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सरदार पटेल की जयंती (31 अक्टूबर) के अवसर पर विशेष {Special on the occasion of Sardar Vallabhbhai Patel's birth anniversary (31st October)}
भारत विभाजन पर सरदार पटेल | Sardar Patel Jayanti Special: Was Sardar Patel against partition?
देश के अनेक लोग, विशेषकर संघ परिवार समेत दक्षिणपंथी चिंतक, लगातार यह आरोप लगाते हैं कि देश का बंटवारा इसलिए किया गया क्योंकि जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनने की जल्दी थी। परंतु यह बात वास्तविकता के परे है। इस ऐतिहासिक घटना की गहराई में जाने पर पता लगता है कि सरदार पटेल उन कांग्रेस नेताओं में से थे जिन्होंने यह स्वीकार कर लिया था कि देश का विभाजन रोकना मुश्किल है।
क्या सरदार पटेल विभाजन के विरोधी थे?
यहां मैं इस संबंध में सरदार पटेल के विचारों को उद्धृत कर रहा हूं जो कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी की कलम से इतिहास की एक प्रामाणिक पुस्तक में प्रकाशित हैं।
मुंशी उन कांग्रेस नेताओं में से थे जिन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देकर अखंड हिन्दुस्तान नामक संगठन बनाया था। इस तरह के कांग्रेसी भारत के विभाजन के विरोधी थे।
मुंशी लिखते हैं कि उस समय सरदार पटेल विभाजन के विरोधी थे। परंतु बाद में उनके विचारों में परिवर्तन आया। मुंशीजी लिखते हैं
"सन् 1947 में मैं और सरदार पटेल जी. डी. बिरला के मेहमान थे। सरदार पटेल अपनी दैनिक वॉक के दौरान अनेक विषयों पर बात करते थे। इसी तरह की वॉक के दौरान सरदार पटेल ने मुझे लगभग चिढ़ाते हुए कहा कि ‘अखंड हिन्दुस्तानी, मेरी बात सुनो। अब हम भारत का विभाजन करने वाले है"’। लगता है वे किसी सम्मेलन में भाग लेकर आए थे।
मुझे उनकी बात सुनकर काफी धक्का लगा। इसलिए क्योंकि वे अभी तक देश के विभाजन के सख्त विरोधी थे और इस मुद्दे पर वे राजाजी के विभाजन समर्थक विचार के तीव आलोचक थे। उन्होंने मुझे यह समझाने का प्रयास किया कि राजाजी सही हैं।
उन्होंने विभाजन के समर्थन में दो मुख्य तर्क दिए। पहला यह कि चूंकि कांग्रेस अहिंसा के प्रति प्रतिबद्ध है इसलिए विभाजन का विरोध करना संभव नहीं है। विभाजन का विरोध कांग्रेस का अंत होगा क्योंकि विरोध का अर्थ होगा बड़े पैमाने पर मुस्लिम लीग से हिंसक संघर्ष। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश सरकार, सेना और पुलिस तटस्थ बैठी रहेंगीं।
दूसरा तर्क यह है कि यदि विभाजन स्वीकार नहीं किया गया तो शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में साम्प्रदायिक संघर्ष, विद्वेष और सेना व पुलिस में साम्प्रदायिक आधार पर गहरा विभाजन हो सकता है। यदि ऐसे संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है तो हिन्दुओं के लिए ऐसी स्थिति का मुकाबला करना मुश्किल होगा क्योंकि हिन्दू संगठित नहीं हैं और ना ही वे कट्टर हैं।
यदि ऐसी विभाजन की स्थिति बनती है तो उसका मुकाबला धार्मिक रूप से विभाजित समाज में नहीं किया जा सकता परंतु संगठित सरकारों के बीच यह ज्यादा सरलता से अवश्य किया जा सकता है। यदि ऐसी स्थिति में कुछ गंभीर समस्याएं उठती हैं तो उनका हल विभाजित समाजों से बेहतर संगठित सरकारों द्वारा अपेक्षाकृत अच्छे ढंग से हल किया जा सकता है।
- एल. एस. हरदेनिया