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लोकतंत्र की तरफ बढ़ता सूडान | Sudan moves towards democracy
सूडान (Republic of the Sudan) में पिछले तीस वर्षों से सेना की मदद से तानाशाह ओमर अल-बशीर शासन में थे, पर पिछले वर्ष बढ़ते जन-आन्दोलनों के बाद सेना ने उनको और उनकी सरकार को अपदस्थ कर दिया और वर्ष 2022 के चुनावों से पहले तक एक अंतरिम सरकार का गठन किया, जिसमें सेना के साथ ही आन्दोलनकारी भी भागीदारी निभा रहे हैं. ओमर अल-बशीर (Omar Hassan Ahmad al-Bashir is a Sudanese politician who served as the seventh President of Sudan from 1989 to 2019, when he was deposed in a coup d'état. ) के समय महिलाओं और मुस्लिमों के अतिरिक्त अन्य धर्मों के लोगों पर असंख्य पाबंदियां थीं, जिन्हें अंतरिम सरकार अब धीरे-धीरे हटा रही है.
Law of punishment for leaving the Muslim religion
हाल में ही सरकार ने मुस्लिम धर्म को छोड़ने पर सजा के क़ानून को ख़त्म किया है. इस क़ानून के तहत मुस्लिम धर्म छोड़ने पर मौत की सजा का प्रावधान (Provision of death penalty for leaving Muslim religion) था. कुछ वर्ष पहले मरियम इब्राहीम को मौत की सजा (Mariam Yahia Ibrahim Ishag sentenced to death) सुनाये जाने पर पूरे दुनिया में इसकी भर्त्सना की गई थी, और अंतरराष्ट्रीय दबाव में 2018 में मरियम को आजाद करना पड़ा था.
मरियम के पिता सूडान के मुस्लिम थे, जबकि माँ क्रिश्चियन थीं. मरियम ने अपने पिता का धर्म छोड़कर माँ का धर्म अपना लिया था, इसी कारण सजा दी गई थी. इस क़ानून को हटाये जाने के बाद अब सूडान में सभी धर्मों के लोगों को बराबर का अधिकार दिया गया है. अब गैर-मुस्लिम भी सार्वजनिक जगहों पर बैठकर शराब पी सकेंगे, पहले यह अधिकार नहीं था.
इससे पहले सूडान की अंतरिम सरकार ने लड़कियों के खतना (Circumcision of girls) को गैर-कानूनी करार दिया था. इस सन्दर्भ में अनेक महिला संगठन लम्बे समय से आन्दोलन कर रहे थे. अब नए क़ानून के तहत लड़कियों के खतना पर तीन वर्ष के कैद का प्रावधान कर दिया गया है.
खतना के सन्दर्भ में सूडान दुनिया में अग्रणी देश था, और यहाँ 5 से 14 वर्ष की लड़कियों में से 87 प्रतिशत लड़कियों का खतना किया जा चुका है.
According to the United Nations, more than 200 million girls have been circumcised in 31 countries of the world.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया के 31 देशों में 20 करोड़ से अधिक लड़कियों का खतना किया जा चुका है, इसमें से 27 देश अफ्रीका में हैं. पर, विशेषज्ञों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े इसकी वास्तविक स्थिति नहीं बताते हैं. दरअसल भारत समेत 90 देशों में यह प्रथा आज भी मौजूद है, पर ये देश इस सन्दर्भ में आंकड़े नहीं जारी करते हैं.
सूडान में पिछले वर्ष तक महिलायें बाहर अकेले नहीं जा सकतीं थीं, यह कानूनन अपराध था. महिलायें केवल पति, भाई या बहुत निकट के संबंधी के साथ ही घर से बाहर जा सकतीं थीं, या फिर अकेले यदि निकलना ही हो तब पहले उन्हें पुलिस से परमिट लेना पड़ता था. अब इस क़ानून को भी वापस ले लिया गया है.
Public Order Act has been abolished in Sudan
एक और क़ानून, पब्लिक ऑर्डर एक्ट (Public Order Act in Sudan), को ख़त्म किया गया है. इसके धारा 152 के तहत महिलायें सार्वजनिक स्थलों पर भले ही अपने पति के साथ गईं हों, पर ट्राउजर्स नहीं पहन सकतीं थीं. ऐसा करने पर क़ानून के तहत सार्वजनिक स्थल पर ही महिला को 30 कोड़े तक मारे जा सकते थे. नो टू ओप्रेसन अगेंस्ट वीमेन इनिशिएटिव (No Two Oppression Against Women Initiative) नामक संस्था की प्रमुख इहसान फागिरी के अनुसार इस क़ानून के तहत कितनी महिलाओं को सजा दी गई, यह तो स्पष्ट नहीं है पर अकेले वर्ष 2016 में ही इस क़ानून का इस्तेमाल 45000 से अधिक महिलाओं के विरुद्ध किया गया.
कार्यकारी सरकार में क़ानून के मंत्री नसरेदीन अब्दुलबारी के अनुसार ये सारे कदम 30 वर्षों के तानाशाही शासन के बाद महिलाओं और अल्पसंख्यकों को बराबरी का हक़ दिलाने में बहुत कारगर साबित होंगें, इससे इन्हें नई आजादी मिलेगी और लम्बे आन्दोलनों के दौर में यही आजादी हमारा मकसद और नारा थी.
रेड्रेस नामक संगठन और सूडान स्थित अफ्रीकन सेंटर फॉर जस्टिस एंड पीस स्टडीज ने भी इन कदमों का स्वागत किया है, पर रेड्रेस की चार्ली लाऊडन ने कहा है कि क़ानून को हटाने से अधिक महत्वपूर्ण इसका अनुपालन है. लम्बे समय से पुलिस, सेना और सरकारी महकमे अल्पसंख्यकों और महिलाओं के साथ अत्याचार करने के अभ्यस्त हो गए हैं, अब सरकार को इस आदत को बदलने के लिए बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की जरूरत है, तभी वास्तव में इसका फायदा होगा.
Sudan was occupied by England and Egypt, and it became independent on January 1, 1956.
सूडान पर इंग्लैंड और मिस्र का कब्जा था, और यह पहली जनवरी 1956 को आजाद हुआ. यह अफ्रीका का सबसे बड़ा और सबसे अधिक भौगोलिक विविधता वाला देश था, पर वर्ष 2011 में इसके दो टुकडे – सूडान और दक्षिणी सूडान – दो अलग देश बन गए. सूडान मुस्लिम बहुल देश है और दक्षिणी सूडान क्रिश्चियन बहुल देश है. सूडान का पूरा इतिहास (Full history of Sudan in Hindi) हिंसा, गृह युद्ध और तानाशाही से भरा है.
विभाजन के पहले उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों की आपसी हिंसा में लगभग 15 लाख लोगों को अपनी जान गवानी पडी. वर्तमान में भी सूडान के पश्चिमी प्रांत, डारफुर, में व्यापक हिंसा जारी है. इस हिंसा से प्रभावित 20 लाख लोग अपना घर-बार छोड़कर प्रवासी हो गए हैं और 2 लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. सूडान की जनसँख्या लगभग 4 करोड़ है.
सूडान में राष्ट्रपति प्रणाली की व्यवस्था है. वैसे तो यहाँ अनेक राजनैतिक दल हैं और चुनाव भी होते हैं, पर चुनावों में धांधली की भरमार होती है. अब तक वहां राष्ट्रपति और सेना के पसंद की सरकारें ही बनती हैं. वर्ष 1983 में तत्कालीन राष्ट्रपति नुमेइरी ने देश में इस्लामिक शरिया क़ानून लागू कर दिए. वर्ष 1993 में ओमर अल बशीर ने सेना के सहयोग से तख्ता पलट कर राष्ट्रपति की गद्दी हथिया ली और 11 अप्रैल 2019 तक लगातार सत्ता में रहे. उनके दौर में पूरा सूडान गृह युद्ध में झुलसता रहा, लोग गरीब होते रहे, अनेक नरसंहार किये गए और अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई. सामान्य जनता की जिन्दगी कठिन होती गई और अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर लगातार अत्याचार किये गए. उनके विरुद्ध लगातार आन्दोलन किये जाते रहे, पर सेना इन आन्दोलनों को लगातार कुचलती रही.
पर, आन्दोलन बंद नहीं हुए और अंत में सेना ने ही आन्दोलनकारियों से समझौता कर 11 अप्रैल 2019 को ओमर अल बशीर को हटाकर जेल में डाल दिया. अब उन पर इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में नरसंहार के मुकदमें (Genocide trials in the International Criminal Court) चल रहे हैं. अगले ही दिन, यानि 12 अप्रैल 2019 को, लेफ्टिनेंट जनरल अब्देल फतह अल-बुरहानी ने देश चलाने के लिए एक कार्यकारी मिलिट्री काउंसिल का गठन कर स्वयं को इसका प्रमुख घोषित कर दिया.
इसके बाद भी आन्दोलन थमें नहीं, क्योंकि समझौते के अनुसार कार्यकारी काउंसिल में मिलिट्री, जनता और आन्दोलनकारियों के प्रतिनिधि शामिल किये जाने थे, पर केवल मिलिट्री काउंसिल बना दी गई. लेफ्टिनेंट जनरल अब्देल फतह अल-बुरहानी ने कहा कि अगले दो वर्षों तक सत्ता मिलिट्री के हाथों में रहेगी, और फिर चुनावों के बाद सत्ता की कमान जनता को सौपी जाएगी. बढ़ते जन-आन्दोलन और इथियोपिया और मिस्र के हस्तक्षेप के बाद सितम्बर में नई कार्यकारी कमेटी का गठन किया गया, जिसमें 6 जनता के प्रतिनिधि और 5 मिलिट्री के प्रतिनिधि हैं. प्रधानमंत्री अब्देला हम्दोक (Prime Minister of Sudan Abdalla Hamdok) को बनाया गया है जिन्होंने आन्दोलनकारी नेताओं में से चयन कर मंत्री बनाए हैं.
कार्यकारी सरकार 2022 के चुनावों तक काम करती रहेगी. कार्यकारी सरकार के लिए एक कार्यकारी संविधान भी बनाया गया है.
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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
कार्यकारी सरकार की चुनौतियां बहुत बड़ी हैं. समाज में समानता और आजादी के लिए तेजी से काम करना पड़ेगा, नहीं तो जनता का लोकतंत्र से विश्वास उठ जाएगा और संभव है देश में फिर से सेना या किसी और तानाशाह का कब्जा हो जाए. रसातल तक पहुँच चुकी अर्थव्यवस्था को तेजी से पटरी पर लाना पड़ेगा. इसमें मुश्किल यह है कि अमेरिका ने सूडान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने के नाम पर जो आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए थे, उसे अभी तक हटाया नहीं है, ऐसी परिस्थितियों में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से मदद लेना कठिन है. दुनिया के हरेक देश की तरह कोविड-19 वहां भी पैर पसार रहा है. वहां अब तक इसके लगभग 11000 मामले सामने आ चुके हैं और 700 व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है. हालां कि ये आंकड़े बहुत विकराल नहीं हैं, पर स्वास्थ्य सेवाएं जर्जर हालत में हैं, स्वास्थ्य कर्मियों के पास सुरक्षा उपकरण नहीं हैं और इन्हें दुरुस्त करने के लिए सरकार के पास वित्तीय संसाधन नहीं हैं.
विश्व इतिहास में यह पहला मौका होगा जब सेना ने किसी भी देश में लोकतंत्र को बहाल करने का काम किया है, वरना आज तक तो सेना तानाशाहों का ही साथ देती रही है. कार्यकारी सरकार को सारी चुनौतियों का सामना करते हुए भी युद्ध स्तर पर काम करना होगा, और इस काम के साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी को भी जीवंत लोकतंत्र के स्तर पर लाना पड़ेगा. इसके लिए जल्दी से जल्दी प्रेस और मीडिया को सरकारी और सेना के चंगुल से आजाद करना पड़ेगा.
महेंद्र पाण्डेय