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Sahitya Akademi Sexual Harassment Case : Victim gets punishment for complaining!
पूरे देश में निर्भया कांड के गुनहगारों को जल्द फांसी दिए जाने और बेटियों की सुरक्षा को लेकर चर्चा के बीच एक चौंकाने वाली ख़बर सामने आई है। साहित्य अकादमी की जिस महिला अधिकारी ने सचिव के श्रीनिवासराव पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था उसे नौकरी से निकाल दिया गया है। देश की राजधानी में, सबसे प्रतिष्ठित संस्थाओं में से एक साहित्य अकादमी ने अंधेरगर्दी की नई मिसाल पेश की है। जिस अधिकारी पर अपने अधीनस्थ महिला अधिकारी की प्रताड़ना और यौन उत्पीड़न का आरोप लगा वो तो बेखौफ होकर नौकरी कर रहा है लेकिन जिसने अपने ऊपर हो रहे जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाई उसे ही नौकरी से निकालने की सज़ा सुना दी गई।
18 फरवरी को द हिन्दू में और 21 फरवरी को द वॉयर में छपी ख़बर के मुताबिक, साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव पर यौन उत्पीड़न का आरोप (Sahitya Akademi secretary K Srinivasa Rao accused of sexual harassment) लगाने वाली 32 साल की महिला कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया गया है।
पीड़िता असम की रहनेवाली है। 14 फरवरी को पीड़िता को एक पत्र भेजकर अकादमी ने सूचना दी कि 15 फरवरी 2018 से शुरू हुआ प्रोबेशन पीरियड पूरा होने के बाद उन्हें आगे नियमित नहीं किया जा रहा है, क्योंकि संस्था उनकी सेवाओं से संतुष्ट नहीं है। जबकि दिल्ली हाईकोर्ट ने अकादमी को निर्देश दिया था कि अगले तीन महीने तक पीड़ित को 'पेड लीव' मिलना चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट द्वारा तय की गई मियाद से 1 महीने पहले ही अकादमी ने पीड़ित को नौकरी से हटाने का फैसला सुना दिया है। साहित्य अकादमी में एक महिला अधिकारी को जिन परिस्थितियों में बर्खास्त किया गया है, वह बेहद शर्मनाक है। महिला कर्मचारी ने साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवास राव पर यौन प्रताड़ना और नस्लीय टिप्पणियां करने का आरोप लगाया था। जिनके अंदर महिला अधिकारी उप सचिव के पद पर काम करती थीं।
इस मुद्दे पर मैंने पहले भी हस्तक्षेप डॉट कॉम पर एक स्टोरी लिखी थी। ये मामला देश की सबसे प्रतिष्ठित संस्थाओं में से एक साहित्य अकादमी में हुए यौन शोषण का है।
दिल्ली पुलिस ने साहित्य अकादमी के सचिव श्रीनिवासराव के खिलाफ 7 नवंबर को ही तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया था। लेकिन इस मामले में अब तक कार्रवाई के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ।
पुलिस एफआईआर में लिखा है कि, साहित्य अकादमी में सचिव के श्रीनिवासराव, संस्थान में उप सचिव के स्तर पर काम कर रही अंग्रेजी संपादक पर ज्वाइनिंग के बाद से ही यौन संबंध बनाने के लिए दबाव डाल रहे थे। FIR के मुताबिक 7 नवंबर को जब पीड़ित श्रीनिवासराव के कमरे में पहुंची, तो उन्होंने आगे बढ़कर उसका हाथ छू लिया और साफ शब्दों में कहा... 'कि अब तक तुम्हें समझ जाना चाहिए था, अगर तुम मुझे बॉडिली सेटिस्फेक्शन देती हो तो मैं तुम्हारी नौकरी पक्की कर दूंगा।' इस पर पीड़ित रोते हुए सचिव के कमरे से बाहर निकली और पुलिस हेल्पलाइन को फोन किया। FIR में ये भी लिखा गया है कि हेल्पलाइन को फोन करते वक्त पीड़ित लड़की रो रही थी।
द वॉयर में प्रकाशित रिपोर्ट में विस्तार से लिखा गया है कि साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने कैसे अलग-अलग तरीके से पीड़ित को अपनी यौन कुंठा का शिकार बनाने की कोशिश की?
रिपोर्ट से पता चलता है कि अपने पद का दुरुपयोग कर किस तरह सचिव ने पीड़ित को प्रताड़ित किया।? पीड़ित ने पहले अकादमी की कमेटी के सामने ही अपनी बात रखी लेकिन जब इंसाफ नहीं मिला तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट में मामला होने के बावजूद साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने जिस तरह पीड़ित को नौकरी से निकाल दिया है। उससे ऐसे मामलों में अब कोई भी पीड़ित पुलिस और कोर्ट में शिकायत करन से पहले सौ बार सोचेगी।
निर्भया मामले को लेकर दोषियों को फांसी देने की चर्चा देश भर में हो रही है, लेकिन ऐसे मामले भी कम खतरनाक नहीं है, जिसमें या तो पीड़ित शिकायत करने की हिम्मत नहीं कर पाती या शिकायत करने के बाद भी सिस्टम की सुस्ती की वजह से सालों तक न्याय नहीं मिल पाता है। निर्भया के गुनहगार जब घर से निकले होंगे तो ये सोचकर नहीं निकले होंगे कि उसे बलात्कार की घटना को अंजाम देना है। लेकिन उनकी परवरिश और सामाजिक परिवेश ने उन्हें स्त्रियों को लेकर इतना कुंठित कर दिया है कि वो इस तरह की घटना को अंज़ाम देने से बाज नहीं आते। लेकिन दूसरी तरफ हम अगर साहित्य अकादमी में हुए यौन उत्पीड़न के मामले को देखें तो यहां आरोपी ना केवल रसूखदार है बल्कि नियम-कानूनों को वो अच्छी तरह से जानता भी है।
ऐसे लोग जब घर से निकलते हैं तो ये सोचकर निकलते हैं कि उन्हें किस तरीके से अपने सहकर्मी या अधीनस्थ महिलाओं को अपनी बुरी नीयत का शिकार बनाना है। इस क्रम में कई बार प्रलोभन, कई बार जबरदस्ती तो कई बार धमकी भी दी जाती है। ज्यादातर मामले रसूख के इस्तेमाल से निपटा दिया जाता है, लेकिन अगर कुछ मामलों में पीड़ित हिम्मत कर पुलिस या कोर्ट पहुंच जाती है, तो वहां भी इंसाफ पाने के लिए पीड़ित को कई तरह की मुसीबत का सामना करना पड़ता है।
दिल्ली बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, लेखकों और पत्रकारों का शहर है।
कई लेखक-साहित्यकार हर साल अकादमी से उपकृत होते हैं और साल भर स्त्री सुरक्षा को लेकर लंबे-लंबे लेख लिखते हैं। लेकिन जब भी ऐसे मौकों पर किसी पीड़ित के पक्ष में कुछ लिखने या बोलने की जरूरत पड़ती है। वे चुप्पी की चादर ओढ़ लेते हैं। अभी भी ज्यादातर लोगों ने मौनव्रत ही ले रखा है, लेकिन विरोध के कुछ स्वर अब जरूर उठने लगे हैं।
राजेश कुमार
(लेखक टीवी पत्रकार हैं)