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विश्व एड्स दिवस (1 दिसम्बर) पर विशेष Special on World AIDS Day in Hindi (1 December)
एड्स को लेकर स्थापित तथ्य यही है कि एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस - Human immunodeficiency virus) के एक बार शरीर में प्रवेश कर जाने के बाद इसे किसी भी तरीके से बाहर निकालना असंभव है और यही वायरस धीरे-धीरे एड्स में परिवर्तित हो जाता है।
AIDS is not really a disease in itself
हालांकि एड्स वास्तव में अपने आप में कोई बीमारी नहीं है बल्कि एचआईवी के संक्रमण के बाद जब रोगी व्यक्ति छोटी-छोटी बीमारियों से लड़ने की शारीरिक क्षमता भी खो देता है और शारीरिक शक्ति का विनाश हो जाता है, तब जो भयावह स्थिति पनपती है, वही एड्स है। एचआईवी संक्रमण को एड्स की स्थिति तक पहुंचने में 10-12 साल और कभी-कभी तो इससे भी ज्यादा समय लग सकता है।
यह बीमारी कितनी भयावह है, यह इसी से समझा जा सकता है कि एड्स की वजह से दुनियाभर में हर साल लाखों लोग काल का ग्रास बन जाते हैं। हालांकि विश्वभर में एड्स के खात्मे के लिए निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं किन्तु अभी तक किसी ऐसे इलाज की खोज नहीं हो सकी है, जिससे एड्स के पूर्ण रूप से सफल इलाज का दावा किया जा सके।
यही कारण है कि एड्स तथा एचआईवी के बारे में हर व्यक्ति को पर्याप्त जानकारी होना अनिवार्य माना जाता है क्योंकि अभी तक केवल जन जागरूकता के जरिये ही इस बीमारी से बचा और बचाया जा सकता है।
विश्व एड्स दिवस का महत्व Importance of World AIDS Day
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ऐसे में प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले विश्व एड्स दिवस के महत्व को आसानी से समझा जा सकता है, जो सन् 1988 के बाद से प्रतिवर्ष 1 दिसम्बर को मनाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य (Objective of World AIDS Day) एचआईवी संक्रमण के प्रसार की वजह से ‘एड्स’ की महामारी के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।
यह दिवस मनाए जाने की कल्पना पहली बार अगस्त 1987 में थॉमस नेट्टर और जेम्स डब्ल्यू बन्न द्वारा की गई थी। ये दोनों विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) जेनेवा तथा स्विट्जरलैंड के ‘एड्स ग्लोबल कार्यक्रम’ (AIDS Global Program) के लिए सार्वजनिक सूचना अधिकारी थे, जिन्होंने ‘एड्स दिवस’ का अपना विचार ‘एड्स ग्लोबल कार्यक्रम’ के निदेशक डा. जॉननाथन मन्न के साथ साझा किया।
डा. मन्न द्वारा दोनों के उस विचार को स्वीकृति दिए जाने के बाद 1 दिसम्बर 1988 से इसी दिन ‘विश्व एड्स दिवस’ मनाए जाने का निर्णय लिया गया।
सन् 2007 के बाद से विश्व एड्स दिवस को अमेरिका के ‘व्हाइट हाउस’ द्वारा लाल रंग के एड्स रिबन का एक प्रतिष्ठित प्रतीक देकर शुरू किया गया। एचआईवी-एड्स पर ‘यूएन एड्स’ के नाम से जाना जाने वाला संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम सन् 1996 में प्रभाव में आया और उसके बाद ही दुनियाभर में इसे बढ़ावा देना शुरू किया गया। एक दिन के बजाय सालभर एड्स कार्यक्रमों पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए इस कार्यक्रम की शुरूआत बेहतर संचार, इस बीमारी की रोकथाम और रोग के प्रति जागरूकता पैदा करने उद्देश्य से की गई।
सन् 1981 में अमेरिका में लॉस एंजिल्स के अस्पतालों में न्यूमोसिस्टिस न्यूमोनिया, कपोसी सार्कोमा तथा चमड़ी रोग जैसी असाधारण बीमारी का इलाज करा रहे पांच समलैंगिक युवकों में एड्स के लक्षण पहली बार मिले थे। उसके बाद ही यह बीमारी दुनिया भर में तेजी से फैलती गई। भारत में भी बीते वर्षों में एड्स के बहुत सारे मामले सामने आए हैं।
1986 में भारत में एड्स का पहला रोगी तमिलनाडु के वेल्लूर में मिला था। In 1986, the first AIDS patient in India was found in Vellore, Tamil Nadu.
भारत में एचआईवी के मामलों में लगातार होती वृद्धि के मद्देनजर देश में एचआईवी तथा एड्स की रोकथाम व नियंत्रण संबंधी नीतियां तैयार करने और उनका कार्यान्वयन करने के लिए भारत सरकार ने सन् 1992 में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की स्थापना (Establishment of National AIDS Control Organization) की थी।
यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में एड्स पीडि़त सर्वाधिक संख्या किशोरों की है, जिनमें से दस लाख से भी अधिक किशोर दुनिया के छह देशों दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, केन्या, मोजांबिक, तंजानिया तथा भारत में हैं।
अगर एड्स के कारणों (cause of AIDS) पर नजर डालें तो मानव शरीर में एचआईवी का वायरस फैलने का मुख्य कारण हालांकि असुरक्षित सेक्स तथा अधिक पार्टनरों के साथ शारीरिक संबंध बनाना ही है लेकिन कई बार कुछ अन्य कारण भी एचआईवी संक्रमण के लिए जिम्मेदार होते हैं। शारीरिक संबंधों द्वारा 70-80 फीसदी, संक्रमित इंजेक्शन या सुईयों द्वारा 5-10 फीसदी, संक्रमित रक्त उत्पादों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया के जरिये 3-5 फीसदी तथा गर्भवती मां के जरिये बच्चे को 5-10 फीसदी तक एचआईवी संक्रमण की संभावना रहती है।
Symptoms of hiv infection
बात करें एचआईवी संक्रमण के बाद सामने आने वाले लक्षणों की तो शरीर में इस खतरनाक वायरस के प्रवेश कर जाने के 15-20 दिनों बाद तक ऐसे व्यक्ति को बुखार, गले में सूजन, सिरदर्द व शरीर दर्द, शरीर पर छोटे-छोटे लाल रंग के धब्बे, शरीर में सामान्य-सी खुजली, ठंड लगना, रात के दौरान पसीना आना, बढ़ी हुई ग्रंथियां, वजन घटना, थकान, दुर्बलता, ज्यादा दस्त इत्यादि जैसे कुछ सामान्य लक्षण देखने को मिलते हैं। इस प्रकार के लक्षणों को प्रायः कोई सामान्य संक्रमण समझकर नजरअंदाज कर दिया जाता है और आमतौर पर एचआईवी टेस्ट (HIV test) करवाने के बजाय बहुत से चिकित्सक भी सामान्य फ्लू या बुखार की ही दवाई मरीज को दे देते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि इस प्रकार के लक्षण 10-12 दिनों से ज्यादा समय तक लगातार बरकरार रहने पर अगर पहले ही चरण में परीक्षण के जरिये एचआईवी संक्रमण का पता लग जाए तो इस वायरस को आगे बढ़ने और भविष्य में एड्स के रूप में परिवर्तित हो जाने से रोका जा सकता है।
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हालांकि पिछले कई वर्षों से एड्स और एचआईवी को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन फिर भी विड़म्बना ही है कि बहुत से लोग इसे आज भी छूआछूत से फैलने वाला संक्रामक रोग मानते हैं। एड्स तथा एचआईवी के संबंध में यह जान लेना बेहद जरूरी है कि इस संक्रमण के शिकार व्यक्ति के साथ हाथ मिलाने, उसके साथ भोजन करने, स्नान करने या उसके पसीने के सम्पर्क में आने से यह रोग नहीं फैलता। इसलिए एड्स के प्रति जागरूकता पैदा किए जाने की आवश्यकता तो है ही, समाज में ऐसे मरीजों के प्रति हमदर्दी और प्यार का भाव होना तथा ऐसे रोगियों का हौसला बढ़ाए जाने की भी जरूरत है। ऐसे बहुत से मामलों में आज भी जब यह देखा जाता है कि इस तरह के मरीज न केवल अपने आस-पड़ोस के लोगों के बल्कि अपने ही परिजनों के भेदभाव का भी शिकार होते हैं तो चिंता की स्थिति उत्पन्न होती है। इसलिए इस बीमारी का कारगर इलाज खोजे जाने के प्रयासों के साथ-साथ ऐसे मरीजों के प्रति समाज और परिजनों की सोच को बदलने के लिए अपेक्षित कदम उठाए जाने की भी सख्त जरूरत है।
Anti-retroviral treatment method
सुखद तथ्य यह है कि एंटी-रेट्रोवायरल उपचार पद्धति को अपनाए जाने के बाद एड्स से जुड़ी मौतों का आंकड़ा साल दर साल कम होने लगा है। इसलिए लोगों को इस दिशा में जागरूक किए जाने की भी जरूरत है कि एड्स भले ही अब तक एक लाइलाज बीमारी ही है लेकिन फिर भी एड्स पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है और एचआईवी संक्रमित हो जाने का अर्थ बहुत जल्द मृत्यु कदापि नहीं है बल्कि उचित दवाओं और निरन्तर चिकित्सीय परामर्श से ऐसा मरीज काफी लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकता है।
- योगेश कुमार गोयल
(लेखक योगेश कुमार गोयल वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)