Some people in history are tragedies in themselves
तुम झोला उठा ही लो।
तुमसे न बीमारी रुक रही है न देश चल रहा है। मजदूरों की अंतहीन कतारें और उनकी चीत्कारें तुम्हारे असमर्थ और अदूरदर्शी होने का प्रमाणपत्र बांटती हुई बढ़ी चली जा रही हैं। कुछ को राशन की किटों पर ही घरों में कैद किया है तो कुछ को वह भी नसीब नहीं हुआ। अब तो ईंधन और अन्य जरूरी चीजों से वंचित गरीब की आत्महत्या का पहला केस भी आ गया। इलाज के अभाव से मरे लोग, हादसों में मरे लोग, भूख से मरे लोग, पुलिस जुल्म से घायल हुए और बस्तियों की कैद से पागल हुए लोग तुम्हारे इस प्रमाणपत्र पर मुहर लगा रहे हैं। जिस तरह कल तुमने घोषणा कराई है कि हर क्षेत्र में देशी विदेशी कम्पनियों को मौका दोगे, उससे जाहिर हो गया है कि ‘आपदा को अवसर’ कह कर तुम किन्हें ललचा रहे थे। भारतभूमि को गिद्धों के हवाले करना था सो कर दिया तुमने। अब जाओ भी तुम।
पांच किस्तों में निर्मला सीतारमण ने बता दिया कि आपदा में अवसर से मोदी जी का आशय था – वे देशी और विदेशी निजी कंपनियों को देश के गहने-कपड़े ही नहीं बल्कि जिस्म और रूह तक लूट लेने का अवसर देने जा रहे हैं। हर क्षेत्र में निजीकरण का कल का एलान देखिये।

हर फैसला पट्टेबाज चिलमचियों से भी गया गुजरा। इस साल मार्च 24 की शाम का एलान भी नोटबन्दी की तरह अविचारित। हीरोइज्म की बीमारी और मूर्खता की निशानी। इतिहास में कुछ लोग खुद में त्रासदी होते हैं।
जनता कर्फ्यू से लॉक डाउन-4 तक के सफर ने भी यदि आपकी मध्यवर्गीय खुमारी और फैंसी आइडियाज को आइना नहीं दिखाया है तो आप वाकई लाइलाज हैं । आप दिमागी तौर पर आदमखोर निजाम के शिकारी कुत्तों के दल में शामिल हो चुके हो।
(मधुवन दत्त चतुर्वेदी एडवोकेट की एफबी टिप्पणियों के समुच्चय के संपादित अंश)
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