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Story of Sarah Malik - Ration Card
राशन कार्ड
उर्मिला, अपना सामान बांध रही थी, उसे गांव जाना है, होली के 7 दिन बाद उसने कुछ दिन की छुट्टी ले रखी है. उर्मिला आसपास के घरों में काम करती है, और उसी कमाई से वह अपना घर चलाती है, और अपने तीन बच्चों के लिए एक अच्छे कल के सपने बुनती है।
एक दिन वह मुझसे बोली दीदी कहां अच्छा लगता है, "दूसरों के घर जाकर काम करना, उनके झूठे बर्तन साफ करना।"
"मेरी बच्चियां कल को मेरी तरह ना रह जाए", इसलिए उनको पढ़ाना चाहती हूं। गांव से शहर इसीलिए आई, कि "मेरी बच्चियां कल को कुछ पढ़ लिख जाए, और उनकी जिंदगी मुझसे कुछ बेहतर हो जाए"।
उर्मिला होगी कोई, 38 - 40 साल के लगभग, देखने में ठीक लगती है, रंग सांवला सा ही है, इकहरा बदन, खुद को थोड़ा रखती भी साफ, अक्सर देखती हूं कि कपड़े साफ़ ही पहनती है। ज़िंदगी की ऐसी जद्दोजहद में भी, उसकी आंखें खुशगवार सी हैं, चलने के ढंग में फुर्ती, और हौसला जो उसके सपनों को उड़ान देता हो।
वह अपनी जिंदगी की जंग लड़ रही है चुनौतियों को झेलते हुए।
अजीब नहीं लगता होगा दूसरों के झूठे बर्तन साफ करना, और लोगों के ताने सुनना, "यह कोई टाइम है तुम्हारे आने का "इस वक्त आई हो ? अब मैं तुम्हारा क्या करूं, जाओ मैंने खुद अपना काम निपटा लिया है, फिर भी वह डटी रहती है। जिल्लत बर्दाश्त करते हुए, मुस्कुराते हुए "आज गलती हो गई कल से टाइम पर आऊंगी"।
हम आपस में बात करते वक्त यही कहते हैं इन लोगों का तो यही है, "रोज नए बहाने, रोज इनके यहां कोई बीमार हो जाता है, कोई मर जाता है, यह इनका रोज का नाटक है।" कभी हम यह नहीं सोच पाते कि इनकी भी तकलीफॆ हो सकती हैं।
इनको समाज से कभी इज्जतदार इंसान होने का हक मिलता है या मौके बे मौकॆ, यह महज वोट ही होते हैं। हमारे लिए तो यह सिर्फ नौकर होते हैं जो हमें टाइम पर चाहिए, क्योंकि हमने उनको पैसे दे रखे हैं।
खैर, वह गांव जा रही है, इस बार उसे गांव में थोड़ा सा काम करवाना है, एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा है जिस पर पुराने टाइम की दो कोठरी बनी हुई उसे चहारदीवारी खिंचवानी है, और उसके पति रामखेलावन ने कुछ पैसों का इंतजाम कर लिया है। रामखेलावन शहर में मिस्त्री के साथ हेल्पर, का काम करता है कभी-कभी उसका काम लग जाता है कभी-कभी वह खाली भी रहता है, असल में उर्मिला की कमाई से ही घर चलता है।
उसकी दो बेटियां हैं, बड़ी बेटी, "गौरी" 12-13 साल की, पड़ोस में कम्लेश भाभी के यहां बच्चे की देखभाल के लिए जाती है। तंदुरुस्त लंबी, मां की तरह रंग साफ आंखें गोल-गोल।
कमलेश भाभी, जिनकी शहर में मशीनरी पार्ट्स की बड़ी सी दुकान है, उर्मिला उनके यहां काम करती है और कमलेश भाभी से जो मदद हो सकती है, कर देती हैं।
उर्मिला के काफी रिश्तेदार अभी भी झुग्गियों में रहते हैं, लेकिन उर्मिला का रहन-सहन कमलेश भाभी की वजह से कुछ बदल गया है, वह उनके बच्चों के लिए बहुत दुआएं करती है।
अपनी बेटियों को कुछ दिन के लिए अपनी ननद के घर में छोड़ रही हूं। उसकी बेटी के साथ मेरी बच्चियां सेफ हैं। मुझे गांव जाने में और काम कराने में 15.से 20 दिन का टाइम लग जाएगा, लेकिन मुझे कोई फिक्र नहीं है। उर्मिला ने बताया कल सुबह ही चले जाएंगे हम।
लेकिन कुछ दिन बाद अचानक से आई यह महामारी, जो कि छूत की बीमारी, वजह से जनता कर्फ़्यू हो गया और फिर लॉक डाउन। उर्मिला गांव में परेशान हो गई। इधर बच्चियां भी बहुत हैरान परेशान हो गईं, मां से दूर अकेले में वह लोग घबरा रही थीं। अब यह बच्चियां क्या करतीं स्कूल भी बंद था, पेपर कैंसिल हो चुके थे।
बच्चे यहाँ अब क्या करेंगे। बीमारी की दहशत अलग से।
पता चला कि एक सब्जी वाली गाड़ी उनके गांव सब्जी के लिए जाएगी तो उनकी बुआ ने उस गाड़ी वाले से पहचान निकालकर बच्चियों को गांव भेजने का इंतजाम कर दिया. एक सब्जी की गाड़ी "डाला" कहलाती है, वह जा रही थी, वह लोग थोड़ा बहुत सामान लेकर उससे गांव चले गए।
इस बीमारी के फैलने के डर से हालात बिल्कुल मुख्तलिफ हो गए। अब यह शहर। वह पुराना शहर न मालूम दे रहा था। लोग दरवाजा खोलने से डर रहे थे, सब तरफ बन्द। और चारों तरफ फैला हुआ सन्नाटा ना गाड़ी मोटर की आवाज, ना ही कोई शोरगुल।
अरे तुम आ गईं ? मैंने उर्मिला से कहा!
उसे लगा शायद मैं उससे बात नहीं करूंगी, तो मैंने पास जाकर उससे पूछा कैसी हो, और बच्चे कैसे हैं।
हां दीदी मैं आ गई।
बोली दीदी यहां तो सब लोग डरे हुए हैं, बोल रहे हैं कोरोनावायरस। कोई काम नहीं लेना चाहता, अब तक बच्चे गांव में बहुत परेशान हो रहे थे। और वैसे भी वहां खाने को कुछ था नहीं इसलिए हम लोग वापस आ गए।
मैंने कहा कोई बात नहीं।
प्रशासन के आदेश से गरीबों को राशन दिया जा रहा है, और सुना है कि राशन किट भी दी जा रही है, जिसमें खाने-पीने का सामान होगा। लोगों की मदद हो रही है। वहां छोटे स्कूल के पास कोटेदार राशन बांट रहे हैं ऐसा सुनने में आया है, तुम वहां चली जाओ, तुम्हारा कुछ काम बन जाएगा। और अगर काम ना बने तो मुझे बताना मैं देखती हूं, मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूँ i
दीदी आप मेरी मदद कर दें। बहुत-बहुत मेहरबानी होगी। मैं पढ़ी लिखी नहीं हूं। मुझे तो कुछ मालूम भी नहीं है, बस इतना पता है कि "मैं बहुत परेशान हूं, और कुछ समझ में नहीं आ रहा"।
मैंने उसको तसल्ली देते हुए कहा, कोई बात नहीं तुम परेशान ना हो। मैं तुम्हारे साथ चल दूंगी पहले तुम पता करके आओ ?
थोड़ी देर बाद वो मेरे पास आई, और बोली कि उन लोगों ने कहा कि कुछ नहीं हो पाएगा क्योंकि तुम्हारे पास राशन कार्ड तो है नहीं, सिर्फ आधार से कुछ नहीं होगा। जाओ यहां से।
पूछ रहे थे वोटर कार्ड है? बिजली का बिल ? किसको वोट देती हो ?, वोट शहर में देती हो या गांव में?
राशन किसी पार्टी के लोग बांट रहे थे।
मैंने कहा "देखती हूं, कल मैं बात करती हूं वह बोली ठीक है! "
मैंने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर फोन लगाया 1076. उधर से ऑपरेटर ने जवाब दिया "जहां पर राशन मिलता होगा, आपके इलाके में वहां पर जाकर पता करिए, और रही बात पैकेट की या किट की तो वह तो नहीं।"
यहां मोहल्ले में जब पता किया, तो लोगों ने बताया पार्टी के लोग बैठे हैं, और वह राशन बांट चुके हैं, उर्मिला परेशान हो उठी।
हम लोग राशन की दुकान पर गए, डीलर ने पूछा राशन कार्ड है ?
" नहीं" लेकिन बताया गया "कि आधार कार्ड पर भी मिल सकता है" सरकार का आदेश हैl
वह बोला राशन तो पहले हफ्ते में ही बंट गया. पहले राशन कार्ड बनवाना होगा तब कहीं अगले महीने से राशन मिल सकता है।
हमने कहा कैसे बनेगा ?उसने कहा आधार कार्ड, गैस की किताब, और बैंक का खाता बुक, फोटो, बत्ती का बिल, यह सब चाहिए होगा। और साथ में डेढ़ सौ रुपए। अभी तक वह अपने आपको काम में काफी मशगूल दिखा रहा था, लेकिन अब उसने अपना ध्यान हमारी तरफ किया बड़े गौर से देखा। फिर जाने कैसे उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक आ गई। "दोनों को बनवाना है" ?
"नहीं" मैंने कहा! सिर्फ इनका.
उसकी कुटिल सी मुस्कुराहट मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगी, उसका इस तरह बात करना बेहद नागवार गुजर रहा था।
अब उसने थोड़ा बदले हुए लहजे में कहा कागज के साथ भेज दीजिएगा इनको। टेंपरेरी कार्ड बन जाएगा मैं इनके लिए कोशिश कर दूंगा अगर यह चाहेंगी। अगले महीने से राशन मिलने लगेगा।
मैंने कोटेदार से पूछा, अगले महीने से राशन मिलने लगेगा। क्या राशन फ्री में मिलेगा!
नहीं ₹3 किलो गेहूँ और ₹3 किलो चावल वह भी अगले महीने से ही मिल पाएगा।
उर्मिला को कुछ तो तसल्ली हुई इस महीने ना सही अगले महीने से सही कुछ तो मिलेगा।i
एक आसरा सा है, "कि शायद अगले महीने से राशन मिल जाए"।
उसने मुझसे पूछा यह आधार कार्ड क्या किसी काम का नहीं है ? मेरे जैसे जाने कितने लोग हैं, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है, तो क्या वह भूखे मर जाए, गांव में भी बहुत बुरे हालात हैं। बाहर से बहुत सारे लोग लौट-लौट के गांव आ रहे हैं, पर गांव में बहुत कुछ है नहीं, "कितने दिन तक गांव उनको संभाल पाएगा" बड़ा मारा कोई अधिकार नहीं है, इन शहरों में क्या हम यहां के लोग नहीं, क्या यह शहर हमारा नहीं। मेरे पति ने यहां जाने कितनी बिल्डिंग बनाई! क्या हमारा कुछ भी नहीं है, इतना भी नहीं," कि हमें कुछ खाने के लिए मिल जाए"।
सरकार और यह समाज ऐसे लोगों को क्या दे पा रहा है यह सोच कर मैं परेशान हो गई, उसकी सारी बातें जायज थी, और वाजिब भी।
उसके सवालों पर कोई सरकारी योजना बनी है क्या ? बनी तो अमल क्यों नहीं होता या "आंखों की चमक" योजना और हकों को निगल जाती है ? बड़ा सवाल है, मौजूदा सवाल है, पर जवाब ??
क्या जरूरत है, याद रखने की, क्या फर्क पड़ता है ? वोट फिर मिल जाएंगे। यह पूरा समाज बहुत बेफिक्रा है।
मैं यह सोच रही हूं कि जाने कितनी मुश्किलों में हैं लोग, कितनी बेबस हैं ये औरतें, बदहाली में बच्चे।
यह राशन कार्ड।! और क्या औरत का वजूद, उसकी अस्मत, उसकी जद्दोजहद या उसकी पूरी जिंदगी कि तमाम मसलों में आज का सबसे अहम मसला।
सारा मलिक