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सिलगेर, हसदेव अरण्य और टिकैत; हमलों के अंतर्संबंध

मंत्रिमंडल विस्तार : शून्य को शून्य में जोड़ने, एक शून्य हटा दूसरी बिठाने से संख्या नहीं बढ़ती

बादल सरोज संयुक्त सचिव अखिल भारतीय किसान सभा सम्पादक लोकजतन

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Silger, Hasdeo Aranya and Tikait; interrelationship of attacks

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छत्तीसगढ़ के हसदेव का अरण्य (Hasdeo Aranya of Chhattisgarh) और कर्नाटक के बेंगलुरु का गांधी भवन एक दूसरे से काफी दूर है, दोनों की ज्योग्राफी एकदम अलग है, मगर 30 मई के दिन यह जिन खबरों के लिए चर्चा में आया उनकी क्रोनोलॉजी और केमिस्ट्री एक सी है।

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जैव-विविधता से भरे हसदेव जंगल पर कॉर्पोरेट्स की निगाह है

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30 मई की सुबह तड़के तीन बजे बंदूकों और बाकी असलहों के साथ भारी पुलिसबल हसदेव के जंगलों में पहुँच गया ताकि जनांदोलन तथा इस अरण्य में रहने वाले आदिवासियों के चिपको आंदोलन (Chipko Movement of Tribals) की वजह से रुकी जंगल के पेड़ों की कटाई अपनी देखरेख में कराई जा सके।

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कई वर्षों से इस अत्यंत घने और जैव-विविधता से भरे जंगल पर कार्पोरेट्स की निगाह है। हसदेव जंगल छत्तीसगढ़ के उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा और सूरजपुर जिले के बीच में स्थित है। लगभग एक लाख सत्तर हजार हेक्टेयर में फैला हसदेव जंगल जैव विविधता के मामले में भी अनोखा है।

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छत्तीसगढ़ का फेफड़ा

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वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की साल 2021 की रिपोर्ट (Wildlife Institute of India report for the year 2021) के मुताबिक, हसदेव अरण्य गोंड, लोहार और ओरांव जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है। यहां 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं। इनमें से 18 वनस्पति विलुप्त होने की आशंका से घिरी हैं । इस अरण्य को अंधाधुंध औद्योगीकरण के चलते वायु प्रदूषण से पीड़ित छत्तीसगढ़ का फेफड़ा (Lung of Chhattisgarh) कहा जाता है। जनांदोलन और इस अरण्य की उपयोगिता के चलते यूपीए सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन पर्यावरण मंत्री श्री जयराम रमेश ने हसदेव में "नो गो" के आदेश दिए थे और हसदेव अरण्य में किसी भी तरह की छेड़छाड़ को प्रतिबंधित किया था। मगर पिछले साल अक्टूबर में मोदी सरकार के केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक में माइनिंग के लिए अंतिम स्वीकृति (Final approval for mining in Parsa coal block of Hasdeo Aranya) दे दी थी। केंद्र की मंजूरी के बाद इस साल अप्रैल में छत्तीसगढ़ सरकार ने भी यहां माइनिंग को हरी झंडी दे दी।

अडानी की कम्पनी के कब्जे वाला परसा कोल ब्लॉक कुल करीब 1,250 हेक्टेयर क्षेत्रफल में है जिसमें 841.5 हेक्टेयर वन भूमि है जहां पेड़ काटे जा रहे हैं। इसके लिए ग्रामसभाओं की अनुमति बाध्यकारी है, वह भी नहीं ली गयी और सुप्रीम और हाई अदालतों को दिखाने के लिए कागजों पर फर्जीवाड़ा करके अनुमति का फर्जी प्रस्ताव बना लिया गया।

अडानी के इस प्रोजेक्ट के लिए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक में 95,000 पेड़ कटेंगे। हालांकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि कटने वाले पेड़ों की असल संख्या दो लाख से अधिक होगी और यह सिर्फ शुरुआत होगी, क्योंकि बात निकलेगी तो सिर्फ इस 841 हेक्टेयर तक नहीं रहेगी - पूरे पौने दो लाख हैक्टेयर तक जाएगी।

अडानी के लिए प्रकृति का सत्यानाश करने की इस साजिश के खिलाफ पेड़ों से चिपकी आदिवासी जनता को सबक सिखाने ही पहुंची थी खाकी वर्दी।

इससे ठीक 13 दिन पहले इसी छत्तीसगढ़ के बीजापुर के नजदीक सिलगेर में कोई 20 हजार आदिवासी स्त्री-पुरुष इकट्ठा हुए थे। पहाड़ियों पर दूर दूर बसे, किसी भी तरह के आधुनिक परिवहन से वंचित छोटे गाँवों के हिसाब से यह संख्या बहुत ज्यादा है ।

सिलगेर छत्तीसगढ़ के बस्तर के सुकमा जिले में है। इस धरने पर पिछले साल 17 मई 2021 को चली पुलिस सीआरपीएफ की गोली में चार युवा उयका पांडु, कोवासी वागा, उरसा भीमा, मिडियम मासा, गर्भवती युवती पूनेम सोमली और उसका गर्भस्थ शिशु शहीद हुए थे। यह सभा 17 मई को उनकी स्मृति में शहीद स्तंभ स्थापित किये जाने के अवसर पर हुयी थी। एक साल गुजर जाने के बाद भी इन आदिवासियों की ह्त्या की अब तक ढंग से एफआईआर तक नहीं लिखी गयी है। पिछली वर्ष ये आदिवासी यह मांग करने के लिए इकट्ठा हुए थे कि हर ढाई किलोमीटर पर सीआरपीएफ कैम्प - पुलिस छावनियां और थानों का जाल बिछाने के बजाय हर ढाई किलोमीटर पर स्कूल और अस्पताल बनाने चाहिए, ताकि मलेरिया और कुपोषण जैसी टाली जा सकने वाली हजारों मौतों से आदिवासियों को बचाया जा सके। उनकी संताने पढ़ लिख सकें।

बस्तर की खनिज और वन सम्पदा का निर्दयता से दोहन करने और बस्तर को आदिवासी और परम्परागत वनवासी विहीन बनाने के लिए फोर-सिक्स लेन हाईवे की बजाय उनके गाँवों तक छोटी सड़कें बिछाई जाएँ। मगर बजाय उनकी सुनने के बिना किसी वजह के सीआरपीएफ आयी और उसने चार आदिवासी मार डाले।

छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के जमाने में भी यही होता था। हाल में आयी कुछ जांच आयोगों की रिपोर्ट ने उजागर किया है कि किस तरह बस्तर को वहां रहने वालों के यातनागृह और लोकतंत्र, मानवाधिकार और संविधान की कब्रगाह में बदलकर रख दिया गया है।

भाजपा राज में 28 जून 2012 की रात सुरक्षाबलों ने बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा गांव में 17 आदिवासी ग्रामीणों को माओवादी बताकर गोलियों से भून डाला था। इस दौरान गांव वालों की ओर से किसी प्रकार की गोलीबारी नहीं की गई थी।

ग्रामीणों के मुताबिक मारे गए लोग नक्सली नहीं थे, वे अपना पारंपरिक त्योहार बीज पंडुम मना रहे थे। इन मौतों को लेकर तत्कालीन राज्य सरकार ने एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था। इस एक सदस्यीय जांच आयोग के अध्यक्ष जस्टिस विजय कुमार अग्रवाल बनाए गए।

करीब सात साल की सुनवाई के बाद 17 अक्टूबर को यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी गई थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक भी मारे गए लोग नक्सली नहीं बेकसूर ग्रामीण आदिवासी थे। उन्हें पुलिस बलों ने बिना किसी उकसावे या वजह के यूं ही मार डाला था।

इसी तरह का हत्याकांड 17-18 मई 2013 की रात में बीजापुर के एडसमेटा गांव में हुआ। यहां भी ग्रामीण आदिवासी त्यौहार बीज पंडुम मनाने के लिए जुटे हुए थे। तभी नक्सल ऑपरेशन में निकले जवानों ने ग्रामीणों को नक्सली समझ कर गोलीबारी कर दी थी। इस गोलीबारी में चार नाबालिग समेत कुल आठ लोग मारे गए थे। इसकी जांच के लिए बनी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीके अग्रवाल की कमेटी ने इस हास्यास्पद तर्क कि यह घटना "सुरक्षा बलों द्वारा ग्राम एडसमेटा के समीप आग के इर्द—गिर्द एकत्रित हुए व्यक्तियों को देखने के बाद उन्हें संभवत: गलती से नक्सली संगठन के सदस्य समझकर घबराहट की प्रतिक्रिया के कारण गोलियां चलाने से हुई है।'' यह माना कि "मारे गए सभी लोग ग्रामीण थे। उनका नक्सलियों से कोई कनेक्शन नहीं था।" कार्यवाही इस रिपोर्ट पर भी नहीं हुई।  .

हसदेव में अडानी के लिए पुलिस पहुंचाकर हुक्मरानों ने अब इस इलाके को नया बस्तर बनाने की मुहिम छेड़ दी है। यह तब है जब ठीक 6 दिन पहले कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में एक संवाद के दौरान सिलगेर और हसदेव के अडाणीकरण पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने अपनी 2015 में कही बात दोहराई थी और बातचीत के जरिये रास्ता निकालने की बात कही थी।

इसी दिन - 30 मई को - बैंगलोर में किसान आंदोलन के वरिष्ठ नेता राकेश टिकैत पर हुआ हमला इसी निरंतरता में देखा जाना चाहिए।

गांधी भवन में प्रेस वार्ता के दौरान किसान नेता श्री राकेश टिकैत पर एक व्यक्ति ने पूर्व नियोजित तरीके के उठकर पहले टीवी चैनल का माइक राकेश टिकैत के मुंह पर मारा और फिर दूसरे व्यक्ति ने आकर उन पर स्याही फेंकी। हमलावर "जय मोदी" और "मोदी, मोदी" के नारे लगा रहे थे। अब तक मुख्य आरोपी भरत शेट्टी की शिनाख्त हो चुकी है और वह पुलिस हिरासत में है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा, भाजपा के राज्य उपाध्यक्ष, वर्तमान गृह मंत्री और सिंचाई मंत्री के साथ फोटो से अब यह स्पष्ट हो गया है कि यह हमला भाजपा द्वारा प्रायोजित था। हमले की वजह किसान आंदोलन के प्रति यह खीज है कि उसने देश के किसानो को जगा दिया और मोदी-अडानी-अम्बानी राज की खेती और किसानी के कारपोरेटीकरण के मंसूबे को कामयाब नहीं होने दिया।

कुल मिलाकर यह कि पूरा शासक वर्ग अपने अधिकृत फौजफाटे और गुंडा गिरोहों के साथ मिलकर हर उस आवाज को कुचल देना चाहता है जो देश, उसकी जनता और प्राकृतिक सम्पदा की लूट के खिलाफ बोलने का साहस रखते हैं।

मगर हसदेव अरण्य में तड़के तीन बजे पुलिस की अगुआई में जंगल कटाई दस्ते के पहुँचने के एक घंटे के अंदर हजारों नागरिकों के इकट्ठा हो जाने और सूरज उगने तक किसान सभा सहित अनेक संगठनों के कार्यकर्ताओं के मौके पर पहुँचने से साफ़ है कि हसदेव और सिलगेर से लेकर मध्यप्रदेश में हीरों की खदान के लिए उजाड़े जा रहे बक्स्वाहा के जंगल सहित ऐसी हर लूट के खिलाफ जनता सजग है - मुकाबले पर आमादा है। भले "ये गर्दनों के साथ हैं और वे आरियों के साथ" - मगर मुकाबला जारी है। एक हमला फिलहाल रोक दिया अब अगले की तैयारी है।

बादल सरोज

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