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कप और चाय : चंडीगढ़ पर पंजाब विधानसभा में पास प्रस्ताव
भारी बहुमत से जीतकर आम आदमी पार्टी ने पंजाब में सरकार बना ली। भगवंत मान मुख्यमंत्री बन गए और राघव चड्ढा सुपर मुख्यमंत्री। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह चंडीगढ़ आए और उन्होंने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए केंद्र में लागू नियमों और सेवा शर्तों को लागू करने की घोषणा की। उनकी घोषणा के दो दिन बाद इन नियमों को नोटिफाई कर दिया गया। नोटिफिकेशन में कहा गया है कि चंडीगढ़ के केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत ग्रुप 'ए', ग्रुप 'बी' और ग्रुप 'सी' में सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तें भारत सरकार की केंद्रीय सिविल सेवाओं में संबंधित सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों के समान होंगे, जबकि समूह 'डी' के कर्मचारियों पर केंद्रीय सिविल सेवा के तहत संबंधित समूह 'सी' के समान ही शर्तें लागू होंगी।
इसकी प्रतिक्रिया में पंजाब विधानसभा में एक प्रस्ताव पास करके कहा है कि चंडीगढ़ पंजाब का हिस्सा है और इसे पंजाब को सौंपा जाना चाहिए। इसके बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस विवाद की आग में घी डाल दिया है।
चंडीगढ़ और हरियाणा के नेताओं ने भी पंजाब की तर्ज पर हुंआ-हुंआ करना शुरू कर दिया है। आम आदमी पार्टी की हरियाणा और चंडीगढ़ शाखाओं ने इस पर मौन साध रखा है लेकिन शेष हर दल ने पंजाब सरकार की कार्यवाही की निंदा की है। चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा के अलग-अलग राजनीतिज्ञों ने अपने-अपने राज्य के हितों के अनुसार बयान दिए हैं।
हरियाणा के सभी दलों ने की है निंदा पंजाब विधानसभा में पास प्रस्ताव की (All the parties of Haryana have condemned the pass motion in the Punjab Assembly)
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर (Haryana Chief Minister Manohar Lal Khattar) द्वारा बुलाए गए हरियाणा विधानसभा के एक दिन के विशेष सत्र में सभी दलों ने मिलकर पंजाब विधानसभा में पास किये गये प्रस्ताव की निंदा (Condemnation of the resolution passed in the Punjab Assembly) करते हुए केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह पंजाब सरकार को अपने प्रस्ताव को वापिस लेने के लिए कहे। हरियाणा के सभी राजनीतिक दलों ने कहा है कि चंडीगढ़ छोड़ने का कोई सवाल ही नहीं है। इसके अलावा अब यह भी कहा गया है कि सतलुल-यमुना नहर के निर्माण के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा के हक में फैसला दिया है अत: केंद्र अब पंजाब सरकार को इस नहर के निर्माण का आदेश दे और पानी के समान बंटवारे के लिए हांसी-बुटाना नहर के निर्माण की अनुमति दे।
हमारे राजनीतिज्ञ चाय के बजाए फोकस कप पर कर रहे हैं
मुझे एक कहानी याद आती है। एक बार एक अध्यापक ने अपने पुराने विद्यार्थियों को अपने घर चाय पर बुलाया और एक बड़ी केतली में चाय और उसके साथ खाली कप रखवा दिए। उनके सभी विद्यार्थियों ने अपनी-अपनी पसंद के कप उठा लिये और चाय पीने लगे। जब सब विद्यार्थी चाय समाप्त कर चुके तो अध्यापक ने उनको संबोधित करते हुए कहा कि आप सबने चाय पी लेकिन हर किसी की कोशिश थी कि उसे सुंदर दिखने वाला कप मिले, जबकि चाय तो सबके लिए एक ही बनी थी।
आप किसी भी कप में चाय पियें, चाय का स्वाद वही रहेगा, उसके बावजूद हम चाय के बजाए कप पर ध्यान देते हैं। जीवन भर हम यही गलती करते हैं कि हमारा फोकस चाय के बजाए कप पर होता है। हमारे राजनीतिज्ञ भी वही कर रहे हैं। ये नेतागण चाय से हमारा फोकस हटा कर कप की बातें कर रहे हैं।
चंडीगढ़ विवाद से पंजाब को क्या मिलेगा? (What will Punjab get by creating controversy over Chandigarh?)
पंजाब में विकास कैसे हो, पूंजी की समस्या से कैसे निपटा जाए, नई परियोजनाएं कैसे शुरू हों, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों की कमियों को कैसे दूर किया जाए, इस पर काम शुरू करने के बजाए चंडीगढ़ पर विवाद खड़ा करके पंजाब को क्या मिलेगा? पंजाब की जनता को इससे क्या लाभ होगा? चंडीगढ़, हरियाणा और पंजाब दोनों प्रदेशों की संयुक्त राजधानी होने के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश भी है और यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है, शांतिपूर्वक चलता रहा है। चंडीगढ़ का स्टेटस कुछ भी हो, यह रहेगा हिंदुस्तान में ही, फिर इसे मुद्दा बनाकर जनता को भरमाने की कोशिश क्यों?
क्या चंडीगढ़ पर पंजाब विधानसभा में पास प्रस्ताव संवैधानिक है? (Is the resolution passed in the Punjab Assembly on Chandigarh constitutional?)
हमारे संविधान का नियम है कि यदि कोई क्षेत्र लगातार बीस साल तक केंद्र शासित प्रदेश रहे तो उसे किसी दूसरे राज्य को देने लिए संविधान में संशोधन करना होगा। इसका मतलब यह है कि पंजाब विधानसभा या हरियाणा विधान सभा द्वारा चंडीगढ़ पंजाब को देने या न देने से संबंधित पास किया गया कोई भी प्रस्ताव राज्य की नीयत का प्रतिबिंब तो हो सकता है लेकिन उसका संवैधानिक महत्व शून्य है क्योंकि संविधान में संशोधन का अधिकार राज्यों के पास नहीं है। यह जानते-बूझते हुए भी भगवंत मान की सरकार ने एक निरर्थक कार्यवाही की है और अब हरियाणा सरकार की भी यही मन्शा है। ये राजनीतिज्ञ लोग हमें सुंदर कप में खराब चाय दे रहे हैं।
असली मुद्दों से ध्यान हटाने की साजिश कर रही हैं तीनों सरकारें
यह सही है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत से तिलमिलाए मोदी-शाह ने पंजाब को राजनीतिक रूप से नीचा दिखाने के लिए चंडीगढ़ में केंद्र की सेवा शर्तों के नियमों को लागू करने का तुर्रा छेड़ा लेकिन यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं था जिसकी प्रतिक्रिया में पंजाब सरकार इसे बड़े विवाद का मुद्दा बनाती, पर इसे मुद्दा बनाकर केंद्र, पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने लोगों का ध्यान असली मुद्दों से हटाने की साजिश की है। ये तीनों सरकारें इसके लिए जनता की दोषी हैं।
उल्लेखनीय है कि पंजाब के हालिया विधानसभा चुनावों के समय किसी भी दल ने अपने घोषणापत्र में चंडीगढ़ का ज़िक्र नहीं किया था लेकिन केंद्र सरकार ने एक छोटा-सा तुर्रा छोड़ा और पंजाब ने उसे लपक लिया, परिणामस्वरूप यह फिर से एक मुद्दा बन गया और हरियाणा विधानसभा चुनावों के समय तक इसे ज़िंदा रखकर, शिक्षा, महंगाई और विकास से ध्यान बंटा कर चंडीगढ़ के मुद्दे को दुहने की कोशिश की जाएगी। चंडीगढ़ का मुद्दा सिर्फ एक खबर नहीं है, यह एक नीतिगत षड़यंत्र है जिसमें जनता को फंसाने की कोशिश की गई है ताकि जनमानस अपने असली दुखों को भूलकर उन मुद्दों पर फोकस बना ले जिनका उनके विकास से कुछ भी लेना-देना नहीं है।
हमें समझना होगा राजनीतिज्ञों के षड़यंत्र को
अब समय आ गया है कि हम राजनीतिज्ञों के इस षड़यंत्र को समझें और ऐसे हर मामले में उनका सक्रिय विरोध करें। यह किसी एक दल का मामला नहीं है, यह किसी एक नेता का मामला नहीं है, लेकिन यह जनता का मामला जरूर है, शांति और कानून का मामला जरूर है। यह मामला हमारे देश की प्रगति को प्रभावित कर सकता है इसलिए इससे पूरी गंभीरता से निपटा जाना चाहिए। सरकारों ने षड़यंत्र किया है, अब जनता को जवाब देना है।
पी. के. खुराना
लेखक एक हैपीनेस गुरू और मोटिवेशनल स्पीकर हैं।