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सचिन पायलट (Sachin Pilot) को अंतत: उसके कल्पना लोक से निकाल कर ज़मीन पर पटक दिया गया है। उन्हें सरकार और पार्टी के सभी पदों से हटा देना गहलोत सरकार के हित में एक सही कदम है।
राजनीतिक संगठनों की क्रियाशीलता की जरा भी जानकारी रखने वाला व्यक्ति समझ सकता है कि किसी भी शासक दल के मुख्यमंत्री और पार्टी के अध्यक्ष के बीच शत्रुतापूर्ण संबंध सरकार को बिल्कुल पंगु बनाने के लिये काफ़ी है। सरकार के बहुत सारे काम ऐसे होते हैं जिनमें पार्टी की भूमिका सबसे प्रमुख होती है। अनेक प्रकार की राजनीतिक नियुक्तियाँ भी इस वजह से रुक सकती है।
जिस समय गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया, उसी समय सरकार पर उनकी पूरी कमान को क़ायम रखने के लिये ज़रूरी था कि पार्टी पर भी किसी न किसी प्रकार से उनका ही नियंत्रण होता। यह सूत्र पार्टियों की सामान्य गतिविधियों पर भी लागू होता है। महासचिव या अध्यक्ष कोई एक व्यक्ति होगा और पोलिट ब्यूरो या कार्यसमिति का बहुमत उसके प्रति शत्रुतापूर्ण होगा, यह चल नहीं सकता है। पार्टी को अंदर से पंगु बनाने का यह एक शर्तिया फ़ार्मूला है।
आदमी तभी पूरी तरह से निर्बाध रूप में काम कर सकता है जब उसके निजी अहम् और उसके प्रतीकात्मक जगत, अर्थात् चित्त के बीच दरार न हो। आदमी का अहम् उसकी अपनी एक काल्पनिक पहचान होती है, पर उसकी सामाजिक सत्ता उसके प्रतीकात्मक जगत से जुड़ी होती है। इन दोनों के बीच द्वंद्व आदमी को दुविधाग्रस्त बनाता है।
-अरुण माहेश्वरी