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क्या यूक्रेन में वियतनाम युद्ध जैसे हालात बनते जा रहे हैं?

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रूस-यूक्रेन संकट को समझिए : Russia-Ukraine Conflict: रूस-यूक्रेन विवाद की क्या है असली वजह

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Russia reiterates mistake of sending Soviet troops to Afghanistan

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जैसी आशंका थी, युद्ध जल्दी खत्म नहीं हो रहा। रूस ने अफगानिस्तान में सोवियत सेना भेजने की गलती दोहराई है। यूक्रेन हमेशा आजादी की लड़ाई लड़ता रहा है। सोवियत संघ में वह था, लेकिन रूसी वर्चस्व को उसने जार के साम्राज्य में भी बर्दाश्त नहीं किया। बहरहाल रूस एक patrotic महायुद्ध में फंस गया है, नाटो, अमेरिका और यूरोपीय समुदाय के मंसूबे को समझते हुए भी विश्व जनमत रूस के विरुद्ध मजबूत होता जा रहा है। इसके साथ ही रूसी आक्रमण तेज होता जा रहा है।

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रूस पर प्रतिबंधों का असर क्यों नहीं हो रहा है ?

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प्रतिबंधों का रूस पर खास असर इसलिए नहीं हो रहा, क्योंकि तेल और गैस का कारोबार प्रतिबंध से बाहर है। लेकिन गुरिल्ला युद्ध की वजह से यूक्रेन में वियतनाम युद्ध के हालात बनते जा रहे हैं। अमेरिका और पूरा यूरोप उसके साथ है, जो रूस के खिलाफ यूक्रेन को मोहरा बनाकर युद्ध लड़ रहे हैं। प्रतिबंधों में भी अमेरिका और पश्चिमी देश अपने हित बचा रहे हैं और में चैन की कतई नहीं सोच रहे हैं। यह पूंजीवादी हितों के लिए साम्राज्यवादी युद्ध है।

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क्या भारत को अपने हित देखने चाहिए?

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अमेरिका और यूरोप पूंजीवादी हैं तो रूस और चीन भी अब समाजवादी नहीं हैं। ये सभी अपने हित देख रहे हैं तो क्या भारत को अपने हित नहीं देखने चाहिए? आशंका इस छायायुद्ध के विश्वयुद्ध और परमाणु युद्ध में बदलने की गहराती जा रही है। दोनों पक्ष इस युद्ध में भारत को घसीटने की कोशिश कर रहे हैं। क्वाड की बैठक में भारत के प्रधानमंत्री को अमेरिकी दवाब का अहसास हो गया होगा। रूस को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से निकालकर भारत को उसका स्थाई सदस्य बनाने का प्रस्ताव शक्ति संतुलन पश्चिमी देशों के पक्ष में करने का प्रयास है।

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क्या विश्वयुद्ध की स्थिति में चीन और रूस के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में शामिल होना राष्ट्रहित में होगा? भारी राजनयिक चुनौती है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अमेरिकी ने अमेरिकी कांग्रेस से राष्ट्र को संबोधित करते हुए नीतिगत फैसला सुना चुके हैं। जबकि हमारे यहां संसद की भूमिका और लोकतांत्रिक प्रक्रिया खत्म ही हो चली है। आगे का समय कोरोना संकट से बड़ा संकट का है।

राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य और राजनयिक चुनौतियां बेहद कठिन और जटिल है। क्या हमने इस मुद्दे पर राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय सहमति सुनिश्चित करने के लिए कोई पहल किसी भी स्तर पर की है?

राजनीति के अलावा इस देश में नागरिकों की कोई भूमिका है या नहीं?

यूक्रेन से बच्चों को निकलने में जो स्थिति बनी, सबके सामने है, समझ लीजिए कि युद्ध की आग समूचे यूरोप और अमेरिका, चीन, रूस और आस्ट्रेलिया तक पहुंच गई तो दुनिया भर में फंसे भारतीयों को निकलने के लिए हम क्या कुछ कर सकेंगे। इस युद्ध के भविष्य को हम तय नहीं कर रहे। लेकिन युद्ध के नतीजों से हम कैसे देश और देशवासियों को बचा सकते हैं, इस पर राजनीति से ऊपर उठकर संवाद बेहद जरूरी है।

पलाश विश्वास

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