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समाजवाद की स्थापना के लिये शहीद हुई रोजा लक्जमबर्ग

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hastakshep
05 Mar 2021
समाजवाद की स्थापना के लिये शहीद हुई रोजा लक्जमबर्ग

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रोजा लक्जमबर्ग की डेढ़ सौंवी जयंती मनाई गई Rosa Luxemburg 150th birth anniversary

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(अभियान सांस्कृतिक मंच, पटना का आयोजन)

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पटना, 05 मार्च। प्रख्यात सर्वहारा क्रांतिकारी रोजा लक्जमबर्ग की 150 वीं जयंती वर्षगांठ के मौके पर अभियान सांस्कृतिक मंच, पटना द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

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रोजा लक्जमबर्ग का व्यत्तित्व व कृतित्व

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जमाल रोड स्थित ' सीटू' कार्यालय में आयोजित इस संगोष्ठी में रोजा लक्जमबर्ग के व्यत्तित्व व कृतित्व { Rosa Luxemburg (रोज़ा लुक्सेम्बुर्ग) } पर प्रकाश डाला गया। "रोजा लक्जमबर्ग : उनका समय और समाजवाद के लिए उनका संघर्ष" विषय पर आयोजित संगोष्ठी में शहर के बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता आदि उपस्थित हुए।

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चर्चित लेखक नरेंद्र कुमार ने रोजा लक्जमबर्ग का महत्व को रेखांकित करते हुए कहा " वर्तमान किसान आंदोलन के संदर्भ में रोजा लक्जमबर्ग के लेखन को पढ़ने को जरूरत है। रोजा ने जितना मास स्ट्राइक के अपनी अवधारणा में पार्टी बनाने से अधिक आंदोलन पर अधिक जोर दिया। इस कारण वस्तुगत परिस्थिति तो तैयार थी लेकिन सब्जेक्टिव ताकतें कमजोर थी। जर्मनी में पार्टी मज़दूर वर्ग में तो थी लेकिन किसानों में कम थी। लेनिन की पार्टी का सुसंगत संगठन था। आज जब हम वित्त पूंजी के खिलाफ संघर्ष करने का अभियान छेड़ते हैं तब एक क्रांतिकारी पार्टी का क्या महत्व है। किसान एक टुटपुंजिया वर्ग होते हुए भी सहयोगी का महत्व दिया गया। वैचारिक स्तर पर जर्मन कम्युनिस्ट पार्टी में अवसरवाद के खिलाफ वैसा संघर्ष नहीं चला जैसा रूस में नहीं हुआ। "

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शिक्षाविद अक्षय कुमार ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा "रोजा लक्जमबर्ग ऐतिहासिक प्रक्रिया समाजवाद के स्थापना का संघर्ष है। रोजा व लेनिन के बीच का जो संवाद है उसे समझने जी जरूरत है। वैचारिक एकता से अलग होने की जरूरत है बाजार के संचयन की जो प्रक्रिया है उसे समझने की जरूरत है। रोजा पूंजीवाद व समाजवाद के बीच के अंतर को समझने के दौरान वर्गीय मुद्दों के गायब होने का खतरा है। बिहार में कैपीटल एक्यूमिलेशन के दौर में लिटरेसी कार्यक्रम चल रहा था। उन्होंने समाजवादी लोकतंत्र की अबधारणा को सामने रखा। रोजा कहती हैं अन्यमनस्क सर्वहारा का उपयोग देशभक्ति में किया जा सकता है।"

'कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया' के पार्थ सरकार ने कहा

"रोजा लक्जमबर्ग में रूसी क्रांति की पक्षधर रहा लेकिन बाद में डेमोक्रेटिक सोशलिज्म के लिए इस्तेमाल किया गया ठीक उसी तरह जैसे ग्राम्शी का इस्तेमाल यूरो कम्युनिज्म के लिए। रोजा ने अपने जीवन में बहुत शिक्षा दी। उसकी शहादत और सोशल डेमोक्रेसी द्वारा धोखाधड़ी की गई। फिर नाजीवाद का उदय ये सब हमारे लिए सीखने की बात है। रोजा को इस कारण मारा गया कि क्रांति आगे न बढ़े। रोजा रूसी क्रांति से हमेशा सरोकार रखती रही। मास स्टाइक में उनकी तीक्षण बुद्धि का पता चलता है। हड़ताल सर्वहारा का हथियार है। रोजा ने अर्थवाद की बहुत मुखालफत की थी। रोजा ने बताया कि बहुमत के सवाल क्रांतिकारी रणनीति से हल किया जा सकता है। रूसी क्रांति पर बार बार पढ़ने की जरूरत है। रोजा की हत्या प्रतिक्रान्ति में मारा जाता है और फासीवाद का रास्ता तैयार होता है।"

केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान के महासचिव नवीनचंद्र ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा

"रोजा ने कहा कि मार्क्स का पहला खण्ड अमूर्त नहीं है ठोस है। एक्यूमिलेशन ऑफ कैपीटल में वो महत्वपूर्ण बिंदु उठाती रहती है। रोजा कंटेस्ट करती है जब समझ जाती है तक स्वीकार भी करती है। पहले वह मेंशेविकों के नजदीक थी। संगठन के सवालों पर व हमेशा चिंतित रहती है। रोजा को बहुत क्रिटिसाइज भी किया गया। लेनिन कहा करते थे कि हमसे जो मतभेद रखता है वो सब बात गलत ही नहीं कह रहा है। सोशलिस्ट विजन ही समाप्त न हो जाये। हर आंदोलन विद्रोह बनकर न रह जाये।"

प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर ने अपने संबोधन में कहा "रोजा की चर्चित कृति 'सुधार व क्रांति' जिसमें उन्होंने कहा कि सिद्धांत के प्रति नापसंदगी अवसरवादी लोगों की खास पहचान है। रोजा ने कहा कि लिबरल डेमोक्रेसी और कम्युनिज्म के प्रति फर्क दरअसल समाज के लक्ष्य का है। रोजा कहा करती थी कि पूंजीवाद श्रम दासता पर टिकी है यह कानून द्वारा नहीं लाया गया अतः उसे गैरसंसदीय रास्ते से इंकलाब से ही ख़त्म किया जा सकता है। रूसी क्रांति के बारे में उनके विचार अंत तक वही नहीं थे। उसमें बदलाव आये। रोजा अन्तराष्ट्रीयतावादी थीं और कहा करती थी कि जहां भी बादल और चिड़िया और लोगों के आंसू हों वहां बस सकते हैं।"

प्रख्यात कवि आलोकधन्वा ने मीरा, कबीर आदि कवियों को याद करते हुए कहा

"मार्क्स कहा करते थे कि विकास के चक्के को पीछे नहीं ले जाया जा सकता। कोई चीज अपने आप में निरपेक्ष नहीं है। पुल पार करना नदी पार करना नहीं है। प्रेम की यदि मार नहीं पड़ी है तो समझ नहीं सकते। जो संवेदनशील होगा और सब कुछ न्योछावर करने को तैयार रहे। सत्य की बहुत लोगों ने सेवा की है अतः ये सोचना गलत है कि सच को हमीं जानते हैं। इतने लोगों ने सँवारा है दुनिया को कि ये ऐसी शै है जिसे बिगाड़े नहीं बिगड़ती।"

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्सवादी) के केंद्रीय समिति के सदस्य अरुण मिश्रा ने कहा

"नवउदारवाद के खतरे के खिलाफ दूसरी दुनिया सम्भव है ये बात अमूर्त लगती थी लेकिन अब यह नजदीक की बात लगती है। अब तो पिकेटी जैसे लोगों ने भी उनके बने रहने पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। अब कई तरह के आंदोलन है लेकिन क्या ये आंदोलन क्रांति के तरफ जाएंगे या नहीं ? जो वैचारिक बहस है वह होना जरूरी है। यदि केंद्रीय कमिटी व पौलित ब्यूरो पर ही भरोसा करें या हमलोग भी उन सवालों को उठाते है । सब्जेक्टिव फैक्टर के बगैर आंदोलन आगे नहीं जा सकता। हमें बहस से भागना नहीं चाहते।"

संगोष्ठी में मज़दूर पत्रिका के सतीश कुमार, संजय श्याम, जफर, गोपाल शर्मा, पीपुल्स लिटरेचर सेंटर के किशोर, इंद्रजीत, अनिल अंशुमन , गौतम गुलाल, कमल किशोर, अमरनाथ, तारकेश्वर ओझा आदि।

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