रोमिला थापर के नब्बे वें जन्मदिन की पूर्व सूचना पर
On the prior notice of Romila Thapar's 90th birthday
History’s muse
The Empress of Ancient Indian Studies
तीन महीने बाद, 30 नवंबर के दिन भारत की अद्वितीय इतिहासकार रोमिला थापर नब्बे की उम्र में प्रवेश करेगी। उनके नब्बेवें जन्मदिन की अगुवाई में गोपालकृष्ण गांधी का आज के ‘टेलिग्राफ’ का लेख ‘प्राचीन भारतीय अध्ययन की साम्राज्ञी : इतिहास की वाग्देवी’ हम जैसे किसी भी रोमिला थापर के प्रशंसक के लिए एक दिलचस्प और आह्लादकारी अनुभव है।
इस लेख के अंतिम अंश में किसी भी महफ़िल में रोमिला जी की अनुपेक्षणीय भास्वर उपस्थिति के ब्यौरे के अलावा उनकी तीव्र पसंद-नापसंद का रोचक किस्सागोई की तरह का प्रसंग उसी तरह इस लेख की मूल भावना के साथ संगति में एक गौण प्रसंग है जैसे रोमिला जी के इतिहास लेखन में अशोक के जीवन के विस्तृत विवरण उसके काल के सामाजिक जीवन के विवरणों के परिप्रेक्ष्य में गौण हो जाते हैं। इतिहास लेखन बिना किसी पूर्वाग्रह के यथासंभव ठोक-बजा कर चुने गए प्रामाणिक तथ्यों के ब्यौरों के साथ ही तभी मानीखेज होता है जब उन तथ्यों को व्यापक सामाजिक, स्वयं के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का संसर्ग मिलता है, अर्थात् वे युगीन सत्य के संकेतों को धारण करते हैं।
रोमिला जी का एक महत्वपूर्ण काम ‘भारत का प्रारंभिक इतिहास’ के अलावा ‘अशोक और मौर्य साम्राज्य का पतन’ विषय पर रहा है। अशोक के बारे में भारत में सन् 1837 से चर्चा शुरू हो गई थी जब जेम्स प्रिन्सेप ने उनके शिलालेखों के आधार पर कई लेख लिखे थे। विन्सेंट स्मिथ ने 1901 में अशोक पर पहली पुस्तक प्रकाशित की औपनिवेशिक 1925 में अशोक के शासन के बारे में डी आर भंडारकर के कर्माइकल भाषणों के प्रकाशन के साथ ही भारतीय इतिहासकारों का ध्यान भी अशोक और मौर्यों की ओर गया और क्रमश: मौर्य साम्राज्य से जुड़े नाना विषय आगे की चर्चा के विषय बनते चले गए। इसी क्रम में अशोक के साथ बौद्ध धर्म के संबंध का पहलू भी उभर कर सामने आया।
अशोक संबंधी एक लंबी इतिहास चर्चा की पृष्ठभूमि में रोमिला थापर का 1960 में प्रकाशित काम इसलिए बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि उन्होंने इस दौरान इकट्ठा हुई इस विषय की सामग्री की पुनर्व्याख्या करके उस पूरी चर्चा को प्राचीन भारत की खोज के आधुनिक प्रयत्नों के लिए समीचीन बनाया।
उन्होंने इसे ख़ास तौर पर चिन्हित किया कि अशोक ऐसे पहले भारतीय राजा थे जिन्होंने देहात के लोगों के महत्व को समझा था, उनके अलगाव की सच्चाई को पकड़ा था और उनसे गहरे संपर्क स्थापित किए थे। रोमिला जी कहती है कि अशोक ने यदि अशोक ने देहात के लोगों को अछूता रख दिया होता तो उनका धम्म कभी भी सफल नहीं हो पाता।
“अपने (शासन और धर्म), दोनों लक्ष्यों को पाने के लिए व्यापक यात्राओं और जनता के बीच लगातार आने-जाने से बेहतर कोई उपाय नहीं होता है। “
यहाँ हमारे कहने का सिर्फ़ इतना सा तात्पर्य है कि रोमिला जी के अध्यवसाय से प्राप्त उनकी गहरी, सधी हुई इतिहास दृष्टि ने उन्हें वह स्पृहणीय व्यक्तित्व प्रदान किया है जो किसी भी महफ़िल में हमेशा अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। दूसरी सभी पदवियाँ और आभूषण इसके सामने कोई अर्थ नहीं रखते हैं।
तथापि, हमें गोपालकृष्ण गांधी के प्रति आभार व्यक्त करने की ज़रूरत महसूस हो रही है क्योंकि उन्होंने इस लेख के ज़रिए रोमिला जी के नब्बे साल में प्रवेश के प्रति लोगों को पहले से सूचित करके इस अवसर पर प्राचीन भारत के बारे में उनके कामों को पुनर्संदर्भित करने और हमारी इतिहास दृष्टि के पुनर्नवीकरण का अवसर मिलेगा।
-अरुण माहेश्वरी
हम यहाँ गोपालकृष्ण गांधी के इस लेख को मित्रों से साझा कर रहे हैं :
https://www.telegraphindia.com/opinion/the-empress-of-ancient-indian-studies/cid/1822892
-अरुण माहेश्वरी /)