महंगी न पड़ जाए मक्का में मक्केश्वर नाथ की भूख !

महंगी न पड़ जाए मक्का में मक्केश्वर नाथ की भूख !

क्या मक्का में काले रंग का पत्थर 'शिवलिंग' है?

यह गप कुछ नया नहीं था कि मक्का में काले रंग का जो पत्थर है, वह 'शिवलिंग' है। दशकों पहले से यह सब सुनता आ रहा था। नया इसमें है मक्केश्वरनाथ।

पुरी के श्रीगोर्वद्धर्नापीठम के 145 वें जगदगुरू, परम पाद शंकराचार्य स्वामी निश्छलानंद सरस्वती (Param Pada Shankaracharya Swami Nischalananda Saraswati, 145th Jagadguru of Sri Gorvadharnapeetham, Puri) ने इच्छा व्यक्त की है कि मक्का में मक्केश्वर महादेव का मंदिर (Makkeshwar Mahadev Temple in Mecca) स्थापित होना चाहिए।

निश्छलानंद सरस्वती का वास्तविक नाम क्या है?

78 साल के निश्छलानंद सरस्वती का वास्तविक नाम है, नीलांबर झा। बिहार के मधुबनी में हरिपुर बक्शी टोला कोई जगह है, वहां जन्मे थे। नीलांबर झा तिब्बिया कालेज के छात्र थे, फिर 1974 में संन्यासी हो गये।

जगतगुरू ने जो मांगा है, भारत सरकार उस पर चुप है। मगर, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गुरूवार को नागपुर में प्रशिक्षण शिविर के समापन पर कहा, 'हर मस्ज़िद में शिवलिंग ढूंढना सही नहीं हैं।'

मक्का में शिवलिंग का प्रश्न

सरकार मक्का में शिवलिंग के सवाल पर (Question about Shivling in Mecca) पिछले आठ वर्षों से खामोश ही रही है। यह चुप्पी उन आलेखों, ग्राफिक्स, और लाखों की संख्या में कमेंट्स पर भी है, जो दावा करते हैं कि जब इस्लाम का आगमन नहीं हुआ था, काबा में महादेव ही पूजे जाते थे।

कुछ ने ग्राफिक्स में यह भी दिखाया कि मक्का में भगवान शिव को कैसे क़ैद करके रखा गया है

कइयों ने तो यहां तक कह दिया कि मक्का में ज्योर्तिलिंग है। अब तक 12 ज्योर्तिलिंग का सुन रखा था मैंने, 13 वां मक्का में है, इन दिनों जाना।

व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी वाले जितने आत्मविश्वास से बता जाते हैं, आपके ख़ुद का विश्वास डोल जाएगा।

शिव पुराण में जितना कुछ ज्योर्तिलिंग के बारे में बताया गया है, मक्का की भी उस प्राचीन पवित्र पुस्तक में कहीं चर्चा है क्या? भक्त चाहें, तो शिव पुराण के पूरे 24 हज़ार श्लोकों को खंगाल लें। रोमहर्षण ने संस्कृत में लिखा था शिव पुराण। मुनि व्यास के इस शिष्य को क्रेडिट देने में संकोच क्यों?

निश्चित रूप से इस्लाम बहुत बाद में आया है। शिव तो हमारे संस्कारों में ईसा के जन्म से 1700 सौ साल पहले ऋग्वैदिक काल में आ चुके थे। शिव, संभवत: ऋग्वेद में सबसे पहले नुमायां होते हैं। 1028 सूक्त-10 हज़ार 580 ऋचाओं में क्या कहीं उस दिशा की भी चर्चा है, जहां कई शताब्दी बाद हज़रत मुहम्मद जन्मे थे?

भारतीय उपमहाद्वीप में नेपाल, श्रीलंका, अफग़ानिस्तान-बाल्टिस्तान के कुछ हिस्से, दक्षिण-पूर्व एशिया में बाली, इंडोनेशिया तक के भग्नावशेष, मूर्तिकला शिव की पुरातात्विक पहचान को प्रस्तुत करते हैं। मगर, मक्का की बात होती है, तो उसके प्रमाण पेश करने से रोकता कौन है?

शिव को समाज में विद्वेष और षड्यंत्र का साधन मत बनाइये। 'मक्केश्वर महादेव' की काल्पनिक स्थापना के धतकर्म ने सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् की पूरी परिभाषा ही पलट दी।

570 में जन्मे थे हजरत मोहम्मद। मक्का में उनके जन्म से पहले का समय जिसे हम सब, इस्लाम-पूर्व पीरियड के रूप में जानते हैं, उस पर दुनियाभर के शिक्षा केंद्रों में काफी शोध हो चुका है। उनमें मोरक्को की अल-कोरोवियिन यूनिवर्सिटी भी शामिल रही है, जिसकी स्थापना 857 ईस्वी में हुई थी।

मोरक्को स्थित दुनिया की सबसे प्राचीन यूनिवर्सिटी के अलावा 970 में स्थापित मिस्र की अल अज़हर यूनिवसिर्टी ने भी 'प्री-इस्लामिक हिस्ट्री' (Pre-Islamic History) पर काफी काम किया है। रेत पर बसर करने वाले खानाबदोश जनजाति 'बेदोइन' इस्लाम के उत्कर्ष तक, 700 ईस्वी में अरब के विस्तृत इलाक़े में मौज़ूद थे, उसे झुठलाना मुश्किल है।

बेदोइन जनजाति के लोग 200 ईस्वी में दक्षिणी जोर्डन और दक्षिणी सीरिया के मरूस्थल से आये थे, जो भेंड़-बकरी और ऊंट के मांस पर आश्रित थे। दूध, पनीर, रक्त भी खाते-पीते थे। खाल और वूल उनके तन ढंकने या बिछाने के काम आता था। जिनका काम व्यापार के लिए चले कारवां की रक्षा करना, और कभी-कभी लूटना भी होता था।

बेदोइन खानाबदोश (Bedouins nomads) 630 के आसपास इस्लाम के आगमन और उत्कर्ष वाले दौर में, सेंट्रल अरबियन प्राय:द्वीप में फैल गये थे।

इस इलाक़े में बेदोइन जनजाति के प्रवेश से पहले नेबेतियन खानाबदोशों का भी पता चला है, जो 37 सदी से 120 के आसपास उत्तरी अरब और पश्चिमी एशिया के भूमध्य सागर के छोर से लगा हुआ बिलाद अल शाम (लेवेंट) से आये थे। दो और खानाबदोश जनजातियों की जानकारी प्री इस्लामिक हिस्ट्री में मिलती है।

'तहमूद', जो ईसा पूर्व 3000 से लेकर 300 ईस्वी तक इस इलाक़े में अस्तित्व में थे, और दूसरी जनजाति थी, 'दिलमुन', जिनका वजूद चौथी सहस्राब्दी से लेकर 600 ईस्वी तक अरब प्राय:द्वीप में देखा गया था।

'वर्ल्ड हिस्ट्री इन्साइक्लोपीडिया', दक्षिणी अरब (आज का यमन) वाले इलाके़ में ईसा पूर्व आठवीं सदी से 275 ईस्वी तक सबा या साबियन गणराज्य की पुष्टि करता है।

साबियन गणराज्य (Sabian Republic) का विस्तार पूर्वी अरब के तटीय इलाक़ों तक था। आप बाइबिल में किंग सोलोमन और साम्राज्ञी शेबा का उल्लेख देख सकते हैं। अरब व्यापारी जेरूसलम जाकर सेंट पीटर से सुसमाचार (गॉस्पल) सुन आये थे, यह भी जानकारी मिलती है।

अरब प्राय:द्वीप में प्री इस्लामिक कालखंडों को देखिएगा तो अरबियन क्रिश्चियनिटी, नेस्टोरियन क्रिश्चियनिटी, यहूदी, पारसी पंथ के प्रमाण मिलते हैं। उस दौर में पॉल और सेट थॉमस मिनिस्ट्री के ज़रिये अरब व्यापारियों ने ईसाईयत अंगीकार किया था, इसके प्रमाण मिलते हैं। इतने सारे घर्म थे, तो कबीलों में खींचतान और लड़ाइयां स्वाभाविक थीं।

324 ईस्वी में बाइज़ेंटाइन के सऊदी प्राय:द्वीप में आने के बाद बेदोइन क़बीले के लोगों ने बड़े पैमाने पर ईसाइयत को स्वीकार किया था।

मगर, अरब प्राय:द्वीप में मंदिर और मूर्ति पूजा की अवधारणा कैसे विकसित हुई?

'द पेगॉन गॉड' के लेखक जेवियर टिक्सीडोर मानते हैं कि इस इलाक़े में बुतपरस्ती ग्रीको-रोमन सभ्यता की देन है। पूर्वी भूमध्य सागरीय इलाक़े, जिसकी ज़द में आज का लेबनान और सीरिया भी आता है, वहां प्राचीन फोनेशियन व अरामिक भाषा और सभ्यता की चर्चा इस पुस्तक में है। ये लोग मूर्ति पूजक थे। मेसोपोटामिया से उत्तरी अरब, उत्तरी मिस्र, क़ुवैत और बिलाद अल शाम (लेवेंट) तक बुतपरस्ती चरम पर थी।

एथेंस के एक्रोपोलिस में मैंने स्वयं ईसा से 454 साल पहले निर्मित देवी अथेना का मंदिर (Temple of Goddess Athena), और उनकी मूर्ति देखी थी। यूनान की राजधानी एथेंस तो प्राचीन देवालयों व देवी-देवताओं की मूर्तियों का शहर लगता है।

एक्रोपोलिस म्यूज़ियम में ईसा पूर्व पांचवी सदी की समुद्र मंथन करती मूर्तियां देखकर मुझे हैरानी हुई थी। इसलिए, जो बातें 'द पेगॉन गॉड' के लेखक जेवियर टिक्सीडोर ने लिखी है, वह सऊदी प्राय:द्वीप के संदर्भ में सही जान पड़ती हैं।

प्री इस्लामिक महापुरूषों में से एक इब्राहम, वेस्ट बैंक के हेब्रों में दफन हैं। हेब्रों स्थित इब्राहिमी मस्ज़िद के अभिलेखागार बताते हैं कि उन्होंने अपने पुत्र इस्माइल के साथ क़ाबा में विराट देवालय की स्थापना की थी, जिसमें 360 मूर्तियां थीं। प्री-इस्लामिक क़ाबा में पूरे अरब प्राय:द्वीप के मूर्तिपूजक आते थे। क़ाबा में इब्राहिम के समय सीरियाई चंद्र देवता हूबाल की मूर्ति को लोग देवाधिपति मानते थे। हूबाल की तीन बेटियों की मूर्ति को क़ाबा में पूजे जाने का मतलब था, औरतें उस कालखंड में सम्मान की पात्र थीं। हूबाल की बेटी अल्लत की मूर्ति को पूजने लोग युद्ध में शक्ति पाने के वास्ते जाते थे। दूसरी पुत्री अल-उज्ज़ा की अराधना संतानोपत्ति की आशा में की जाती। हूबाल की तीसरी पुत्री 'मन्नत' की मूर्ति, भाग्योदय का प्रतीक थी।

हिशाम इब्न अल-कल्बी ने अपनी किताब, 'बुक ऑफ आइडल्स' में इसे विस्तार से लिखा है।

पांचवी से सातवीं सदी तक कुरैश क़बीले का मक्का पर नियंत्रण था। क़ुरैश मसाले के व्यापारी थे, और मूर्तिपूजक थे। 622 में मक्का से हज़रत मुहम्मद का मदीना महाभिनिष्क्रमण (जिसे हिज़्र कहते हैं ) और 632 में उनकी वापसी के इतिहास में नहीं जाना है। मगर, कि़स्सा कोताह यह है कि 628 में 10 साल के यु़द्ध के बाद कु़रैश कबीले के साथ 'हुदेविया समझौता' हुआ था। समझौता टूटने के दो साल बाद, दसवें रमादान के समय 31 अक्टूबर 629 को मक्का पर मुस्लिम फौज का कब्ज़ा हुआ, और का़बा की मूर्तियों पर कहर बरपा हुआ।

अल-हजर अल-असवद के बारे में

काबा कई बार हमले व आगजनी का शिकार हुआ है। 'अल-हजर अल-असवद' वो पवित्र पत्थर है, जिसे भारत में 'शिवलिंग' कहने का दु:साहस किया जा रहा है। 683 ईस्वी में क़ाबा में हुई आगजनी में इस पत्थर के तीन टुकड़े हुए थे, जिसे खलीफा इब्न ज़ुबेर के समय चांदी के एक अंडाकार कवच में जोड़कर क़ाबा के दक्षिण-पूर्व कोने पर स्थापित किया गया।

यह पत्थर न तो काला है, न शिवलिंग जैसा दिखता है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भूविज्ञानियों की एक टीम गुलाबी-भूरे व ग्रे कलर मिक्स इस पवित्र पाषाण का अध्ययन कर चुकी है।

ख़लीफा अब्द अल मलिक इब्न ज़ुबेर ने ही आग से तबाह क़ाबा का पुनर्निर्माण किया था।

अब सवाल यह है कि जो लोग 'अल-हजर अल-असवद' को शिवलिंग बताने और मक्केश्वर शिव मंदिर बनाने की परिकल्पना कर भारत में लोगों की भावनाएं भड़काने का काम कर रहे हैं, कभी सोचा कि इसका भारत-सऊदी अरब के संबंधों पर क्या असर पड़ेगा?

चीन, अमेरिका और जापान के बाद, सऊदी अरब, भारत का चौथा ट्रेडिंग पार्टनर है। रियाद स्थित भारतीय दूतावास के सूत्र बताते हैं कि भारत 18 फीसदी कच्चे तेल का आयात केवल सऊदी अरब से करता है। 2021-22 के वित्त वर्ष में 29.28 अरब डॉलर का उभयपक्षीय कारोबार हुआ है। भारत इस अवधि में 6. 63 अरब डॉलर का निर्यात कर चुका है।

1947 से हमारे संबंध सऊदी अरब से हैं। प्रधानमंत्री मोदी 2016 और 2019 में दो बार सऊदी अरब की यात्रा पर जा चुके हैं।

सऊदी अरब पुलवामा अटैक के हवाले से पाकिस्तान की मज़म्मत कर चुका है। कश्मीर मामले में वह तटस्थ है।

एक तरफ भारत ऊर्जा सुरक्षा और निवेश के लिए हाथ-पांव मार रहा है, दूसरी ओर यहां के बाबा लोगों को मक्का में भोलेनाथ का मंदिर बनाने की भूख जाग उठी है।

पुष्परंजन

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