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चौंक गए न ! पतियों को पीटने में भारतीय पत्नियां विश्व में तीसरे स्थान पर

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Guest writer
11 Jun 2022
जानिए बच्चों पर घरेलू हिंसा का प्रभाव क्या होता है और उनमें क्या विकृतियां पैदा हो सकती हैं

Effects of domestic violence on children

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अपने पतियों को पीटने के मामले में भारतीय पत्नियां विश्व में तीसरे पायदान पर

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भारतीय पतियों के लिए एक अत्यंत दु :खद और चौंकाने वाली खबर वैश्विक संस्थान संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से यह आई है, वह यह कि अपनी पत्नियों से पिटने के मामले में भारतीय पतियों का स्थान तीसरे नंबर पर है।

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Indian wives have been ranked third in beating husbands

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संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से आई इस दु:खद रिपोर्ट- संयुक्त राष्ट्र अपराध सांख्यिकी (United Nations Crime Statistics 2016 ) के अनुसार दुनिया भऱ में पत्नियों से पिटने के मामले में सबसे ज्यादा इजिप्टियन पति अपनी पत्नियों से बुरी तरह पिटते हैं। दूसरे नंबर पर ब्रिटिश पति आते हैं।

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वैसे तो समाचार पत्रों की खबरों में अक्सर हम घरेलू हिंसा में अपने पतियों द्वारा अपनी पत्नियों पर ढाए जाने वाले जुल्मों की दास्तानें सुनते ही रहते हैं, लेकिन एक सच यह भी है कि दुनिया भर में पति भी बड़ी मात्रा में अपनी पत्नियों द्वारा सताए जा रहे हैं।

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संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा करवाए गए एक पुराने सर्वेक्षण में पतियों पर हुए घरेलू हिंसा के चौंकाने वाले आंकड़े (Shocking statistics of domestic violence against husbands) सामने आए हैं।

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इस सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चला है कि पतियों को मारने के लिए उनकी पत्नियां अक्सर अपने घर में आसानी से उपलब्ध बेलन, बेल्ट, जूते व किचन के अन्य सामानों का धड़ल्ले से इस्तेमाल करती हैं।

यहां कुछ लोगों को सुनने में यह मजाक लग सकता है, लेकिन भारत इस हिंसा में तीसरे स्थान पर है और यह विषय किसी भी तरह से गर्व करने का विषय नहीं हो सकता।

संक्रमण के दौर में भारतीय समाज

ज्ञातव्य है कि भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में शुरू से ही पुरुष महिलाओं पर हावी रहे हैं। ऐसे में घरेलू हिंसा आए दिन होती रहती है, लेकिन लगता है अब समय और परिस्थितियां दोनों तेजी से बदल रहीं हैं। पढ़ी-लिखी, नौकरीपेशा जागरूक भारतीय स्त्रियां अब पुरातनपंथी, सदा पति की सेवा में समर्पित रहने वाली अपने छवि से मुक्त हो रहीं हैं।

आज से पचास-साठ वर्ष पहले अपने एक शराबी, आवारा, अकर्मण्य पतियों से भी भारतीय स्त्रियां चुपचाप पिट-पिटाकर, रो-धोकर चुप लगा जाती थीं, लेकिन समय के साथ उक्त वर्णित पतियों के ज़ुल्म के खिलाफ भारतीय पत्नियों ने उसका विरोध करना शुरू कर दिया है। वे अपने उक्त वर्णित नालायक और आवारा पतियों द्वारा उठाए गए हाथ को अब रोक दे रहीं हैं। इस पर भी अगर उनका पति अपने हिंसात्मक रूख से विरत नहीं होता, तो उस स्थिति में वे भी ईंट का जबाव पत्थर से देने की कोशिश करतीं हैं।

इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए इस सर्वेक्षण में इस तरह की चौंकाने वाली रिपोर्ट आई

इस संबंध में विशेषज्ञों की राय

कुछ विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान कथित वैश्विक उदारवादी आर्थिक नीतियों की वजह से जो निश्चित रूप से मजदूरों और कर्मचारियों के विरूद्ध है और चंद पूंजीपतियों के लिए बहुत ही बढ़िया और फायदेमंद है, इसलिए भारत सहित दुनिया भर के पिछड़े और भारत जैसे विकासशील देशों के करोड़ों लोगों के जीवन के लिए यह कथित वैश्विक उदारवादी व्यवस्था बहुत ही दुष्कर होता जा रहा है। काम के घंटों का बढ़ जाना, छंटनी होकर बेरोज़गार होकर सड़क पर आ जाना, शिक्षा, मेडिकल आदि जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की शर्तें अत्यंत कठिन और दुरूह हो जाने से आधुनिक जगत में अब अवसाद भी तेजी से बढ़ रहा है। अवसाद के चलते पुरुष वर्ग नशीले पदार्थों का सेवन कर रहा है, जिसके चलते घर पर घरेलू हिंसा बढ़ रही है। अवसाद के मामलों में पहले पुरुषों का अनुपात ज्यादा था लेकिन अब महिलाओं का अनुपात बढ़ गया है।

भारत की बढ़ती हुई आबादी, गरीबी बेरोज़गारी तथा अन्य बहुत सी मूलभूत आवश्यकताओं की घोर कमी को देखते हुए सामाजिक विशेषज्ञों का यह मानना है कि आने वाले समय में भारत, इजिप्ट और ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ते हुए इस रिपोर्ट में टॉप भी कर सकता है।

कुछ सामाजिक विशेषज्ञों के अनुसार इसके पीछे सबसे कड़वा सच है यह है कि दुनिया भर के लगभग हर देश का पुरूष प्रधान समाज पुरुषों के साथ होने वाले जुल्मों के प्रति उदासीन रहता है, वह संयुक्त रूप से, संगठित और सशक्त होकर आवाज ही नहीं उठाता। अब समय आ गया है कि हर देश में पुरुषों को इस तरह के जुल्म से बचाने और पीड़ित पुरूषों को संरक्षित करने की जरूरत है, क्योंकि भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति पहले से ही काफी सहानुभूति है।

समाधान     

सामाजिक मनोवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के अनुसार खुशहाल और प्रसन्नचित तथा समृद्ध परिवारों में अपेक्षाकृत गरीबी, भुखमरी और दरिद्रता पूर्ण स्थितियों में जीते परिवारों की तुलना में बहुत कम लड़ाईयां होतीं हैं। इसलिए इसका समाधान यह है कि आम जन की मूलभूत आवश्यकताओं मसलन शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, भोजन, पानी की सुलभता की सूक्ष्मता से विश्लेषण करके उसका सहानुभूति पूर्वक समाधान हो, ताकि एक आम आदमी अवसाद में न जाय।

निर्मल कुमार शर्मा

'गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक, सामाजिक, राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र, निष्पक्ष, बेखौफ, आमजनहितैषी, न्यायोचित व समसामयिक लेखन

Indian wives are third in the world in terms of beating their husbands! - United Nations

Shocking! Indian wives rank third in beating their husbands

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