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हंसी सबसे अच्छी दवा है : मुनव्वर फारूकी

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Guest writer
04 Dec 2021
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बंधुत्व को बढ़ावा : अदालतें आगे आईं, सुदर्शन टीवी पर नफरत फैलाने वाले कार्यक्रम पर रोक

Ram Puniyani was a professor in biomedical engineering at the Indian Institute of Technology Bombay and took voluntary retirement in December 2004 to work full time for communal harmony in India. He is involved in human rights activities for the last three decades. He is associated with various secular and democratic initiatives like All India Secular Forum, Center for Study of Society and Secularism and ANHAD

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स्टेंडअप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी (Standup Comedian Munawwar Farooqui) बेंगलुरू में एक परोपकारी संस्था के लिए अपना शो करने वाले थे. पूरे टिकट बिक चुके थे. फिर आयोजकों को यह सूचना दी गई कि उन्हें कार्यक्रम रद्द करना होगा. और कार्यक्रम रद्द हुआ. पुलिस ने इसका कारण यह बताया कि फारूकी एक विवादास्पद व्यक्ति हैं और उनके शो से कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है.

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इसके पहले भी फारूकी के कई कार्यक्रम रद्द हो चुके हैं. उन्हें एक महीने जेल में भी काटने पड़े थे क्योंकि सरकार को यह आशंका थी कि वे अपने कार्यक्रम में जो बातें कहेंगे उनसे हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी.

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और नफरत जीत गई, आर्टिस्ट हार गया...

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बेंगलुरू का आयोजन भी इसलिए रद्द हुआ क्योंकि दक्षिणपंथी संस्थाओं का कहना था कि फारूकी हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाएंगे. अंततः फारूकी ने लोगों को हंसाने के अपने काम को अलविदा कहने का निर्णय कर लिया. अपने संदेश में उन्होंने लिखा "नफरत जीत गई, आर्टिस्ट हार गया. बहुत हुआ. अलविदा. अन्याय."

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क्या कहा था वीर दास ने

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कुछ समय पहले एक अन्य भारतीय कॉमेडियन वीर दास (Indian comedian Vir Das) ने अमरीका के केनेडी सेंटर में खचाखच भरे सभागार में एक दिल को छू लेने वाले मुद्दे पर अपनी बात रखी थी. उनका विषय था "दो भारत". जिन विरोधाभासों का उन्होंने जिक्र किया था वे कड़वे परंतु सच थे.

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उन्होंने कहा था "मैं भारत से आता हूं जहां हम लोग दिन में महिलाओं की पूजा करते हैं और रात में उनके साथ सामूहिक बलात्कार. मैं भारत से आता हूं जहां हम शाकाहारी होने पर गर्वित होते हैं परंतु सब्जियां उगाने वाले किसानों पर गाड़ियां चढ़ाते हैं."

उन्हें अब उन्हीं तत्वों द्वारा ट्रोल किया जा रहा है जिन्होंने फारूकी के शो पर विराम लगवा दिया है.

वीर दास के मामले में जिस तरह की बातें सोशल मीडिया पर कही गईं उनका एक प्रतिनिधिक नमूना, जो साम्प्रदायिक राष्ट्रवादियों की सोच को उजागर करता है, यह था - "मैं वीर दास नाम के इस आदमी में एक आतंकवादी देखता हूं. वह एक स्लीपर सेल का सदस्य है जिसने एक विदेशी भूमि पर हमारे देश के खिलाफ युद्ध किया है. उसे तुरंत यूएपीए और आतंकवाद निरोधक कानूनों के अंतर्गत गिरफ्तार कर उस पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए." संदेश लिखने वाले ने अमित शाह, मुंबई पुलिस और मुंबई पुलिस के आयुक्त को टैग किया है.

आज शासकों और उनकी विचारधारा का विरोध करना एक कठिन कार्य बन गया है. फारूकी को जेल में महीना भर बिताने और उनके कार्यक्रमों के एक के बाद एक रद्द किए जाने से इतना तो समझ में आ ही गया होगा.

भारत के स्वाधीनता संग्राम का अभिन्न हिस्सा था अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of expression was an integral part of India's freedom struggle)

एक अन्य कामिक कुणाल कामरा को भारत के एटार्नी जनरल के गुस्से का शिकार होना पड़ा. वह इसलिए क्योंकि कामरा ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अर्नब गोस्वामी को जमानत दिए जाने की आलोचना की थी. एटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा "आजकल लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों की बिना किसी डर के खुलेआम आलोचना करते हैं."

अभिव्यक्ति की आजादी भारत के स्वाधीनता संग्राम का अभिन्न हिस्सा था और इसे हमारे संविधान में भी जगह दी गई है. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ने इसी प्रजातांत्रिक अधिकार के परिप्रेक्ष्य में महान कार्टूनिस्ट शंकर की खुलकर तारीफ करते हुए उनसे कहा था कि "आप मुझे भी मत छोड़िएगा". शंकर नेहरू का बहुत सम्मान करते थे परंतु फिर भी उन्होंने नेहरू पर अनेक तीखे कार्टून बनाए.

सन् 1990 के दशक तक नेताओं और शासकों की आलोचना बहुत आम थी और कार्टूनिस्टों और कामिकों को शायद ही कभी किसी परेशानी का सामना करना पड़ता था. परंतु साम्प्रदायिक राजनीति के उभार के साथ असहिष्णुता बढ़ने लगी और अपने से विपरीत मत रखने वाले का सम्मान करने की परंपरा तिरोहित हो गई. एम. एफ. हुसैन, जिन्हें भारत का पिकासो कहा जाता है, ने रामायण पर आधारित 150 चित्र बनाए थे. संकीर्ण मनोवृत्ति वालों ने उन पर हल्ला बोल दिया. सन् 1970 के दशक में बनाई गई उनकी पेंटिगें अचानक सन् 2010 के दशक में निशाने पर आ गईं.

एक कलाकार के लिए नग्नता पवित्रता का प्रतीक होती है. कहने की आवश्यकता नहीं कि नग्नता अश्लील और निंदनीय भी हो सकती है. परंतु यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है.

हुसैन भारतीय संस्कृति और सभ्यता में डूबे हुए थे और उन्होंने भारतीय देवी-देवताओं पर असंख्य चित्र बनाए थे. उनके पीछे भी उसी तरह के लोग पड़ गए जो फारूकी और वीर दास का विरोध कर रहे हैं. अंततः हुसैन अपना काम जारी रखने के लिए भारत छोड़कर कतर चले गए.

इसके पहले सलमान रुश्दी की पुस्तक 'मिडनाईट्स चिल्ड्रन' को प्रतिबंधित किया गया था. तस्लीमा नसरीन पर भी हमले हुए थे. परंतु पिछले तीन दशकों में "भावनाओं को आहत करने" का मुद्दा बार-बार उठाया जा रहा है.

डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर, जिनकी अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति गांवों में अंधश्रद्धा के खिलाफ अभियान चला रही थी, की हत्या कर दी गई. कामरेड गोविंद पंसारे साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने का काम कर रहे थे. उनका कहना था कि शिवाजी मुस्लिम-विरोधी नहीं थे बल्कि वे अपनी प्रजा के कल्याण के लिए काम करते थे. वे यह भी कहते थे कि हेमंत करकरे भले ही 26/11 के हमले में मारे गए थे परंतु उनकी मौत के पीछे आतंकियों के अतिरिक्त कुछ अन्य व्यक्ति हो सकते हैं. 

डॉ. एम. एम. कलबुर्गी एक निर्भीक पत्रकार थे जो बसवन्ना की शिक्षाओं का प्रचार करते थे. डॉ गौरी लंकेश एक बेहतरीन पत्रकार थीं और धर्म के नाम पर राजनीति की सख्त विरोधी थीं. इन सभी तार्कितावादियों और अंधश्रद्धा व साम्प्रदायिकता के आलोचकों को असहिष्णु संगठनों और समूहों के कोप का भाजन बनना पड़ा और अंततः उन्होंने अपने विचारों की कीमत अपनी जान देकर चुकाई.

आज सरकार के किसी भी आलोचक को बिना किसी आधार के देशद्रोही कह दिया जाता है. सलमान रुश्दी से लेकर मुनव्वर फारूकी तक जिन भी लोगों को असहिष्णुता का सामना करना पड़ा उनमें से कई मुसलमान थे. फारूकी के शो का मुख्य विषय राजनीति नहीं हुआ करता था. राजनैतिक मुद्दों पर वे थोड़ा-बहुत बोलते होंगे परंतु उनके शो राजनीति पर केन्द्रित नहीं होते थे और ना ही वे लोगों को हंसाने के लिए हिन्दू देवी-देवताओं का सहारा लेते थे.

दुःखद है मुनव्वर फारूकी का अपने काम को अलविदा कहना

फारूकी का अपने काम को अलविदा कहना दुःखद है और समाज में बढ़ती असहिष्णुता का द्योतक है. इससे यह भी साफ है कि भारतीय राज्य असहिष्णुता को बनाए रखना चाहता है और साम्प्रदायिक राष्ट्रवादियों की बेतुकी मांगों के आगे झुकने में तनिक भी संकोच नहीं करता. इस तरह की स्थिति के चलते ही वैश्विक प्रजातांत्रिक सूचकांकों में भारत का  स्थान गिरता ही जा रहा है.

रोकना होगा प्रजातांत्रिक स्वतंत्रता का सिकुड़ना

प्रजातांत्रिक स्वतंत्रताएं जिस तरह से सिकुड़ रही हैं उसे रोकना जरूरी है. हम और आप वीर दास या मुनव्वर फारूकी से सहमत या असहमत हो सकते हैं परंतु उन्हें बिना धमकियों और जबरदस्ती के अपना काम करने का हक है. राज्य और समाज को उनकी अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान करना चाहिए.

- राम  पुनियानी

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

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