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बढ़ती जा रही है हलचल दल के दल दलों की दलदल

Poems of Nisha Nishant चलो फिर बादल बन  बूँद बनें , बरसें रिमझिम  ताल बनें , झील बनें , नदियाँ बनें, सागर बनें  यायावर हो, यहाँ-वहाँ  घूमें -फिरें चाहें जहाँ 

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hastakshep
07 Jun 2023
Poems of Nisha Nishant निशा निशान्त

बढ़ती जा रही है हलचल दल के दल दलों की दलदल

निशा निशान्त की कविताएं

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(1)

दुःख-दर्द अपने 

आप ही जीने हैं हमें

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आँसू अपने 

आप ही पीने हैं हमें 

धुन्ध या अँधेरे 

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गहन हों या 

ऊबड़-खाबड़,निर्जन

हरी-भरी पगडंडियाँ और 

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जल के स्रोत 

आप ही बनाने हैं हमें 

कब तक जिएँगे 

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दोष मढ़, संताप में 

इसके-उसके दिए विलाप में 

आप ही पथ अपने गढ़ने पड़ेंगे

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(2)

चलो फिर बादल बन 

बूँद बनें , बरसें रिमझिम 

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ताल बनें , झील बनें ,

नदियाँ बनें, सागर बनें 

यायावर हो, यहाँ-वहाँ 

घूमें -फिरें चाहें जहाँ 

बंजारे बनें, धरा की धारें बनें 

एक में अनेक हो, सारे बनें 

सूरज, चाँद, सितारे बनें

चलो फिर बादल बनें 

(3)

दल ही दल 

हर ओर शोर है चल-चल 

बढ़ती जा रही है हलचल 

दल के दल दलों की दलदल

इस दलदल से तू निकल 

मत कर तू अपने आप से छल 

इनके सब प्रयास हो जाएँगे निष्फल 

नहीं है इन समस्याओं का कोई हल…

चल कबीरा, चल कबीरा…कबीरा चल 

बुनना है अब बनारस का मलमल 

(4)

विहँस रहा है गगन 

मुसकरा रही धरा

 

न जाने कैसी प्यास है 

कि और और चाहता

चातक-सा मन नहीं भरा 

               (5)

तुम्हें गीत सा लिखूँ मैं 

सुर में तुमको गाऊँ

            

सागर अगर जो हो तुम 

मैं बादलों सा  आऊँ

 

कदम्ब कहीं जो हो तुम

मैं पंछी सा गुनगुनाऊँ

 

सुभद्रा के गीत में मैं 

कान्हा सा खिलखिलाऊँ

             निशा निशान्त

 

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