Smog Tower: Problem solving or problem deflection tool
बीते महीने के अंत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण (Air pollution in the National Capital Region) पर सुनवाई करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्मॉग टॉवर न लगने पर कड़ी नाराजगी जताई (The Supreme Court expressed its displeasure at the non-installation of the Smog Tower) थी। शीर्ष अदालत ने पूछा था कि उसके आदेश के बावजूद अभी तक टॉवर क्यों नहीं लगे।
शीर्ष अदालत की फटकार पर सरकार की तरफ से अदालत को सही तकनीकी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई बल्कि मीडिया में जो खबरें आईं उससे यही प्रतीत होता है कि सरकार वायु प्रदूषण की समस्या की असल जड़ (The real root cause of air pollution problem) से अदालत और जनता का ध्यान हटाना कर स्मॉग टॉवर में उलझाना चाहती है।
आइए पहले तो ये जानें स्मॉग टावर होता क्या है (What is a smog tower), जिसको लगाने के आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिए।
सरल शब्दों में समझें तो स्मॉग टॉवर एक तरह से बहुत बड़ा एयर प्यूरीफायर (air purifiers) होता है, जो वैक्यूम क्लीनर की तरह धूल कणों को हवा से खींच लेता है। आमतौर पर स्मॉग टॉवर में एयर फिल्टर की कई परतें फिट होती हैं, जो प्रदूषित हवा, जो उनके माध्यम से गुजरती है, को साफ करती है। विशेषज्ञों के मुताबिक एक स्मॉग टॉवर 50 मीटर की परिधि की वायु को साफ कर सकता है। स्मॉग टॉवर का आईडिया (Smog tower idea) मूलतः चीन से आया है। वर्षों से वायु प्रदूषण से जूझ रहे चीन के पास अपनी राजधानी बीजिंग में और उत्तरी शहर शीआन में दो स्मॉग टॉवर हैं।
पूर्व क्रिकेटर और पूर्वी दिल्ली के भाजपा सांसद गौतम गंभीर ने इस वर्ष 3 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी के लाजपत नगर में एक प्रोटोटाइप एयर प्यूरीफायर का उद्घाटन किया। उन्होंने ट्वीट किया,
“मेरा नाम गौतम गंभीर है। मैं बात करने में विश्वास नहीं करता, मैं जीवन को बदलने में विश्वास करता हूँ! सतत समर्थन के लिए माननीय गृह मंत्री अमित शाह जी को धन्यवाद।”
My Name is Gautam Gambhir. I don’t believe in talking, I believe in changing lives!
Thank Hon’ble HM @AmitShah Ji for continuous support pic.twitter.com/8HAws1EDic— Gautam Gambhir (@GautamGambhir) January 3, 2020
अब इन स्मॉग टॉवर को लेकर विवाद उठ रहे हैं। इसी महीने सर्वोच्च न्यायालय ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए दिल्ली में स्मॉग टॉवर स्थापित करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की एक याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि इससे चीनी कंपनियों को पैसा मिलेगा और यह साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि स्मॉग टॉवर प्रदूषण को नियंत्रित कर सकता है।
इसके इतर दक्षिण एशिया के शीर्ष गैर-लाभकारी स्वतंत्र नीति अनुसंधान संस्थानों में से एक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (Council on Energy, Environment and Water- CEEW) के अनुसार राजधानी दिल्ली की हवा को साफ करने के लिए कम से कम लगभग पौने दो करोड़ रूपये की लागत वाले पच्चीस लाख स्मॉग टावरों की जरूरत होगी।
दरअसल सारा विवाद इसी को लेकर है कि स्मॉग टॉवर वायु प्रदूषण की समस्या का हल नहीं है और यह प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारकों पर कोई प्रभाव नहीं डालता है।
असल बात यह है कि जब तक प्रदूषण फैलाने वाले स्रोत बंद नहीं किए जाएंगे, तब तक स्मॉग टॉवर जैसे टोटके सिर्फ जन-धन की हानि करते रहेंगे। वायु प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोत कल कारखाने और थर्मल पॉवर प्लांट हैं। प्रदूषण उत्पन्न करने वाले इन असल स्रोतों पर कोई आंच नहीं आए इसी लिए कभी पराली जलाने को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है और कभी कोई और तर्क दे दिए जाते हैं।

पर्यावरण मंत्रालय ने दिसंबर 2015 में बिजली संयंत्रों के लिए नए उत्सर्जन नियमों की पुष्टि की थी। उन्हें लागू करने की मूल समय सीमा पहले दिसंबर 2017 थी, लेकिन फिर दिसंबर 2019 तक आगे धकेल दी गई और बाद में इसे दिसंबर 2022 तक कंपित कार्यान्वयन में बदल दिया गया।
इधर इस वर्ष के शुरू में आई एक खबर पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से मीडिया में रिपोर्ट्स प्रकाशित हुई थीं कि भारत के आधे से अधिक कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों और 94% कोयला-संचालित इकाइयों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए रेट्रोफिट उपकरण का आदेश दिया गया था। लेकिन नई दिल्ली के आसपास कोयले से चलने वाले उद्योग भारतीय अधिकारियों की इस चेतावनी कि अगर उन्होंने साल के अंत तक सल्फर ऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करने के लिए उपकरण नहीं लगाए तो इन उद्योगों को बंद कर दिया जाएगा, के बावजूद ये संयंत्र बिना उपकरणों के चल रहे थे।
एक तरफ तो दिल्ली में स्मॉग टॉवर लगाकर वायु प्रदूषण पर लगाम कसने के टोटके किए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार कोयला क्षेत्र को निजी खनन के लिए खोलकर देश की हवा को और अधिक जहरीला बनाने के इंतजाम कर रही है।
जरूरत इस बात की थी कि जो भी याचिकाकर्ता सर्वोच्च न्यायालय में यह दलील देने गए थे कि स्मॉग टॉवर से चीन की इकॉनॉमी को पायदा होगा, वह शीर्ष अदालत के सामने सही तर्क प्रस्तुत करते कि स्मॉग टॉवर समस्या का समाधान नहीं है और यह सिर्फ जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई की बर्बादी है, इसलिए इससे बहुत कम खर्च पर कोयला-संचालित इकाइयों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए रेट्रोफिट उपकरण लगाने पर सख्ती की जाए।
अमलेन्दु उपाध्याय
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