कर्मचारी संघ महिला समाख्या ने सीएम को लिखा पत्र
महिला सुरक्षा के लिए तत्काल चलाए महिला समाख्या व दें बकाया वेतन
लखनऊ 12 अक्टूबर 2020. उत्तर प्रदेश प्रदेश में महिला और बालिकाओं की सुरक्षा (Safety of women and girls in Uttar Pradesh) के लिए महिला समाख्या जैसी महिलाओं को सुरक्षा, सम्मान व संरक्षण देने वाली संस्था को तत्काल प्रभाव से चलाने और इसमें कार्यरत कर्मचारियों के बाईस माह से बकाएं वेतन व अन्य देयताओं के भुगतान हेतु आज वर्कर्स फ्रंट से जुड़े कर्मचारी संघ महिला समाख्या की प्रदेश अध्यक्ष प्रीति श्रीवास्तव ने मुख्यमंत्री को पत्र ईमेल द्वारा भेजा। पत्र की प्रतिलिपि अपर मुख्य सचिव, महिला एवं बाल कल्याण व निदेशक महिला कल्याण को भी आवश्यक कार्यवाही के लिए भेजी गयी है।
पत्र में कर्मचारी संघ की अध्यक्ष प्रीति ने कहा कि आज समाचार पत्रों से ज्ञात हुआ कि सरकार ने प्रदेश में महिला और बाल अपराध से पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाने के लिए माननीय उच्च न्यायालय से निर्देश देने की प्रार्थना की है। इससे पहले सीएम ने स्वयं ट्वीटर द्वारा प्रदेश में महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा के लिए नवरात्रि के अवसर पर प्रभावी विशेष अभियान चलाने का निर्देश दिया है।
Violence with women in Uttar Pradesh
पत्र में कहा गया कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं के साथ हिंसा राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बना हुआ है और इससे सरकार की छवि भी धूमिल हो रही है। हाल ही में घटित हाथरस परिघटना हो या बलरामपुर, बुलन्दशहर, हापुड़, लखीमपुर खीरी, भदोही, नोएडा में हुई महिलाओं पर हिंसा की घटनाएं ये आए दिन बढ़ रहीं हैं।
खुद एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश महिलाओं पर हो रही हिंसा में दूसरे नम्बर पर है। हालत इतनी बुरी है कि महिला और बालिकाओं के अपहरण की पूरे देश में घटी घटनाओं में आधी से ज्यादा घटनाएं अकेले उत्तर प्रदेश में हुई है। इस हिंसा के अन्य कारणों में एक बड़ा कारण यह है कि निर्भया कांड़ के बाद बनी जस्टिस जे. एस. वर्मा कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर महिलाओं, बालिकाओं और बच्चों पर हो रही यौनिक, सांस्कृतिक और सामाजिक हिंसा पर रोक के लिए जिन संस्थाओं को बनाया गया था, उन्हें प्रदेश में बर्बाद कर दिया गया है। जिसका जीवंत उदाहरण महिलाओं को बहुआयामी सुरक्षा, सम्मान और आत्मनिर्भर बनाने वाले कार्यक्रम महिला समाख्या को बंद करना है।
पत्र में महिला समाख्या के योगदान के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा गया कि 31 वर्षों से 19 जनपदों में चल रही जिस संस्था को हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने घरेलू हिंसा पर रोक के लिए महिला कल्याण में लिया था और जिसे अपने सौ दिन के काम में शीर्ष प्राथमिकता पर रखा था उसे आज बिना कोई कारण बताए गैरकानूनी ढ़ंग से बंद कर दिया। यहीं नहीं हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी पिछले बाइस महीनों से वेतन व अन्य देयताओं का भुगतान नहीं किया गया। पत्र में कहा गया कि ऐसी स्थिति में यदि सरकार महिला सुरक्षा व सम्मान के प्रति ईमानदार है तो उसे तत्काल महिला सुरक्षा की संस्थाओं को चालू करना चाहिए और उन्हें मजबूत करना चाहिए।
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