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कामसूत्र में कामुकता के नि‍यमों का खेल

कामसूत्र में कामुकता के नि‍यमों का खेल

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The game of rules of sexuality in the Kamasutra in Hindi

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कामसूत्र के केंद्र में क्या है? (What is at the center of the Kamasutra?)

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आनंद में जब अविश्वास पैदा हो जाता है तो उसका सीधा असर शरीर और आत्मा पर पड़ता है। साथ ही वैवाहिक जीवन में कामुक सुख और वैवाहिक दायित्वों पर भी असर पड़ता है। कामसूत्र में कामुकता संबंधी चिन्ताओं और समस्याओं (Sexuality concerns and problems in the Kamasutra) पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना कामुक आनंद (Erotic pleasure in the Kamasutra) प्राप्त करने पर।

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कामुक आनंद से संबंधित जो तत्व और संबंध हैं, वे ही कामसूत्र के केन्द्र में हैं। इसमें कामुकता के पीछे निहित मंशा और कामुक रूपों के रूपायन पर मुख्य रूप से ध्यान दिया गया है। इसमें कामुकता के कुछ रूपों की भी चर्चा है जो सामाजिक तौर पर अस्वीकृत हैं। जिनकी राजनीतिक व्याख्या करना पसंद करें।

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कामसूत्र में मुख्य जोर इस बात पर है कि वैवाहिक जीवन कैसे बचाएं, परिवार को कैसे बचाएं। साथ ही अनेक ऐसे स्थल भी हैं जिनमें अवैध संबंधों की निंदा की गई है।

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कामसूत्र में कामुकता के मानकों के पालन पर जोर (Emphasis on observance of norms of sexuality in Kamasutra)

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कामसूत्र में कामुक आनंद और स्वाधीनता को संस्था और नियमों के तहत रखकर देखा गया है। संस्था और नियमरहित कामुकता की तीखी आलोचना की गई है। इसके कारण कामसूत्र के कामुकता विमर्श का आने वाले समाज और समकालीन समाज के नैतिक मानकों पर गहरा असर पड़ा। कामुक इच्छाओं को अभिव्यक्ति देते समय उसे नैतिक मानदण्डों से जोड़ा गया, प्रत्यक्षत: सामाजिक संस्थाओं के हस्तक्षेप से जोड़ा गया। कामुकता के मानकों के उल्लंघन का अर्थ था सामाजिक हस्तक्षेप को आमंत्रित करना। इसका परिणाम यह निकला कि जो लोग संस्था और नियमों के दायरे के बाहर जाकर अपनी कामुक इच्छाओं को अभिव्यक्त करना चाहते थे उन्हें कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता था। अन्यथा सभी से यह उम्मीद की गई कि वे कामुकता के मानकों का पालन करेंगे।

एक अर्से के बाद विवाह के आठ रूपों में पहले चार रूपों का बाद के चार रूपों के साथ सीधा अन्तर्विरोध पैदा हो गया। पहले चार विवाह प्रकार वैध मान लिए गए और बाद के चार को समाज ने अपनी स्वीकृति नहीं दी। कामसूत्र ने कामुकता को निजता, आत्मसम्मान और सामाजिक हैसियत के साथ जोड़ दिया।

कामसूत्र के आने पहले व्यक्ति का कामुक संबंध सिर्फ एक ही व्यक्ति तक ही सीमित नहीं था, सिर्फ विवाहिता के साथ ही सीमित नहीं था। उस समय व्यक्ति अपनी निजता के प्रति ज्यादा सचेत था। निजी अनुभूति,निजी भूमिकाओं और निजी अस्तित्व के सवालों के प्रति ज्यादा सजग था। फलत: साधारण लोगों का फोकस अपने निजी जीवन पर ज्यादा था, इससे तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक सत्ता कमजोर हो रही थी। नैतिकता का आधार व्यक्तिगत था। व्यक्ति की स्वयं के प्रति जबावदेही थी। वह अपनी निजी जिन्दगी के परे जाकर देखता ही नहीं था। यह आदिम व्यक्तिवाद का एक रूप था।

व्यक्तिवाद के बारे में मि‍शेल फूको क्या कहता है? What does Foucault say about individualism?

प्रसि‍द्ध फ्रांसीसी वि‍द्वान मि‍शेल फूको के अनुसार आदिम व्यक्तिवाद (Primitive individualism according to Michel Foucault) व्यक्ति के व्यक्तिगत व्यवहार, निजी जिन्दगी तक सीमित था। वह अन्य से कटी हुई जिन्दगी जीता था। वह ऐसे यथार्थ में कैद था जो परंपरागत बंधनों से मुक्त था। उसके लिए व्यक्तिगत मूल्य परम सत्य थे। उसके निजी जीवन का सकारात्मक मूल्यांकन किया गया। उसके पारिवारिक संबंधों को महत्ता दी गयी। व्यक्ति की निजी सघन अनुभूतियों को महत्ता दी गयी। जिसके कारण व्यक्ति की भूमिका, व्यक्ति के ज्ञान, व्यक्ति के रूपांतरण, दुरूस्तीकरण, पवित्रता और मुक्ति को महत्व दिया गया। ये सारे तत्व अन्तस्संबंधित हैं। यही वजह है कि कालान्तर में व्यक्तिवाद ने निजी जीवन के मूल्यों को सघन रूप में अभिव्यक्ति दी। यह जरूरी नहीं कि सभी सामाजिक समूहों में व्यक्तिवाद की सक्रिय भूमिका हो। विभिन्न सामाजिक समूहों में व्यक्तिवाद अलग-अलग रूपों में व्यक्त हुआ। मसलन् अभिजात्यवर्ग में व्यक्तिगत मूल्यों और निजता के प्रति आक्रामक आकर्षण होता है। फलत: वह अपने से इतर समूहों को आकर्षित नहीं कर पाता।

अनेक ऐसे सामाजिक समूह हैं जिनके लिए निजी जिन्दगी बेहद कीमती है। वे उसको सजग तरीकों से संरक्षित और संवर्धित करने का प्रयास करते हैं। किन्तु ऐसे समाजों में व्यक्तिवाद बेहद कमजोर होता है। भारत के समाज का बहुत बड़ा हिस्सा लंबे समय से ऐसा ही रहा है। यहां आत्मविकास और निज की देखभाल पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। जो लोग आत्मविकास पर जोर देते थे वे निजी देखभाल पर ध्यान नहीं देते थे। जो लोग निजी देखभाल पर ध्यान देते थे उनके यहां आत्मविकास की धारणा का विकास ही नहीं हुआ।

समग्रता में देखें तो आत्मविकास और निजी देखभाल को हमारे समाज ने लंबे समय से उपेक्षित रखा ।

क्या फूको ने कामसूत्र देखा था?

सेक्स या काम स्वाभाविक होता है

स्वाभाविकता के आधार पर ही लिंगभेद होता है। फूको ने लिखा आधुनिक कामुकता ने हमें यह बताया कि ''सेक्स व्यक्ति सत्य है।'' इस तथ्य की पहचान कामसूत्र में सबसे पहले हुई। यह बात दीगर है कि फूको ने कामसूत्र देखा नहीं था। सेक्स सिर्फ प्रजनन के अंग तक सीमित नहीं है अपितु शारीरिक संरचना या शारीरिक अंगों तक उसकी गहरी जड़ें हैं। कामसूत्र में लिंग को काम (सेक्स) और वर्ण के साथ भी जोड़ा गया। एक ही वर्ण की लड़की और लड़के के विवाह को विवाह की पहली चार पद्धतियों में सम्मानजनक स्थान दिया गया । जबकि बाकी चार विवाह पद्धतियों में वर्ण को सेक्स के साथ जोड़कर पेश नहीं किया गया। स्त्री पुरूष भेद और साम्य का आधार सेक्स को बनाया गया। कामुकता को सेक्स और सेक्स को स्त्री से जोड़ा गया।

कामुकता, काम और स्त्री ये तीनों अन्तर्गृथित हैं।

इसका अर्थ यह भी है कि कामुकता, सेक्स और सामाजिक व्यवस्था के अन्तस्सबंध को भी हमें सामने रखना होगा। तमाम आधुनिक समाजशास्त्री यह मानते हैं कि कामुकता और कामुक भिन्नता ये दोनों आधुनिक फिनोमिना हैं। किन्तु भारतीय संदर्भ में ये आधुनिक नहीं प्राचीन संवृत्ति हैं। इनका जिक्र कामसूत्र में है। सुश्रुत की 'चरक संहिता' में है। कामुकता और शरीर चर्चा और प्रसाधन चर्चा पर मध्यकाल में जितना समृद्ध विमर्श भारत में तैयार हुआ है उतना पश्चिमी चिन्तन में नहीं हुआ।

कामसूत्र में विवाह हेतु ऐसी लड़की के चयन को श्रेष्ठ माना गया है जो अभिजात्य गुणों से सम्पन्न हो। जिसके माता-पिता हों, प्रतिष्ठित खानदान हो, सदाचारी मित्रगण जिसे देखकर प्रशंसा करें। जिसका सुंदर नाम हो। इसके अलावा अवगुणी लड़की के बारे में भी लिखा है। यह भी लिखा कि जिस विवाह से पति-पत्नी को समान आनन्द की अनुभूति हो। दोनों एक-दूसरे के पूरक और शोभावर्धक हों। पति अपनी पत्नी से तब ही संभोग का अधिकारी बताया गया है जब वह अपनी पत्नी का दिल जीत ले। उसके साथ जबर्दस्ती न करे। सुहागरात की पहली तीन रात को पत्नी को कामकला की शिक्षा दे। ये सारे उपाय ब्राह्म, अग्नि, दैव और प्राजापत्य विवाह पद्धतियों के अनुसार शादी करने वालों के लिए सुझाए गए हैं।

शादी का फैसला करते समय देश, पात्र, वर्ण और हैसियत को महत्व दिया गया है। जो लोग इन तत्वों का ख्याल करके शादी करते हैं उनका वैवाहिक जीवन सफल होता है।

कामसूत्रकार ने असल में शादी के सवाल को परिवार और वर्ण के मातहत कर दिया है। परिवार और वर्ण के मातहत रखने का एक ही लक्ष्य है उपयुक्त कन्या की प्राप्ति। इसका कोई अन्य अर्थ नहीं है। शादी के बाद पत्नी अपनी खुशी व्यक्त करने के लिए क्या-क्या करे। पति क्या क्या करे। इन बातों की ओर ध्यान दिया गया है। इसमें बुनियादी तौर पर पति और पत्नी दोनों को अपनी अवस्था पर मास्टरी हासिल करने के सुझाव दिए गए हैं। अच्छी पत्नी और अच्छे पति के गुण (Qualities of a good wife and good husband in Kamasutra) हासिल करने पर जोर है। जिससे वे सम्मानजनक जीवन यापन कर सकें।

कामसूत्र में शादी का अर्थ (Meaning of marriage in Kamasutra)

शादी के सवाल पर निरंतर तरह-तरह से विमर्श चलता रहा है ,इसका अर्थ यह है कि शादी के बाद हमेशा पति-पत्नी एक नए जीवन की शुरूआत करते हैं और नए जीवन की प्रक्रिया में जो समस्याएं आती हैं उनके समाधान खोजते जाते हैं। कामसूत्र में शादी का जिस तरह वर्णन मिलता है उसके अनुसार शादी एक कला है। जिसमें मानवीय रिश्तों में महारत हासिल करनी पड़ती है। शादी का आनंद के साथ संबंध है। आनंद हासिल करने के लिए जरूरी है कि स्त्री-पुरूष अपने दायित्व का निर्वाह करें। स्वयं के ऊपर प्रभुत्व स्थापित करें। एक-दूसरे के प्रति सम्मान व्यक्त करें। प्यार व्यक्त करें। दोनों के बीच बेहतर शारीरिक संबंध हो। सेक्स करते हुए दोनों आनंदित हों। एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और संतुलित समझ हो।

साथ रहने की कला का संबंध संवाद की कला से है। संवाद जितना बेहतर होगा, संबंध भी उतना ही अच्छा होगा। इस प्रसंग में सबसे चौंकाने वाली बात यह है शादी के बाद पत्नी के लिए बहुत सीमित सामाजिक भूमिका सौंपी गई है। स्त्री का कार्य है बच्चे पैदा करना, क्योंकि शादी का प्रधान लक्ष्य था संतानोत्पत्ति। एक साथ रहना, घर संभालना, पति और उसके परिवार की सेवा करना। पति-पत्नी के बीच यदि शारीरिक संबंध न रहे, या वे एक-दूसरे के साथ सेक्स न करें तो यह संबंध टूट जाता था। इसके कारण ही दूसरी पत्नी की परंपरा शुरू हुई, अथवा अन्य औरतों की ओर पुरूष मुखातिब हुआ। इसका अर्थ यह है कि पति-पत्नी के बीच का रिश्ता बहुत ही सीमित आधार पर टिका था। इसका अर्थ यह भी है कि पति को शारीरिक आनंद सिर्फ अपनी पत्नी से ही प्राप्त करना होता था। पत्नी के अलावा किसी और से शारीरिक आनंद प्राप्त करने को अवैध और असहनीय माना गया। परस्त्रीगमन या परपुरूषगमन को अवैध माना गया। परस्त्री या परपुरूषगमन का राजा और उससे जुड़े तंत्र में वैध रिवाज था।

   ( लेखक- जगदीश्‍वर चतुर्वेदी, सुधासिंह )

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