समीक्षा केन्द्रीय बजट 2021-22: खोदा पहाड़ निकली चुहिया

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hastakshep
02 Feb 2021
समीक्षा केन्द्रीय बजट 2021-22: खोदा पहाड़ निकली चुहिया

Review Union Budget 2021-22

वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए संसद में प्रस्तुत बजट (Budget presented in Parliament for the financial year 2021-22) समाज के किसी भी वर्ग की आकांक्षाओं और उम्मीदों के नजरिये से सकारात्मक एवं संतुलित नहीं है। कोरोना महामारी के साये में पेश बजट से देश के लोगों को उम्मीदें थी कि कोविड-19 के कारण आई महा आपदा से निपटने एवं उबरने में यह बजट कुछ राहत भरा पैगाम लेकर आयेगी और लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। आमजन की यह आस जायज भी है और जरूरी भी है, लेकिन इस बजट ने न केवल आमजन की आकांक्षाओं के साथ कुठाराघात किया गया है बल्कि अर्थव्यवस्था को भी आज एक ऐसे चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया गया है जहां से जाने के रास्ते तो अनेक हैं लेकिन उन रास्तों में जाने के खतरे एवं संकट उससे भी अधिक है।

बजट पूर्व संसद में प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा में ’वी’ शेप रिकवरी के साथ आगामी वित्तीय वर्ष में 11 प्रतिशत की दर से जीडीपी बढ़ने के दावे किये जा रहे थे। गांव, गरीब, किसान, मध्यमवर्ग, व्यापारी वर्ग सभी को उम्मीदें थीं कि कोरोना के कारण पिछले 9-10 महिने से लगभग सुस्त एवं मंद पड़ी अर्थव्यवस्था की सुधार की प्रक्रिया में तेजी एवं गति आयेगी। बजट में रोजगार के नये अवसर बढ़ाने के प्रावधान होंगे जिससे बाजार में मांग पैदा होगी। करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाली असंगठित क्षेत्र में नये उत्साह का संचार होगा। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा एक बार फिर दोहराया गया था। आज बजट देखकर ठगा हुआ अनुभव हुआ और पिछले 8-10 महीने से दोहराई जा रही सारी बातें बेमानी लगने लगीं।

बजट ने मध्यमवर्ग को सर्वाधिक ठगा

इस बजट से यदि देश का कोई वर्ग है जो सबसे अधिक ठगा हुआ अनुभव कर रहा है वह हमारा मध्यमवर्ग है। मिडिल क्लास को आयकर पर कोई राहत नहीं देकर सरकार द्वारा उल्टा यह दावा किया जा रहा है कि इस बजट में कोई नया कर नहीं लगाया गया है। भविष्य निधि पर जमा पैसे को भी छिनने, हड़पने की कोशीश की जा रही है।

इस बजट में एक बार फिर सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाइयों को बेचकर आधारभूत संरचना विकसित करने के दावे किये गये हैं।

बीमा सेक्टर में विदेशी निवेश को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत किया जा रहा है, इसका मतलब साफ है भारतीय जीवन बीमा निगम आने वाले दिनों में संकट में पड़ने वाला है।

कृषि सेस के नाम पर पेट्रोल-डीजल से राज्यों को मिलने वाली राशि में गुपचुप तरीके से सेंध लगायी गई है।

फाईव ट्रिलियन इॅकोनामी की बात बजट में कहीं नजर नहीं आती है।

रोजगार, मंहगाई, कृषि सुधार जैसे मुद्दे बजट से गायब हैं। अर्थव्यवस्था में तात्कालिक मांग पैदा करने के लिए बाजार में तरलता, नकदी बढ़ाने के कोई उपाय नजर नहीं आते हैं। दो महीने से भी अधिक समय से सड़कों पर बैठे किसानों के लिए बजट में कहीं कोई जिक्र नहीं है।

कृषि को आधुनिक बनाने के दावे किये जा रहे हैं लेकिन किसानों की स्थिति सुधारने, किसानों की आत्महत्या रोकने जैसे गंभीर विषयों पर बजट में कोई चर्चा नहीं की गई। कोरोना के कारण ऑनलाईन कक्षाओं के लिए स्मार्ट मोबाईल फोन की आवश्यकता आज मध्यमवर्ग के लिए कितनी महत्वपूर्णं हो गई है, सरकार अब इसे ही मंहगा करने जा रही है। कॉटन, ऑटो पार्टस जैसे मध्यमवर्गीय अनिवार्यताओं पर टेक्स बढ़ाने की मंशा पचती नहीं है।

सरकार सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश करके पैसा जुटाकर किस तरह का ढ़ांचागत विकास करना चाहती है ? और फिर अभी तो इसकी जरूरत ही नहीं है। फिलहाल तो अर्थव्यवस्था में मांग उत्पन्न करना, अर्थव्यवस्था को निगेटिव जीडीपी से बाहर निकालना मुख्य मकसद होना चाहिए था, और इसके लिए बजट में कोई खास प्रावधान नजर नहीं आते हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट में 137 प्रतिशत की बढ़ोतरी एक अच्छी पहल मानी जा सकती है, लेकिन देखना यह है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में इस बजट का उपयोग नई भर्तियों, नियुक्तियों में कितना होता है।

किसी भी विकासशील देश और खासकर भारत जैसे बहुसंख्यक आबादी वाले देश में जहां की तीन-चौथाई आबादी मध्यमवर्ग की श्रेणी में आती है, मध्यमवर्ग ही विकास, तरक्की, उन्नति, प्रगति, सुधार, बदलाव एवं परिवर्तन का सुत्रधार एवं अर्थव्यवस्था का इंजन होता है। यही वह वर्ग है जो बाजार को गति देता है, बाजार में मांग पैदा करता है, बाजार में सुधारों को आगे बढ़ाता है। बाजार के माध्यम से रोजगार पैदा कराता है। बाजार एवं अर्थव्यवस्था को नई दिशा, दशा एवं गति प्रदान करता है, उसे ही इस बार के बजट ने एक बार फिर ठेंगा दिखाया है।

टैक्स का सारा बोझ मध्यमवर्ग पर डालकर सरकार विनिवेशीकरण के माध्यम से देश में सुधार लाने की उम्मीद पाले आगे बढ़ रही है। इस बजट में मध्यम वर्ग को कहीं कोई राहत नहीं दी गई, यही इस बजट का सबसे खराब पहलू है।

डॉ. लखन चौधरी

(लेखक; प्राध्यापक, अर्थशास्त्री, मीडिया पेनलिस्ट, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषक एवं विमर्शकार हैं)

Dr-Lakhan-Choudhary

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