तीन काले कानूनों के विरुद्ध दिल्ली में आंदोलनरत किसानों को समर्पित एक रचना :- ठण्ड मुझे भी लगती है, खुला आसमान, ठंडी हवाएँ, मुझे भी सताती हैं यह अलग बात है, जब मैं सृज़न करता हूँ मिट्टी से जाने क्या क्या रचता हूँ, तो मेरे लिए ठण्ड बेमानी हो जाती है, धरती मेरा कर्मक्षेत्र और आकाश मेरे कर्म का साक्षी …
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तेरी संस्कृति के क़िस्से/ मुझसे और नहीं बाले जाते/ तुझसे दो कौड़ी के छोरे/ तलक नहीं संभाले जाते…
बड़े ही स्याह मंज़र हैं उनके फेंके… किसी रंग की रौशनी यहाँ तक पहुँचती ही नहीं मैं क्या करूँ..? कैसे दिखाऊँ…? यह मंज़र क्या ले जाऊँ.. इन मासूमों को घसीट कर.. लाल क़िले की प्राचीर तक.. या फिर एय लाल क़िले तुझे उठा कर ले आऊँ इस अंधे कुएँ की मुँडेर तलक कैसे चीख़ूँ कि तमाम ज़ख़्मी जिस्मों की चीख़ …
Read More »तुम मुझे मामूल बेहद आम लिखना
तुम मुझे मामूल बेहद आम लिखना जब भी लिखना फ़क़त गुमनाम लिखना यह शरारों की चमक यह लहजों की शहद रौशनी की शोहरतें दियों की जद्दोजहद मशहूरियत की ख़्वाहिश बेवजह की नुमाइश ये चमकते हुए दर सजदों में पड़े सर एय ऐब-ए-बेताबी तू सुन …. कामयाबी … धूप का तल्ख सफ़र है पैरों तले की ज़मीन जलेगी छांव नहीं देगी …
Read More »पूछता है भारत – ऐसी फजां में दम नहीं घुटता ?? मगर वो है कि कुर्सी से नहीं उठता
…………बुझा दो ……… इन रेप की मोमबत्तियों से कुर्सियाँ नहीं जलतीं, मोम के आंसुओं से सरकारें नहीं पिघलतीं, ख़बर फिर से वहीं उठाईगीरों ने सर उठाकर चलने वाली को दुनिया से उठा दिया लोग कोसने लगे सत्ता को किसे कुर्सी पर बिठा दिया दुख किसको कितना हुआ है, सब दिखाने में लग गये। तमाम सोये हुए लोग, इक दूजे को …
Read More »चलता चल संभलना सीख पेज से ऑनलाइन कार्यक्रम
चलता चल संभलना सीख पेज से ऑनलाइन कार्यक्रम “कवि, कविता और हम” शीर्षक से अंतर्राष्ट्रीय कवियों के साथ एक शाम साहित्य समाचार Literature news नई दिल्ली, 23 सितंबर 2020. चलता चल और संभालना सीख पेज के माध्यम से एक ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन गूगल मीट पर आगामी 27 सितंबर 2020 को किया जा रहा है। इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन …
Read More »सुबह के इस मौन इश्क़ को पढ़ा है तुमने ?
शबनमीं क़तरों से सजी अल सुबह रात की चादर उतार कर , जब क्षितिज पर अलसायें क़दमों से बढ़ती हैं , उन्हीं रास्तों पर पड़े इक तारे पर पाँव रख चाँद फ़लक से उतर कर सुबह को चूम लेता है, नूर से दमकती शफ़क़ तब बोलती कुछ नहीं , चिड़ियों की चहचहाटों में सिंदूर की डिबिया वाले हाथ को चुप …
Read More »मैं जानती हूँ कि मैं ‘अमृता प्रीतम‘ नहीं/ ना ही तुम ‘साहिर’
नहीं रखे मैंने तुम्हारी, सिगरेटों के अधबुझे टोटे, छुपा कर किसी अल्मारी-शल्मारी में, कि जब हुड़क लगे तेरी, दबा कर उंगलियों में दो कश खींचूँ, और धुएँ के उड़ते लच्छों में तेरे अक्स तलाशूँ। ना चाय के झूठे प्याले में, बचे घूँट को पिया कभी मैंने, ना चूमीं प्याली पर छपी होंठों की, मिटी-सिटी लकीरों को, मैं जानती हूँ कि …
Read More »हस्तक्षेप साहित्यिक कलरव में इस रविवार डॉ. धनञ्जय सिंह का काव्यपाठ
नई दिल्ली, 20 अगस्त 2020. हस्तक्षेप डॉट कॉम के यूट्यूब चैनल के साहित्यिक कलरव अनुभाग (Sahityik Kalrav section of hastakshep.com ‘s YouTube channel) में इस रविवार वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार डॉ. धनञ्जय सिंह का काव्य पाठ होगा। यह जानकारी देते हुए हस्तक्षेप साहित्यिक कलरव के संयोजक डॉ. अशोक विष्णु शुक्ला व डॉ. कविता अरोरा ने बताया कि सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. …
Read More »हस्तक्षेप साहित्यिक कलरव में इस रविवार राजेश शर्मा
नई दिल्ली, 06 अगस्त 2020. हस्तक्षेप डॉट कॉम के यूट्यूब चैनल के साहित्य अनुभाग साहित्यिक कलरव में इस रविवार चंबल के लाल राजेश शर्मा का काव्य पाठ होगा। यह जानकारी देते हुए हस्तक्षेप साहित्यिक कलरव के संयोजक डॉ. अशोक विष्णु व डॉ. कविता अरोरा ने बताया कि मध्य प्रदेश के भिण्ड में जन्मे सुप्रसिद्ध साहित्यकार राजेश शर्मा ने 1980 से …
Read More »जो रिश्ता दर्द देता है मिसालों में वो रह जाता | Mamta Kiran | ममता किरण
जो रिश्ता दर्द देता है मिसालों में वो रह जाता | Mamta Kiran | ममता किरण जड़ें मजबूत होतीं तो शजर आंधी भी सह जाता/ बनाते हम अगर मजबूत पुल तो कैसे ढह जाता / ज़रा सी धूप मिल जाती तो ये सीलन नहीं होती / जो रिश्ता दर्द देता है मिसालों में वो रह जाता HASTAKSHEP KAVI SAMMELAN, HINDI POETRY RECITATION,KAVI SAMMELAN, …
Read More »हस्तक्षेप साहित्यिक कलरव में इस बार ममता किरण का, “जो रिश्ता दर्द देता है मिसालों में वो रह जाता”
जड़ें मजबूत होतीं तो शजर आंधी भी सह जाता/ बनाते हम अगर मजबूत पुल तो कैसे ढह जाता / ज़रा सी धूप मिल जाती तो ये सीलन नहीं होती / जो रिश्ता दर्द देता है मिसालों में वो रह जाता नई दिल्ली, 30 जुलाई 2020. हस्तक्षेप ड़ॉट कॉम के यूट्यूब चैनल के साहित्य अनुभाग “साहित्यिक कलरव” में इस रविवार में सुप्रसिद्ध गज़ल़गो एवं …
Read More »हस्तक्षेप साहित्यिक कलरव में इस रविवार तपेन्द्र प्रसाद शाक्य के “पैर के छाले सच्चे हैं”, बाकी सब झूठे हैं
सब झूठे हैं, पैर के छाले सच्चे हैं नई दिल्ली, 24 जुलाई 2020. हस्तक्षेप डॉट कॉम के यूट्यूब चैनल के साहित्यिक कलरव अनुभाग (Literary section of hastakshep.com’s YouTube channel) में इस रविवार पूर्व आईएएस अधिकारी व पूर्व कैबिनेट मंत्री तपेन्द्र प्रसाद शाक्य का काव्य पाठ (Poetry recitation of Tapendra Prasad Shakya) होगा। साहित्यिक कलरव के संयोजक डॉ. अशोक विष्णु शुक्ला …
Read More »रोज महाभारत कथा रोज मृत्यु संगीत/ काल भैरवी नाचती समय सुनाता गीत : डॉ. भारतेंदु मिश्र
“रोटियों सी गोल है दुनिया/और हम मजदूर होते हैं।” नई दिल्ली 16 जुलाई 2020. हस्तक्षेप डॉट कॉम के यूट्यूब चैनल के साहित्य अनुभाग साहित्यिक कलरव में इस रविवार सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् व कवि भारतेन्दु मिश्र अपना काव्य पाठ करेंगे। यह जानकारी देते हुए हस्तक्षेप साहित्यिक कलरव के संयोजक डॉ. अशोक विष्णु शुक्ला व डॉ. कविता अरोरा ने बताया कि इस रविवार …
Read More »इस रविवार “हमने तो बस्ती बोई थी, जंगल कैसे उग आया” बताएंगे लक्ष्मी शंकर वाजपेयी
चराग़ों से कहो महफूज़ रखें अपनी-अपनी लौ उलझना है उन्हें कुछ सरफिरी पागल हवाओं से नई दिल्ली, 01 जुलाई 2020. हस्तक्षेप डॉट कॉम के यूट्यूब चैनल (Youtube channel of hastakshep.com) के साहित्य अनुभाग “साहित्यिक कलरव” पर जारी श्रंखला में इस रविवार ख्यातिप्राप्त साहित्यकार लक्ष्मी शंकर वाजपेयी (Laxmi Shankar Bajpai) अपना कविता पाठ करेंगे। यह जानकारी देते हुए हस्तक्षेप “साहित्यिक कलरव” …
Read More »तुमने तभी माँग ली थी…आख़िरी विदा…
….दूसरी बार जब एडमिट हुए तो ज़्यादा बोले नहीं.. सोये पड़े रहते थे…तुम… कुछ कहना चाहते थे भी तो.. शायद.. आवाज़ घर्रा कर.. बाईपैप के.. पाइप में…घुट जाती थी… शरीर अशक्त… हाथ दुबले…बहुत दुबले… उठने के क़ाबिल नहीं बचे थे… बस उँगलियाँ हिलती थीं कभी-कभी कराहते थे तुम.. इस पर पिछली बार वाला झूठ दोहराती मैं…. ”फ़ाइलें तैय्यार हो रही …
Read More »लेकर चली मां हजारों मील मासूमों को/ शर्म नहीं आती हुक्मरानों को और कानूनों को
व्यवस्था पर चोट करती सारा मलिक की तीन लघु कविताएं Sara Malik’s three short poems hurting the system भूख और गरीबी से मजबूर हो गए जख्म पांव के नासूर हो गए कदमों से नाप दी जो दूरी अपने घर की, हजारों ख्वाब चकनाचूर हो गए छालों ने काटे हैं जो रास्ते बेबसी का दस्तूर हो गए. कभी पैदल कभी प्यासे, …
Read More »नरभक्षियों के महाभोज का चरमोत्कर्ष है यह
पलाश विश्वास वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं। आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। “अमेरिका से सावधान “उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता से अवकाशप्राप्त, अब उत्तराखंड के दिनेशपुर में स्थाई प्रवास। पलाश …
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