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प्रकृति, पर्यावरण और जैव विविधता का आंचल है सुंदरवन (Sundarbans is the zenith of nature, environment and biodiversity)
बांग्लादेश और भारत में बंगाल की खाड़ी के समुद्र तट (Beaches of the Bay of Bengal in Bangladesh and India) मैंग्रोव फॉरेस्ट सुंदरवन का इलाका (Mangrove Forest area of Sundarbans) है। असंख्य नदियों और असंख्य द्वीपों से बने सुंदरवन प्रकृति और पर्यावरण, जैव विविधता का आंचल है।
बांग्लादेश में खुलना और बरीशल, जो अब अनेक जिलों में विभाजित हैं और भारत में पश्चिम बंगाल के उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों के कई करोड़ लोग इसी सुंदरवन इलाके के वाशिंदे हैं। यह पूरी आबादी आजीविका के लिए सुंदरवन पर निर्भर है।
भारत में गंगासागर यानी जहां गंगा समुद्र में जा मिलती है, इसी सुंदरवन इलाके में है। तो फरक्का से निकली गंगा की दूसरी धारा पद्मा नदी भी सुंदरवन में समाहित होती हैं। इनकी तमाम शाखाएं सुंदरवन में होकर समुद्र में जा मिलती है।
सुंदरवन प्राकृतिक रक्षा कवच है तो साइक्लोन से कोलकाता समेत भारत और बांग्लादेश की बड़ी आबादी को बचाता है।
इसके साथ ही सुंदरवन रॉयल बंगाल टाइगर (Royal Bengal Tiger) यामीन बाघों का घर (Home of Tigers) है।
जल हो या स्थल, हिंदू हो या मुसलमान, हर मनुष्य और हर बाघ को साथ-साथ ज़िंदगी बितानी पड़ती है।
बाघ और मनुष्य, हिंदू और मुसलमान, सबकी देवी है वन बीवी, जिसे वन देवी या वन दुर्गा भी कहते हैं।
सुंदरवन इलाके में आजीविका के लिए रोज मनुष्य को बाघों से मुलाकात करनी होती है।
इस इलाके में अनेक विधवा बस्तियां हैं, जहां इन स्त्रियों के पति बाघ के शिकार हो गए हैं।
बाघ भोजन के लिए जैसे गांवों में घुस आता है, उसी तरह मनुष्य भी जब तब बाघ के डेरे में घुसपैठ करता रहता है। सीमा के आर-पार।
भारत विभाजन के बाद बरीशाल और खुलना जिले पाकिस्तान को दे दिए गए और वहां बसे दलित लोग विस्थापित होकर भारत चले आए।
बंगाल से बाहर 22 राज्यों में घने जंगल में इन्हें बाघ का चारा बना दिया गया।
अविभाजित उत्तर प्रदेश के अविभाजित नैनीताल जिले की तराई के घने जंगल में भी सुंदरवन इलाके से आए विस्थापितों (Displaced people from Sundarbans area) को बड़ी संख्या में 1949 से 1975 तक बसाया जाता रहा।
पीलीभीत, लखीमपुर खीरी और बहराइच जिलों के जंगल में भी ये बसाए गए।
बिजनौर के गंगा किनारे जहां इन्हें बसाया गया, वह भी जंगल ही था।
अंडमान निकोबार द्वीप समूह और ओडीशा, मध्य प्रदेश, आंध्र, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र तक फैले दंडकारण्य प्रोजेक्ट भी गहन अरण्य में है।
भीतर कनिका, सारंडा से लेकर माला अभ्यारण्य में भी ये बसाए गए।
ये लोग अपने साथ वन बीवी को भी लेकर आए और इन तमाम इलाकों में इस लोकदेवी की पूजा आज भी बाघ से बचने के लिए होती है।
उधमसिंह नगर में अब जंगल और खेतों का सफाया हो गया है। जंगल और खेतों से बेदखल लोग आज भी वन बीवी की पूजा करते हैं।
आज भी इनके रोजगार और आजीविका पर आदमखोर बाघों का हमला जारी है।
वन बीवी की पूजा में कोई कर्मकांड नहीं होता और न कोई पुरोहित होता है।
वन भोजन ही वन बीवी की पूजा है।
आबादी में नहीं, जंगल या खेत में बिना रोशनी के अंधेरे में यह वनभोजन उस लोक परम्परा को जीवित रखता है।
बसंतीपुर में 1952 से यह वन भोजन हर साल होता रहा है, जिसमें गांव के सभी स्त्री पुरुष बच्चे शामिल होते हैं।
महामारी की वजह से दो साल पूजा नहीं हो सकी।
इस बार हुई और वन भोजन में हम, सविता और मैं भी शिवन्या और डोडो के साथ शामिल हुए।
हमारे प्रिय कवि नित्यानंद गायेन ने सही लिखा है
अब सिर्फ आदमी बोलता है
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सुंदरवन में अब बाघ नहीं
आदमी रहते हैं
वे बाघ को आदमखोर कहते हैं
और मैं उन्हें
मैनग्रोव के बचे अंश गवाह हैं
विनाश का
कुछ कंकाल और हड्डियां
जो अब बोल नहीं पाते
दर्द के बारे में
खो गयी है
नदी की भाषा
अब सिर्फ
आदमी बोलता है
वह गाय के नाम पर
इन्सान मारता है !
पलाश विश्वास