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rishi sunak
भारत के हिन्दुत्ववादी लोगों में इन दिनों ब्रिटेन का नशा चढ़ा हुआ है। अभी तक वे हिंदुत्व के नशे में थे, इन दिनों ऋषि सुनक के नक़ली नशे में हैं। यह नशा पैदा किया है मीडिया के हिन्दुत्ववादी अबाध प्रवाह ने।
यह सच है ब्रिटेन में सुनक ऋषि पीएम बन गए हैं। उनका भारत से कोई लेना देना नहीं है। इसके बावजूद हिन्दुत्ववादी गैंग उनके पीएम बनने को हिन्दूधर्म की विजय के रूप में देख रहा है।
ऋषि सुनक की खूबी क्या है
सुनक की खूबी है उनका ब्रिटेन का नागरिक होना, न कि हिन्दू होना। वे इसलिए पीएम नहीं बनाए जा रहे, क्योंकि वे हिन्दू हैं। हिन्दूधर्म उनकी व्यक्तिगत चीज है, यह उनकी पहचान का मूल नहीं है। उनकी पहचान ब्रिटेन की नागरिकता से बनी है।ले किन हिन्दुत्ववादियों को तो धर्म की पहचान के आगे नागरिक की पहचान नज़र नहीं आती।
सुनक और उनके राजनीतिक दल ने कभी हिन्दूधर्म के नाम पर वोट नहीं माँगे। भारतवंशी के नाम पर वोट नहीं माँगे। वे हमेशा राजनीतिक कार्यक्रम के आधार पर चुनाव लड़ते रहे। लेकिन हिन्दुत्ववादियों को इस सबसे कोई लेना-देना नहीं है।
किस फेक थ्योरी पर काम कर रहे हैं हिन्दुत्ववादी?
हिन्दुत्ववादी एक फेक थ्योरी पर काम कर रहे हैं। थ्योरी यह है हिन्दू धर्म महान है। विश्व में वर्चस्व स्थापित करने की उसमें क्षमता है। इस थ्योरी का अनेक दंतकथाओं के ज़रिए वे आए दिन प्रचार करते रहते हैं। उनके सिद्धान्त प्रचार में एक सूत्र है ‘वसुधैव कुटुम्बकम’। इस धारणा का वे खूब दोहन करते हैं। जबकि वास्तविकता यह है हिन्दू धर्म भारत में किसी भी युग में सर्व-स्वीकृत धर्म नहीं रहा। हिन्दू धर्म में जितने भी विचार हैं वे सब लोकल यानी स्थानीयता से बंधे हैं। जाति और वर्णाश्रम व्यवस्था से बंधे हैं।
विश्व में वे तमाम देश जो लोकतंत्र, लोकतांत्रिक संरचनाओं और लोकतांत्रिक मनुष्य के निर्माण में लगे हैं, वे कभी उन विचारों की ओर नहीं लौट सकते जिनकी धुरी असमानता है। हिन्दू धर्म व्यक्ति से व्यक्ति के बीच असमानता के आचरण पर टिका है। आज भी असमानता इसकी धुरी है। उसने समानता के नज़रिए का कभी समर्थन नहीं किया ,समर्थन किया होता तो ब्रिटेन के शासकों को मनुस्मृति के स्थान पर भारतीय दण्ड संहिता लागू न करनी पड़ती।
आज भी आरएसएस के लोग कहते हैं गर्व से कहो हम हिन्दू हैं। वे यह नहीं कहते कि गर्व से कहो हम नागरिक हैं। उनके यहाँ अनेक रूपों और स्तरों पर संविधान का प्रवेश वर्जित है और मनुस्मृति और धर्मशास्त्रीय मान्यताएँ और धार्मिक रुढ़ियां जीवन में मुख्य संचालक हैं।
संघ के लोग आज भी संविधान का पालन करने से डरते हैं और उससे दूर रहकर चलते हैं, उनको भय है कि कहीं संविधान का उन्होंने पालन किया तो हिन्दूधर्म ख़त्म न हो जाए। इसलिए वे अहर्निश धर्मनिरपेक्षता पर हमले करते रहते हैं। जबकि सुनक को धर्मनिरपेक्षता पसंद है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि लोकतंत्र का धर्म के साथ अंतर्विरोध है।
लोकतंत्र जब आता है तो वह ईश्वर और धर्म के स्थान पर मनुष्य को प्रतिष्ठित करता है। सारी दुनिया में ईसाईयत और राजा के वर्चस्व को लोकतंत्र ने ख़त्म किया। ब्रिटेन में भी ईसाईयत के वर्चस्व को लोकतंत्र ने ख़त्म किया, मनुष्य की शक्ति और नागरिकता की पहचान को प्रधान बनाया। भारत में भी जब संविधान बना तो धर्म को नहीं मनुष्य को प्रधान बनाया गया। मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की नई व्याख्या और नई समानता पर आधारित व्यवस्था पैदा हुई।
हमारे पुरानेअधिकांश शास्त्रों में समानता की धारणा नहीं है। जहां है भी वहाँ वे वर्णाश्रम व्यवस्था को जीवन से अपदस्थ नहीं कर पाए। एकमात्र लोकतंत्र और मनुष्य की सत्ता ही है जो समानता का जयघोष करती है।
धर्म कभी समानता का जयघोष नहीं करता।
धर्म में तो निषेधों और असमानता और शोषण से लड़ने की क्षमता ही नहीं है। हिन्दू धर्म भेदों को मानता है और भेदों को पालता-पोसता है। यही वजह है कि राजा राजमोहन राय ने हिन्दू धर्म की तीखी आलोचना विकसित की, उसका प्रचार किया। राजा राजमोहन राय आधुनिक भारत के जनक हैं। कोई हिन्दू नेता या आरएसएस का नेता आधुनिक भारत का जनक नहीं है।
राजा राजमोहन राय ने हिन्दू धर्म को अस्वीकार करते हुए ब्रह्म समाज की स्थापना की। आधुनिक भारत में सबसे पहले आधुनिक मनुष्य और आधुनिक मूल्यों की ओर हम सबका ध्यान खींचा और हिंदू धर्म की तीखी आलोचना विकसित की।
राजा रामममोहन राय ने हिन्दू, इस्लाम और ईसाई तीनों ही धर्मों की अपने लेखन में तमाम बुरी चीजों की आलोचना विकसित की। धर्म की पहचान से देश की जनता को मुक्त करके मनुष्य की पहचान को प्रतिष्ठित किया। उस ज़माने के सनातन हिन्दू धर्म के मानने वालों के ख़िलाफ़ समझौताहीन वैचारिक-सामाजिक संघर्ष चलाया और आधुनिक भारत के निर्माण में केन्द्रीय भूमिका अदा की।
ब्रिटेन में सुनक के पीएम बनने से भारत में घी-दूध की नदियाँ बहने वाली नहीं हैं, नहीं ब्रिटेन में आर्थिक संकट दूर होने वाला है।
सुनक के वित्तमंत्री रहते ब्रिटेन में आर्थिक संकट कम नहीं हुआ, अब वे पीएम बनेंगे तो कोई मूलगामी परिवर्तन वहाँ के समाज में आने की संभावनाएँ नहीं हैं।
बुनियादी बात यह है ऋषि सुनक एक राजनीतिक नेता हैं, वे हिन्दू नेता नहीं हैं। उनके पास लोकतंत्र की परंपराओं और मूल्यों की समृद्ध परंपरा है, जिसका हमारे हिन्दुत्ववादियों और उनके नायक पीएम नरेन्द्र मोदी में एकसिरे से अभाव है।
नरेन्द्र मोदी और ऋषि सुनक की तुलना
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नरेन्द्र मोदी और ऋषि सुनक में कई बुनियादी अंतर हैं। पहला अंतर यह है कि नरेन्द्र मोदी पीएम बनने के बाद भी हिन्दू की पहचान से अपने को मुक्त नहीं कर पाए हैं, जबकि सुनक ने कभी हिन्दू पहचान के प्रतीकों को अपने राजनीतिक सार्वजनिक आचरण का अंग नहीं बनाया। वे अपने लोकतांत्रिक व्यक्ति की तरह पेश करते रहे।
लोकतांत्रिक व्यक्ति और हिन्दू व्यक्ति में जमीन-आसमान का अंतर होता है। हिन्दू व्यक्ति धर्म के बोझ को ढोता है, लोकतांत्रिक व्यक्ति धर्म से मुक्त स्वतंत्र नागरिक की भूमिका निभाता है।
दूसरा बड़ा अंतर यह है कि सुनक ने उन्मादी प्रचार नहीं किया, मोदी ने उन्मादी प्रचार किया।
तीसरा अंतर यह है कि सुनक ने कभी ब्रिटेन के सरकारी धन का धार्मिक-पर्व महोत्सव पर अपव्यय नहीं किया, जबकि मोदी ने अरबों रुपए का सरकारी धन हिन्दू धर्म और उत्सवों पर खर्च किया। इसे धार्मिकता का प्रचार कहते हैं।
सुनक के लिए जनता प्रमुख है मोदी के लिए संघ और उसका प्रौपेगैंडा प्रमुख है।
सुनक ने कभी मीडिया सेंसरशिप की हिमायत नहीं की, मीडिया के दमन का समर्थन नहीं किया, जबकि मोदी ने मीडिया का दमन किया, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले बोले।
सुनक के देश में यूएपीए जैसे क़ानून में न्यूनतम लोग बंद हैं, जबकि भारत में विश्व के सबसे अधिक क़ैदी यूएपीए जैसे जनविरोधी-राष्ट्र विरोधी क़ानून के तहत मोदी शासन में बंद किए गए। भारत में तकरीबन साढ़े तेरह हज़ार से अधिक निर्दोष लोग बंद हैं।
ऋषि सुनक ने कोरोना काल में हर नागरिक को सब्सिडी दी, मोदी ने किसी की आर्थिक मदद नहीं की। क्योंकि हिन्दुत्व में जनता की मदद करना मुख्य नहीं है। हिन्दुत्व में मुख्य है सत्ता हथियाना और दलाली खाना।
सुनक को लोकतंत्र के लिए सांसदों की ख़रीद फ़रोख़्त और अपहरण, जोड़तोड़, होटलबाजी नहीं करनी पड़ी, पीएम मोदी आए दिन विधायकों-सांसदों की खरीद- रोख्त, नेताओं की ख़रीद फ़रोख़्त करते रहते हैं। चुनी हुई सरकारों को गिराते रहते हैं, क्योंकि उन्हें लोकतंत्र और उसकी कार्यप्रणाली में विश्वास नहीं है। जबकि सुनक का लोकतंत्र में अटूट विश्वास है।
सबसे बड़ी बात यह है सुनक बातूनी-भाषणबाज-असत्यवादी नहीं हैं। मोदी को भाषण और असत्यवाचन के अलावा कुछ नहीं आता। अहर्निश भाषण देना और असत्य बोलना उनके व्यक्तित्व का गुण है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी
(प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी की एफबी टिप्पणी का संपादित रूप साभार)
Rishi Sunak vs Modi, Citizen vs Hindutva!