एय औरतों जितनी हो, उतनी तो बचो
रोओ नहीं
चलो फिर से
तुम इतिहास रचो
झूठ है सब भारत में
तेरा सम्मान नहीं है
देवी के दर्जे हैं
तुममें जान नहीं है
आडम्बर पुरस्कारों के
अर्ज़ी फ़र्ज़ी वुमन डॉटर डे
युगों से अब तलक तो तुम
सिर्फ़ देह हो बस देह
आँखों के एक्सरों में खिंची
हर दफ़ा
एड़ी से चोटी
कुत्तों की आँखों में छिक जायें
ज्यूँ बोटी
तुम चुप
तुम्हारे साथ चुप
कँगूरों वाले खण्डहरों
का सच
लो फ़ैसले कड़े अब
कि यह नस्ल जाये बच
बेटी से रौशन हो
अब
एय वंश का उजालों
बेटों को चटाओ अफ़ीम
कोख में मार डालो
पुरूष कहाँ जने तूने ?
ईयां महापुरूष जने हैं
इनका कोई हल है
तो सिर्फ़ तेरे कने है
हैं पूजनीय
माइथॉलॉजी में
सब देवता सरीखे हैं
मगर सच तो ये है
सब दुमकटी सभ्यता के प्रतीक हैं
इनके झूठे ग़ुरूर ने
ताकत के सुरूर ने
सदियों से
मकड़जाल बुना है
ना जाने कितनी
अबोलियों का सच
दीवार चिना है
सुनो देखो
इतिहास की
सीली रिसी ईंटें क्या कहती हैं ?
दीवार के पीछे
आँखों की इक नदी
अब भी बहती हैं।
डॉ. कविता अरोरा
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डॉ. कविता अरोरा (Dr. Kavita Arora) कवयित्री हैं, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली समाजसेविका हैं और लोकगायिका हैं। समाजशास्त्र से परास्नातक और पीएचडी डॉ. कविता अरोरा शिक्षा प्राप्ति के समय से ही छात्र राजनीति से जुड़ी रही हैं।