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आमिर खान पर संघी हमला तर्कहीनता की सीमा लांघ रहा है

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hastakshep
26 Aug 2020
आमिर खान पर संघी हमला तर्कहीनता की सीमा लांघ रहा है

Sanghi attack on Aamir Khan is crossing the threshold of irrationality

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यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of expression) का युग है और यह अधिकार होना भी चाहिए। किंतु अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब (Freedom of expression means) कल्पनाओं को सच बताने या झूठ बोलने की आज़ादी नहीं होता। इस आज़ादी में यह निहित है कि विचार को विचार की तरह सामने लाया जाये, न कि आँखों देखे समाचार की तरह।

सूत्रों से प्राप्त बतायी गयी जानकारियों में, जब तक स्पष्ट खतरा न हो, सूत्रों के नाम सामने आने चाहिए और विचारों के साथ विमर्श की गुंजाइश व उसकी जिम्मेवारी लेने का साहस होना चाहिए। उक्त गुणों के बिना कही हुयी बातें अभिव्यक्ति की आज़ादी के जुमले का गलत इस्तेमाल हैं। अभिव्यक्ति की ऐसी आज़ादी नहीं है, ना ही होना चाहिए।

भाजपा का मुखपत्र (BJP mouthpiece) अंग्रेजी में आर्गनाइजर के नाम से व हिन्दी में वह पांचज्न्य के नाम से छपता है।

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मुख पत्र में कही गयी किसी भी बात को पार्टी की आधिकारिक अभिव्यक्ति माना जाता है और अगर किसी त्रुटिवश कुछ प्रकाशित हो जाता है तो तुरंत दूसरे माध्यमों और अखबार के अगले अंक में भूल सुधार छपता है, छपना भी चाहिए।

गत दिनों पांचजन्य <24 अगस्त 2020> में किन्हीं विशाल ठाकुर का एक लेख छापा गया जिसका शीर्षक है ‘ड्रैगन का प्यारा खान’। यह लेख देश के शिखर के अभिनेता निर्माता आमिर खान की छवि को नुकसान पहुंचाने की दृष्टि से रचा गया है जिसमें कुतर्कों की भरमार है। इसकी खबरें देश और दुनिया के मीडिया में छपीं किंतु भाजपा के नेताओं ने 48 घंटे बीत जाने के बाद भी इसका खंडन नहीं किया। इतना ही नहीं विभिन्न टीवी चैनलों पर भाजपा के पक्ष में जोड़े गये उसके प्रवक्ता, संघ विचारक, स्वतंत्र विश्लेषक आदि के श्रीमुख से उक्त लेख के कथ्यों का अग्निधर्मा शब्दों से बचाव किया गया। यह स्पष्ट करता है कि इसके पीछे संघ व अमित शाह की डिजाइन पर काम करने वाली भाजपा नीति ही है।

आमिर खान को दुनिया भर में भारत के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, निर्माता, निर्देशकों में गिना जाता है जिन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रभावी व प्रेरक फिल्में बनायी हैं, जो मनोरंजन से भरपूर होने के कारण जन जन तक पहुंचती भी हैं। उनकी इस पहुंच से वह सन्देश भी समाज तक पहुंचता है जो बहुत जरूरी है। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था पर ‘तारे जमीं पर’ और ‘थ्री ईडियट’ जैसी फिल्में बनायीं तो नारी सशक्तिकरण पर ‘दंगल’ और सीक्रेट सुपर स्टार’ जैसी फिल्म बना कर दुनिया में देश का नाम बढाया। अन्ध विश्वासों के खिलाफ ‘पीके’ जैसी फिल्म बना कर युवाओं को सावधान किया तो ‘लगान’ और ‘मंगल पांडे’ जैसी स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी फिल्में बनायीं। ‘रंग दे बसंती’ जैसी फिल्में बना कर एक ऐसा प्रयोग किया जो भगत सिंह के आन्दोलन की भावना को वर्तमान की राजनीतिक स्थितियों से जोड़ता है और भटक रही युवा पीढ़ी में चेतना का संचार करता है। ‘पीपली लाइव’ बना कर मीडिया की भेड़ चाल की जम कर खिल्ली उड़ायी तो स्पॉट पर शूटिंग कर के गाँवों में किसान की वास्तविक दुर्दशा भी दर्शायी। उनके अन्दर एक राजकपूर बैठा है जो सामाजिक सन्देश देते समय हमेशा यह ध्यान रखता है कि मनोरंजन के लिए आये दर्शक को मनोरंजन भी मिलना चाहिए। इसलिए वे सन्देश और मनोरंजन के बीच जो समन्वय बनाते हैं वह श्रद्धा पैदा करता है और वही उनकी फिल्मों को सफल बनाता है।

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आमिरखान की फिल्में केवल व्यावसायिक स्तर पर ही सफल नहीं होतीं अपितु पारखियों के निगाह में भी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं। देश विदेश का ऐसा कौन सा पुरस्कार है जो उन्हें नहीं मिला हो या उनकी फिल्में उसके लिए नामित न हुयी हों।

‘रजनी’ के बाद प्रशासनिक सामाजिक समीक्षा और उनके हल हेतु प्रेरित करने के लिए किये गये प्रयासों पर बने सीरियलों में ‘सत्यमेव’ जयते का ऎतिहासिक महत्व रहा है। इस सीरियल में जिस करुणा और संवेदनशीलता के साथ घटनाओं को पिरोया गया है वे भीतर तक भेदती रही हैं। इस से ही समाज के वास्तविक नायकों को सम्मानित करने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ, जिसे बाद में भी दुहराया गया। उस दौरान अनेक निजी संस्थानों द्वारा  समाज सेवा के कई प्रोजेक्टों की स्थापना भी हुयी और उनसे हजारों जरूरतमन्दों को सहायता मिली।

कला की दुनिया के माध्यम से इतना बड़ा काम करने वालों से समाज की ज्वलंत समस्याओं के प्रति विचार निरपेक्ष रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती। समाज को कलंकित करने वाली घटनाओं पर उनका ध्यान जाना और उस पर प्रतिक्रिया आना भी स्वाभाविक है। किंतु, फिल्मी दुनिया भले ही कला की दुनिया हो, पर वह एक बड़ी लागत का व्यवसाय भी है जिस पर बहुत सारे नियंत्रक कानून भी लागू होते हैं, जिनका सरकार दुरुपयोग कर के अपना राजनीतिक हित साध सकती है। यही कारण होता है कि फिल्मी दुनिया के सभी लोग मुखर होकर अपनी प्रतिक्रिया नहीं देते। मोदी सरकार के आने के बाद कुछ साम्प्रदायिक संगठन जिस तरह से हत्याओं पर उतर आये वह खतरनाक है। न केवल गौ हत्या का आरोप मढ़ कर मुसलमानों व दलितों की हत्याएं हुयीं अपितु देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों की भी हत्याएं हुयीं जिनमें वैज्ञानिक गोबिन्द पंसारे, दाभोलकर,  कलबुर्गी, गौरी लंकेश, आदि की नृशंस हत्याएं हुयीं। खेद रहा कि सरकार ने अपराधियों को पकड़ने में कोई रुचि नहीं दिखायी, ना ही दुख प्रकट किया। आतंकवाद के खिलाफ अपनी जान न्योछावर कर देने वाले पुलिस अधिकारी करकरे को गद्दार बताया जाने लगा व नेहरू गांधी मौलाना आज़ाद आदि की चरित्र हत्याएं की जाने लगीं। तब देश के अनेक लेखकों ने इस असहिष्णुता पर सरकार द्वारा दिये अपने सम्मान पुरस्कार लौटा दिये। कुछ लोगों ने दबे स्वर में सरकार की इस सोच का विरोध किया जिनमें आमिर खान भी उनमें से एक थे। जो जिस तरीके से दब सकता था, सरकार ने उसे उस तरह से दबाने की कोशिश की। आमिर आदि की फिल्मों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गयी। उनकी सम्वेदनशीलता और लोकप्रियता से ज्यादा बड़ा खतरा था इसलिए वे निशाने पर रहे।

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पांचजन्य के लेख में आमिर खान पर आरोप | Aamir Khan accused in Panchjanya's article

Virendra Jain वीरेन्द्र जैन स्वतंत्र पत्रकार, व्यंग्य लेखक, कवि, एक्टविस्ट, सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी हैं। Virendra Jain वीरेन्द्र जैन स्वतंत्र पत्रकार, व्यंग्य लेखक, कवि, एक्टविस्ट, सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी हैं।

पांचजन्य के चार पेजों में प्रकाशित लेख में आमिर की आलोचना को कुछ मामूली कारणों में केन्द्रित किया गया है। उनमें से एक यह है कि उन्होंने अपनी आगामी फिल्म की शूटिंग तुर्की में करने का विचार किया है और वे इसके लिए तुर्की की प्रथम महिला एमिन एरदुगान से मिले। इसमें अपराध यह माना गया कि तुर्की कश्मीर के मामले में पाकिस्तान के पक्ष को सही मानता है, इसलिए दुश्मन देश है।

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इस लेख पर चर्चा होने से पहले शायद ही किसी को पता हो कि तुर्की को दुश्मन देश माना जाता है और वहाँ पर शूटिंग करने से देश की जनता की भावनाएं आहत होती हों। इस लेख के अनुसार यह काम आमिर खान की जेहादी मानसिकता दर्शाता है।

दूसरा गम्भीर आरोप यह है कि चीन में सलमान खान की फिल्म तो नहीं चली जो सिर्फ 40 करोड़ रुपये कमा पायी किंतु आमिर खान की दंगल ने 1400 करोड़ का कारोबार किया। इसके साथ ही वे चीनी मोबाइल फोन वीवो के विज्ञापन को आमिर खान का देशद्रोह बता रहे हैं। अभी बहुत दिन नहीं बीते जब भारत के प्रधानमंत्री चीन के प्रधानमंत्री को झूला झुला कर चाय पिला रहे थे, तामिलनाडु घुमा रहे थे और भी असंख्य समझौते कर रहे थे। अभी भी उससे व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त नहीं किये गये हैं किंतु वीवो का विज्ञापन करने से आमिर खान को देश द्रोही बताया जाता है और अन्धभक्तों के सहारे सोशल मीडिया पर उसकी फिल्मों के बहिष्कार की अपीलें की जाने लगती हैं।

ये सरकार और इसके संगठन जिस तरह से कुछ लोगों को साम्प्रदायिकता के आधार पर एकत्रित कर उन्हें अन्धभक्त बना रहे हैं व उसी गिरोह के सहारे अपना एजेंडा चलाते हैं, वैसी ही तार्किकता के सहारे वे पूरे देश को हांकना चाहते हैं। सरकार के विरोध को देश का विरोध बताया जाने लगता है।
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पांचजन्य के ऐसे लेखों से तो हो सकता है कि आमिर खान की फिल्म और अधिक चल जाये किंतु यह साफ हो जाता है कि ये आम जनता को नासमझ समझते हैं। शायद इसी बात का परीक्षण कभी थाली और कभी ताली या दिया जलवा कर बार-बार करते रहते हैं।

वीरेन्द्र जैन

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