रोह की भाषा बोलने लगी है। वह अब अपने अधिकारों के लिए जाग गई है।अदिति मेहता ने कहा कि देश में जारी आंदोलन सही स्वरूप धारण नहीं कर पाया है। इसमें हर तरह के अन्याय के पीड़ितों को एकजुट होकर इस आंदोलन में शामिल होना होगा।

कार्यक्रम के प्रारंभ में इप्टा की शर्मिष्ठा के निर्देशन में दो जन गीत गाए गए हबीब जालिब का प्रसिद्ध गीत" ऐसे दस्तूर को, सुबह के नूर को, मैं नहीं मानता "तथा ब्रेश्ट की अनुवादित गीत" वह सब कुछ करने को तैयार, सभी अवसर उनके, सुधार गृह जेल सब उनके, सभी दफ्तर उनके, कानूनी किताबें उनकी, कारखाने हथियार उनके, जज और जेल उनके, सभी अफसर उनके" की प्रस्तुति में उजान, महिमा और सारिका श्रीवास्तव ने भी भागीदारी की।

-- हरनाम सिंह

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