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Know all about Rohira Flower & Tree in Hindi | Know Your Nature
रोही अर्थात रेगिस्तान के जंगल में पनपने के कारण ही इस वृक्ष का नाम Tecomella (रोहेड़ा) रहा होगा। Tecomella (रोहेड़ा) थार का रेगिस्तानी वृक्ष है। शुष्क और अर्ध शुष्क जलवायु क्षेत्र में इसका जीवन पनपता है। स्थानीय स्तर पर प्रचलित नाम Tecomella (रोहेड़ा) तथा वनस्पतिक नाम टेकोमेला उण्डुलता (rohida flower scientific name) है। थार रेगिस्तान के बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानरे, जोधपुर, नागौर, जालौर, सिरोही, पाली, चूरू, सीकर और झुंझुनू जिले Tecomella (रोहेड़ा) वृक्ष के ठाए ठिकाने हैं। थार रेगिस्तान के पाकिस्तान क्षेत्र के अलावा शुष्क, अर्ध शुष्कीय जल वायु वाले मैदानी और पहाड़ी क्षेत्र में भी पाया जाता है।
Rohida tree in Hindi
अरब के रेगिस्तान में भी इस प्रजाति के पौधे पाए जाते हैं। इस वृक्ष की सूखा सहन करने की अपार क्षमता है। यह वृक्ष 150 मिलीलीटर से 500 मिलीलीटर वाले वर्षा क्षेत्र में अपने अस्तित्व को बनाए रखता है। रेगिस्तान में सूखा की बारंबरता के बावजूद इसका पेड़ पतझड़ी मौसम को छोड़कर अधिकतर समय हरियाली से आच्छादित रहता है। रेगिस्तान की भीषण गर्मी में यह 43 डिग्री से 48 और कई बार 50 डिग्री तक के तापमान को झेलते हुए हरा भरा रहता है। इतना ही नहीं इसका पेड़ न्यूनतम शून्य तक और कभी कभी शून्य से दो डिग्री कम तक के तापमान को सहन करने की क्षमता रखता है।
Rohida flower in Hindi
Tecomella (रोहेड़ा) की खास बात इसके सुंदर और आकर्षक फूल होते हैं। कुछ पौधों के वर्ष में एक बार जबकि अधिकांश के साल में दो बार फूल आते हैं। दिसंबर अंत से जनवरी के बीच तथा मार्च और अप्रैल में पीले, नारंगी तथा लाल रंग के फूलों से रेगिस्तान में रंग भर देता है बल्कि यूँ कहा जाये कि रेगिस्तान का श्रृंगार कर देता है। हालांकि Tecomella (रोहेड़ा) के फूल खुशबू रहित होते हैं लेकिन देखने में काफी सुंदर और आकर्षक होते हैं।
राजस्थान का राज्य फूल | State flower of Rajasthan,
31 अक्टूबर 1983 को रोहिड़ा को राजस्थान का राज्य पुष्प घोषित किया गया है। रेगिस्तान में दूर-दूर तक पसरी रंगहीन रेत के धोरों से सटे मैदानी इलाकों में जनवरी से अप्रैल माह तक रंगों की बौछार कर देने वाला यह वृक्ष प्रकृति की ओर से जीव-जगत को दिया गया अनुपम उपहार है।
Tecomella (Rohera) has a special importance in the desert in maintaining biodiversity.
जैव विविधता को बनाए रखने में Tecomella (रोहेड़ा) का रेगिस्तान में खास अहमियत है। गंधहीन होने के बावजूद इसमें फूलों के आने पर मधुमक्खियां, तितलियां और असंख्य रसभक्षी कीट व तरह-तरह के पक्षी रस चूसने के लिए इसके चारों तरफ मंडराते रहते हैं। वहीं चारे के रूप में फूलों का सेवन बकरी भी बड़े चाव से करती है। गंधहीन होने के कारण रेगिस्तान में रहने वाले पूजा-पाठ में इसके फूलों का उपयोग नहीं करते हैं।
Tecomella (रोहेड़ा) की लकड़ी कठोर और काफी मजबूत होती है जिसका उपयोग दरवाजों, खिड़कियों, चारपाई के पायों, फर्नीचर एवं कृषि औजारों के लिए किया जाता है। इसकी लकड़ी पर नक्काशी का काम भी होता है। पुराने महलों, हवेलियों में रोहिड़े की लकड़ी की कलात्मक वस्तुएं देखने को मिलती है। इसीलिए इस वृक्ष को बोल-चाल की भाषा में रेगिस्तान का शीशम भी कहा जाता है। Tecomella (रोहेड़ा) औषधीय उपयोग में भी महत्वपूर्ण है।
रोहेड़ा का औषधीय उपयोग | Medicinal uses of Tecomella | Medicinal uses of Rohera
एक्जिमा तथा इसी प्रकार त्वचा के अन्य रोगों व फोड़े-फुन्सियों के नियंत्रण वाली दवाओं के निर्माण में इसका प्रमुखता से उपयोग किया जाता है। गर्मी तथा मूत्र संबंधी रोगों की दवाओं में भी Tecomella (रोहेड़ा) रामबाण साबित होता है। लीवर संबंधी रोगों में यह विशेष गुणाकारी है तथा लीव-52 नामक औषधि में इसका उपयोग किया जाता है। इसकी छाल भी औषधि निर्माण के उपयोग में आती है।
खतरे में है रेगिस्तान का रक्षक रोहिड़ा
Tecomella (रोहेड़ा) का वृक्ष और फूल जहां मनुष्य और पशु पक्षियों के लिए लाभकारी है वहीं दूसरी ओर भौगोलिक रूप से भी यह अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। यह रेगिस्तानी पौधा (Desert plant) है, इस कारण इसकी जड़ें गहराई के साथ-साथ जमीन के ऊपरी भागों में जाल बिछा कर भोजन पानी ग्रहण करती है। यह न केवल रेगिस्तान की मिट्टी को बांध कर रखती है बल्कि इसके प्रसार को भी रोकती है। लेकिन इंसानों द्वारा अपने फायदे के लिए रेगिस्तान के इस इकलौते पेड़ के साथ छेड़छाड़ से न केवल इसके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है बल्कि जैव विविधता पर भी नकारात्मक प्रभाव (Negative impact on biodiversity too) पड़ने लगा है।
ट्रेक्टर से खेती बनी रोहिड़ा की जान की दुश्मन
वृक्षों की कटाई एवं खेती के आधुनिकीकरण, ट्रैक्टर से खेती का बढ़ता चलन और सामुदायिक चारागाहों की राज व समाज द्वारा अनदेखी के चलते Tecomella (रोहेड़ा) वृक्ष की संख्या में धीरे-धीरे कमी होती जा रही है।
चारागाहों में पशुओं की खुली व बारहोमास चराई के कारण नए अंकुरित पौधों को पशु खा लेते हैं, वहीं ट्रेक्टर से खेती के कारण नए अंकुरिक पौधे जड़ से उखड़ जाते हैं। यही कारण है कि नव अंकुरित एवं युवा पौधों की संख्या बहुत कम देखने को मिलती है।
रोहिड़ा के बीज के बारे में जानें | Know about Rohida seeds in Hindi | Tecomella undulata Seeds, Roheda, Marwar Teak Seeds Hindi | Common Name: Roheda, Honey Tree, Desert Teak, Marwar Teak Regional Name (Indian Names)
रोहिड़ा के बीज सफेद झिल्ली जैसे पंख लिए होते हैं जो हवा के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपने वंश को फैलाने की अपार क्षमता रखते हैं लेकिन कुदरत के साथ मानवीय अलगाव इनको पनपने में बाधा बन गया है। जरूरत है इस वृक्ष के सुरक्षा व संरक्षण की और इसके वंशवृद्धि चक्र को बनाए रखने की ताकि न सिर्फ रेगिस्तान का प्राकृतिक संतुलन (Natural balance of desert) बना रहे बल्कि आने पीढ़ी भी इसका भरपूर लाभ उठा सके। जिन जिलों में इस वृक्ष की बहुलता दिखती है, वहां बड़ी संख्या में औरण, गौचर व अन्य किस्मों की शामलाती भूमियों में इस वृक्ष को लगाने का प्रयास करने की आवश्यकता है। इसके लिए केवल सरकार पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है बल्कि समाज को भी आगे बढ़कर अपना अमूल्य योगदान देने की जरूरत है।
- दिलीप बीदावत
(देशबन्धु में प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार)
Note - Tecomella undulata is a tree species, locally known as rohida found in Thar Desert regions of India and Pakistan. It is a medium-sized tree that produces quality timber and is the main source of timber amongst the indigenous tree species of desert regions of Shekhawati and Marwar in Rajasthan. Wikipedia