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Discrimination victim depression!
आजकल डिप्रेशन शब्द काफी प्रचलन में है। हर कोई मेंटल हेल्थ (mental health) की बात कर रहा है। तरह-तरह की थेरेपी भी मार्केट में उपलब्ध है। इसका पूरा श्रेय कोरोना को देना गलत नहीं होगा। डिप्रेशन को लेकर हर किसी के अपने अनुभव हो सकते हैं।
खैर, यहाँ मैं आपको डिप्रेशन की परिभाषा (definition of depression) नहीं, उसमें होने वाले भेदभाव से रूबरू कराऊँगी।
चलिए, अब सीधे मुद्दे पर आती हूँ। अक्सर बड़े-बड़े सुपरस्टार डिप्रेशन के शिकार होते हैं और उनमें से अधिकांश दुनिया को अलविदा कह देते हैं। और फिर अगले दिन अखबार की हेडलाइन होती है- "डिप्रेशन की वजह से फलाने स्टार ने दी अपनी जान"। फिर क्या? ये खबर पूरी तरह से जनता के दिलों दिमाग में बस जाती है।
चाय की तफ़री से लेकर सोशल मीडिया तक हर कोई यही कहता हुआ नजर आता है कि आखिर उसको क्या तकलीफ़ थी? उसने क्यों नहीं की किसी से बात? फलाना...ढिमकाना...! हमदर्दी का सैलाब उमड़ने लगता है। और तो और लोग एक दूसरे से ऐसे बात करते हैं, जैसे मानो उनसे बड़ा मेंटल हेल्थ विशेषज्ञ दूसरा कोई हो ही नहीं सकता।
चलिए, अब सिक्के के दूसरे पहलू की बात करते हैं। यानि आम जिन्दगी की।
जी हाँ, आम ज़िन्दगी बोले, तो आम जनता। जब कोई आम जनता यानि मैं, आप या हम में से कोई भी डिप्रेशन का शिकार होता है, तो हमदर्दी तो छोड़िए जनाब लोग पीछा छुड़ाने लगते हैं। आपके द्वारा की गई क्रिया प्रतिक्रिया की हँसी उड़ाई जाती है। इतना ही नहीं, सु-प्रसिद्ध 'चार लोग' आपको पागल कहने से भी बाज नहीं आते हैं।
है न गज़ब ? जिस इंसान के साथ हम रोजाना रूबरू होते हैं, वो इंसान डिप्रेशन में जाए या कहीं भी जाए, उसके लिए हमदर्दी तो छोड़िए "गेट वेल सून" भी नहीं होता है। वहीं, एक सुपरस्टार जिससे हम कभी प्रत्यक्ष रूप से मिले नहीं है लेकिन वो अगर डिप्रेशन में चला जाए तो मानो हम पर ही दुःखों का पहाड़ टूट गया हो।
मेंटल हेल्थ की समस्या कैसे दूर हो?
कहने का आशय यह है कि मेंटल हेल्थ की समस्या सिर्फ सोशल मीडिया पर सुपरस्टार से हमदर्दी जता कर ठीक नहीं होगी, बल्कि हमें अपने आसपास के लोगों के लिए खड़ा होना पड़ेगा। उनकी मदद करनी पड़ेगी, उन्हें डिप्रेशन जैसी बीमारी से उबारना होगा, तब जाकर सही मायनों में हम "हैप्पी मेंटल हेल्थ" दिवस मना पाएँगे।
श्रेया पाण्डेय
गाजियाबाद
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)