नई दिल्ली, 06 जनवरी 2020. रविवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्रों और शिक्षकों पर कथित तौर पर एबीवीपी से जुड़े गुंडों के हमले को लेकर वाद-विवाद का दौर जारी है। इस बीच बता दें कि भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश के पुनर्एकीकरण (Re-integration of India-Pakistan-Bangladesh) के प्रबल समर्थक सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू (Justice Markandey Katju, retired judge of the Supreme Court) ने तीन दिन पहले ही यह आशंका जाहिर की थी कि “खूनी रविवार” आ रहा है। देखे हस्तक्षेप पर खबर – “एंटी सीएए आंदोलन : जस्टिस काटजू ने जताई आशंका खूनी रविवार आ रहा है”
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उन्होंने अपने सत्यापित एफबी पेज पर लिखा था,
“खूनी रविवार आ रहा है
मुझे डर है कि भारत में काफी समय से चल रहा सीएए विरोधी आंदोलन 22 जनवरी, 1905 को सेंट पीटर्सबर्ग, रूस में खूनी रविवार की तरह खत्म हो जाएगा। उस दिन फादर गैपॉन (जो बाद में एक पुलिस जासूस के रूप में सामने आया था) के नेतृत्व में एक भीड़ आई थी, जो ज़ार को सानुरोध याचना पेश करने के लिए ज़ार के विंटर पैलेस में मार्च कर रही थी, पर इम्पीरियल प्रीब्रोज़ेंसियल गार्ड्स द्वारा फायर किया गया, जिसमें सैकड़ों प्रदर्शनकारी मारे गए।
मुझे डर है कि इस भोले भाले आन्दोलनकारियों में से कुछ का नेतृत्व हमारे अपने ही फादर गैपॉन (Father Gapon) द्वारा संहार के लिए किया जा रहा है।
हरि ओम”
हालांकि जस्टिस काटजू को आशंका सीएए विरोधी आंदोलन को लेकर थी, लेकिन यह आशंका जेएनयू के संबंध में सच साबित हुई और फादर गैपॉन (नकाबपोश हमलावर) ने जेएनयू में छात्रों पर हमला कर दिया।
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जेएनयू हिंसा के बाद आज पुनः जस्टिस काटजू ने अपने एफबी पेज पर फिर एक टिप्पणी करके भारत में विकृत होते लोकतंत्र की तरफ ध्यान आकृष्ट किया है। उन्होंने लिखा,
“खून और लोहा.
1862 में महान जर्मन नेता बिस्मार्क ने प्रशिया लैंडटैग को दिए अपने भाषण में कहा, "दिन के बड़े मुद्दों को वोटों और बयानबाजी से नहीं बल्कि रक्त और लोहे (ब्लुट अन्ड ईसेन) द्वारा तय किया जाएगा।"
हाल ही में JNU में लोहे की छड़ों और लाठियों से लैस लगभग 50 नकाबपोश लोगों ने कैंपस में छात्रों, शिक्षकों आदि पर हमला किया और कई का खून बहा।
ये बदमाश कौन थे? वामपंथी ABVP को दोष देते हैं, जबकि ABVP वामपंथियों को दोषी ठहराते हैं। सच्चाई जो भी हो, एक बात स्पष्ट प्रतीत होती है: भारत में बिस्मार्क की भविष्यवाणी अब सच हो रही है।“
कौन हैं मार्कंडेय काटजू?
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अपने ऐतिहासिक फैसलों के लिए प्रसिद्ध रहे जस्टिस मार्कंडेय काटजू 2011 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए उसके बाद वह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन रहे। आजकल वह अमेरिका प्रवास पर कैलीफोर्निया में समय व्यतीत कर रहे हैं और सोशल मीडिया पर खासे सक्रिय हैं और भारत की समस्याओं पर खुलकर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।